देश में बैंक मर्जर की तैयारी तेज, आखिर क्यों जरूरी है ये विलय? SBI चेयरमैन ने बताई बड़ी वजह
देश में बैंक मर्जर को लेकर खबरें काफी तेज हो गई है. कई रिपोर्ट्स इस ओर इशारा कर रहे हैं कि भारत में बड़े स्तर पर बैंकों का विलय हो सकता है. इसी बीच, SBI चेयरमैन सी. एस. सेट्टी का मानना है कि बड़े सरकारी बैंकों का निर्माण देश की बढ़ती अर्थव्यवस्था, बड़े प्रोजेक्ट्स और ग्लोबल कंपटीशन के लिए बेहद जरूरी है. आइए समझने की कोशिश करते हैं कि सेट्टी ऐसा क्यों चाहते हैं.
Why Bank Merger are important: भारत में बैंक मर्जर को लेकर पिछले कुछ दिनों से लगातार रिपोर्ट्स आ रहे हैं. ऐसे में भारत की सबसे बड़ी बैंकिंग संस्था स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) के चेयरमैन सी. एस. सेट्टी ने बैंक मर्जर को लेकर बड़ी बात कह दी है. सेट्टी का मानना है कि आने वाले समय में सरकारी बैंकों का एक और बड़ा मर्जर होना देश की आर्थिक जरूरतों के हिसाब से बिल्कुल सही कदम होगा. उनका कहना है कि भारत में अभी भी कई सरकारी बैंक छोटे आकार में काम कर रहे हैं. छोटे बैंक न तो बड़े प्रोजेक्ट्स को अकेले फंड कर पाते हैं और न ही तेजी से बदलती तकनीक और ग्लोबल कंपटीशन से निपटने की क्षमता रखते हैं. ऐसे में अगर सरकार एक बार फिर बड़े बैंक बनाने के लिए मर्जर प्रक्रिया शुरू करती है तो यह कदम भारतीय बैंकिंग व्यवस्था को मजबूत बनाएगा और तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था की जरूरतों को पूरा करेगा.
बैंकिंग क्रेडिट कैपेसिटी है काफी कम!
ब्लूमबर्ग को दिए एक इंटरव्यू रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का लक्ष्य अगले 20 सालों में विकसित अर्थव्यवस्था बनने का है. इस दिशा में बैंकिंग सेक्टर की कैपेसिटी बढ़ाना बेहद जरूरी है. वर्तमान में भारत की बैंकिंग क्रेडिट क्षमता GDP के केवल 56 फीसदी के बराबर है, जबकि लक्ष्य इसे 130 फीसदी तक पहुंचाने का है. यह तभी संभव है जब भारत के पास कुछ बड़े, मजबूत और अधिक कैपिटल वाले बैंक हों, जो भारी-भरकम इंफ्रास्ट्रक्चर, इंडस्ट्री और कॉरपोरेट प्रोजेक्ट को आसानी से फंड कर सकें. भविष्य में भारत की GDP लगभग दस गुना बढ़कर 30 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है, इसलिए बैंकिंग सेक्टर का आकार भी उतनी ही तेजी से बढ़ना चाहिए.
क्यों जरूरी है बैंकों का विलय?
आज SBI अकेले भारत के बैंकिंग लोन मार्केट का लगभग एक-चौथाई हिस्सा संभाल रहा है. इसके पास 22,500 से ज्यादा शाखाएं, 50 करोड़ से अधिक ग्राहक और लगभग 69 ट्रिलियन रुपये की बैलेंस शीट है. यह दिखाता है कि जब बैंक का आकार बड़ा होता है तो उसकी क्षमता और प्रभाव दोनों बढ़ जाते हैं. इसी तरह, अगर सरकारी बैंकों को मिलाकर कुछ बड़े संस्थान बनाए जाते हैं, तो वे भारत की बढ़ती वित्तीय जरूरतों को ज्यादा आसानी से पूरा कर सकते हैं. इससे न सिर्फ लोन डिस्ट्रिब्यूशन आसान होगा, बल्कि बड़े आर्थिक प्रोजेक्ट्स के लिए जरूरी कैपिटल भी समय पर उपलब्ध हो सकेगी.
ग्लोबल लेवल पर भी बड़े बैंकों की जरूरत
ग्लोबल लेवल पर भी भारत को बड़े बैंकों की जरूरत है. दुनिया के टॉप 100 बैंकों में भारत के सिर्फ SBI और HDFC Bank शामिल हैं, जबकि चीन और अमेरिका के पास ऐसे कई बड़े बैंक हैं जो उनकी अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार देते हैं. अगर भारत को ग्लोबल स्तर पर कंपटीटर बनना है तो आने वाले सालों में बैंकिंग स्ट्रक्चर को और बड़ा और मजबूत बनाना जरूरी है. ग्लोबल चुनौतियों के बीच भी बड़े बैंक बेहतर ढंग से रिस्क मैनेज करते हैं. अमेरिकी टैरिफ बढ़ने के बाद भी SBI ने कहा है कि अभी तक उन्हें किसी बड़े सेक्टर में गंभीर परेशानी देखने को नहीं मिली है और बैंक एक्सपोर्टर्स को सपोर्ट देता रहेगा. बड़े बैंक ऐसे समय में कंपनियों को राहत और सहायता देने में सक्षम होते हैं.
एसबीआई की भूमिका
कॉरपोरेट लोन के सेक्टर में भी कंपटीशन बढ़ रही है. कई बैंक बड़े कॉरपोरेट्स को लोन देने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ऐसे ग्राहकों की संख्या सीमित है. इसलिए, जिन बैंकों की बैलेंस शीट मजबूत है और रिस्क सहने की क्षमता ज्यादा है, वही इस प्रतिस्पर्धा में आगे रहेंगे. SBI ने इसी भरोसे के साथ अपने क्रेडिट ग्रोथ अनुमान को बढ़ाकर 12–14 फीसदी कर दिया है. भारत में तेजी से बढ़ रहे M&A (मर्जर और अधिग्रहण) मार्केट को भी बड़े बैंकों की जरूरत है. सरकार ऐसे नियम ला रही है जिससे बैंक बड़े इंडस्ट्रीज के अधिग्रहण सौदों को सीधे फंड कर सकें. यह कदम देश के 40 बिलियन डॉलर से अधिक के M&A बाजार को और रफ्तार देगा और इसमें बड़े बैंक निर्णायक भूमिका निभाएंगे.
भारत में बढ़ती वेल्थ मैनेजमेंट सर्विसेज
भारत में अमीरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और वेल्थ मैनेजमेंट सर्विसेज की मांग बढ़ गई है. SBI पिछले एक साल में 1,000 नए वेल्थ मैनेजर नियुक्त कर चुका है और 2,000 नई भूमिकाएं भी बनाई हैं. बैंक देशभर के 110 प्रमुख बाजारों में वेल्थ हब खोल चुका है और आने वाले दो साल में 50–100 और हब खोलेगा. यह विस्तार दिखाता है कि बड़ा बैंक ही तेजी से बढ़ती सेवाओं की मांग को पूरा कर सकता है. कुल मिलाकर, SBI चेयरमैन का बयान इस बात को स्पष्ट करता है कि भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए बड़े और मजबूत सरकारी बैंकों की जरूरत पहले से कहीं अधिक हो गई है.
बड़े बैंक न सिर्फ बड़े प्रोजेक्ट्स को फंड कर सकते हैं, बल्कि रिस्क मैनेजमेंट, तकनीकी निवेश और ग्लोबल लेवल पर कंपटीशन में भी बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं. यही वजह है कि आने वाले समय में सरकारी बैंकों के नए मर्जर देखे जा सकते हैं, जो भारत के आर्थिक भविष्य को नई दिशा देंगे.
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