12 April 2025
Satish Vishwakarma
क्या आपने कभी सोचा है, आज की तरह पुराने जमाने में ना AC था, ना कूलर, लेकिन फिर भी महल, मंदिर और हवेलियां भीषण गर्मी में भी ठंडी रहती थीं, क्यों कि उनकी वास्तुकला ही उनका नेचुरल कूलिंग सिस्टम थी. ऐसे में चलिए, जानते हैं कैसे.
हम्पी के लोटस महल में पत्थरों के अंदर बारीक पाइपें थीं. इनमें पानी बहाया जाता था जो दीवारों को अंदर से ठंडा करता था.
हम्पी का लोटस महल
राजस्थान और गुजरात की गहरी बावड़ियां सिर्फ पानी जमा करने के लिए नहीं थीं. बल्कि इनकी गहराई, छाया और हवा के बहाव से वे सतह से 5-6°C तक ठंडी रहती थीं. गर्मी में आराम करने की सबसे शांत जगह थी.
बावड़ियां
पहले महलों और दरगाहों की नक्काशीदार जालियां बड़ी चालाकी से बनाई जाती थीं. ये तेज धूप को रोकती थीं और ठंडी हवा को अंदर आने देती थीं. साथ ही चलती हुई छाया का खूबसूरत खेल भी बनता था.
जाली
राजस्थान की हवेलियों और आंध्र प्रदेश के मंडुवा लोगिलिस में खुले आंगन होते थे. गर्म हवा ऊपर उठती थी और ठंडी हवा नीचे आती थी. इससे घर का तापमान खुद-ब-खुद कंट्रोल होता था.
आंगन
ताजमहल जैसे महलों में फव्वारे, तालाब और नहरें सिर्फ सुंदरता के लिए नहीं थीं. ये पानी वाष्पीकरण से हवा को ठंडा करती थीं.
ताजमहल और पानी की ठंडक
हैलेबिदु और बेलूर के मंदिरों की मोटी पत्थर की दीवारें दिन की गर्मी को सोख लेती थीं. रात में धीरे-धीरे ठंडी हवा छोड़ती थीं.
पत्थर की मोटी दीवारें
प्राचीन भारतीय वास्तु कलाकार न सिर्फ खूबसूरत इमारते बनाते बल्कि वे बुद्धिमान भी थे. वे स्थानीय मौसम, सामग्री और विज्ञान के जरिए तैयार करते थे.
पारंपरिक तकनीकें