निर्यातकों को रिजर्व बैंक ने दी बड़ी राहत, 15 महीने में ला सकेंगे एक्सपोर्ट पेमेंट, टैरिफ से उबरने में मिलेगी मदद

RBI ने निर्यातकों को बड़ी राहत देते हुए ओवरसीज शिपमेंट्स की पेमेंट भारत लाने की डेडलाइन 9 महीने से बढ़ाकर 15 महीने कर दी है. US की तरफ से भारतीय सामान पर 50% टैरिफ लगाए जाने के बाद बढ़ी अनिश्चितताओं को देखते हुए यह फैसला एक्सपोर्ट सेक्टर को कैश फ्लो स्थिरता और वर्किंग कैपिटल राहत देने में अहम साबित होगा.

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US की तरफ से भारतीय आयात पर 50% टैरिफ लगाए जाने के बाद एक्सपोर्टर्स पर बढ़ते दबाव को देखते हुए RBI ने बडी राहत का ऐलान किया है. अब निर्यातकों को ओवरसीज शिपमेंट्स की पेमेंट भारत लाने के लिए 9 महीने के बजाय 15 महीने का समय मिलेगा. यह बदलाव न सिर्फ कैश फ्लो प्रेशर कम करेगा, बल्कि बाहरी बाजारों में मांग और पेमेंट साइकिल में आ रही रुकावटों को संभालने में भी बड़ा सहारा साबित होगा.

US टैरिफ से बिगड़ा गणित

अमेरिका ने 27 अगस्त से भारतीय उत्पादों पर 50% तक का भारी टैरिफ लगा दिया, जिसका असर कई सेक्टर्स पर पड़ा है. टेक्सटाइल, इंजीनियरिंग गुड्स, ऑटो कंपोनेंट्स, जेम्स-एंड-ज्वेलरी और MSME आधारित एक्सपोर्टर्स को पेमेंट डिले, ऑर्डर स्लोडाउन और लॉजिस्टिक से जुड़ी अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ा. अमेरिकी खरीदारों ने टैरिफ बढ़ने का असर ट्रांजैक्शन्स और शिपमेंट प्रोसेसिंग पर दिखना शुरू कर दिया, जिससे भारतीय निर्यातकों के लिए निर्धारित 9 महीने की पेमेंट विंडो काफी चुनौतीपूर्ण होती जा रही थी. ऐसे माहौल में RBI के नए फैसले से निर्यातकों के पास अब समय और लचीलापन दोनों बढ़ गए हैं.

एक्सपोर्टर्स को राहत की सांस

फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट (एक्सपोर्ट ऑफ गुड्स एंड सर्विसेज) रेगुलेशन, 2025 के तहत RBI ने घोषणा की कि एक्सपोर्टर्स अब ओवरसीज पेमेंट को 15 महीने में भारत ला सकेंगे. इससे पहले यह अवधि नौ महीने थी. RBI ने स्पष्ट किया कि यह नियम गजट नोटिफिकेशन की तारीख से लागू हो चुका है. कोविड-19 के दौरान भी सरकार ने रियलाइजेशन पीरियड को 15 महीने तक बढ़ाया था और तब इसका सकारात्मक प्रभाव दिखा था. इस बार भी ऐसी ही उम्मीद की जा रही है कि अतिरिक्त छह महीने की राहत एक्सपोर्टर्स को कैश फ्लो संभालने, अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के साथ शर्तों को फिर से तय करने और भुगतान में हो रही देरी को मैनेज करने में मदद देगी.

कैश फ्लो मैनेजमेंट में आएगा सुधार

ग्लोबल इकोनॉमी अभी भी धीमी रिकवरी के दौर में है, जहां डिमांड और पेमेंट दोनों में अस्थिरता बनी हुई है. इस वजह से भारतीय एक्सपोर्टर्स का वर्किंग कैपिटल काफी तनाव में था. 15 महीने की विंडो से MSME सेक्टर को खास फायदा होगा, क्योंकि वे आमतौर पर छोटे ऑर्डर्स और थिन मार्जिन पर काम करते हैं. भुगतान देर से मिलने की स्थिति में बैंकों से क्रेडिट लेने का दबाव बढ़ जाता है, लेकिन अब अतिरिक्त समय उन्हें ऑपरेशनल राहत देगा. इससे ऑर्डर कैंसिल होने का खतरा भी कम होगा और कंपनियां खरीदारों के साथ पेमेंट टर्म्स पर अधिक लचीलापन रख सकेंगी.

45,000 करोड़ के पैकेज से बढ़ी उम्मीदें

RBI की इस राहत के साथ ही सरकार ने इस हफ्ते निर्यातकों के लिए दो अहम स्कीमों की मंजूरी दी है. एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन के तहत 25,060 करोड़ रुपये और क्रेडिट गारंटी स्कीम के तहत 20,000 करोड़ के आवंटन से ग्लोबल मार्केट में भारतीय सामान की प्रतिस्पर्धा बढ़ाने की दिशा में मदद मिलेगी. सरकार का मानना है कि इस पैकेज से MSME, श्रम-प्रधान उद्योगों और फर्स्ट-टाइम एक्सपोर्टर्स को सीधा फायदा मिलेगा.