2 April 2025
Tejas Chaturvedi
इस तरह के बाजार में शेयर की कीमतें एक दायरे में घूमती रहती हैं. न तो लगातार बुलिश ट्रेंड दिखती है और न ही बेयरिश ट्रेंड.
शेयर या कमोडिटी के दाम तेजी से ऊपर-नीचे होते रहते हैं, जिससे यह तय कर पाना मुश्किल हो जाता है कि आगे क्या होगा.
ऐसा तब होता है जब बाजार में खरीदने और बेचने वालों की ताकत बराबर होती है. किसी एक पक्ष का पूरी तरह दबदबा नहीं रहता.
जो ट्रेडर ट्रेंड फॉलो करने वाली रणनीतियों पर काम करते हैं, उनके लिए चॉपी मार्केट में मुनाफा कमाना कठिन हो जाता है. यहां स्पष्ट एंट्री और एग्जिट के संकेत नहीं मिलते.
चॉपी मार्केट में बाजार एक रेंज में घूमता रहता है. इसमें निवेशक लोअर रेंज और अपर रेंज निकालते हैं. लोअर रेंज में शेयर को खरीदकर अपर रेंज में शेयर जाते ही बेच देते हैं.
अगर किसी शेयर की कीमत 100 रुपये से 110 रुपये के बीच ही ऊपर-नीचे होती रहे, और कोई बड़ा बदलाव न हो, तो यह चॉपी मार्केट कहलाएगा.
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