क्यों सोशल मीडिया नहीं हो सकता आपके डिप्रेशन का सॉल्यूशन! 

   13 April 2025

Tejaswita Upadhyay

सोशल मीडिया पर मिलने वाले सुझाव किसी प्रोफेशनल थेरेपिस्ट की तरह प्रमाणिक नहीं होते. लाइसेंस प्राप्त थेरेपिस्ट मानसिक स्वास्थ्य के वैज्ञानिक और नैतिक पहलुओं को समझते हैं, जबकि सोशल मीडिया यूजर्स सिर्फ अनुभव शेयर करते हैं.

प्रोफेशनल काउंसलिंग की जगह नहीं ले सकता

सोशल मीडिया पर कई बार मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी गलत या अधूरी जानकारी फैलाई जाती है. इससे आपकी स्थिति और बिगड़ सकती है क्योंकि हर मानसिक समस्या की अलग डायग्नोसिस और इलाज की जरूरत होती है.

जानकारी अधूरी और अक्सर गलत 

आपकी भावनात्मक पीड़ा के प्रति सोशल मीडिया पर लोग सहानुभूति दिखा सकते हैं, लेकिन वह असली समर्थन नहीं होता. वहां सब कुछ लाइक्स, शेयर और व्यूज के इर्द-गिर्द घूमता है जिससे आपकी समस्या हल नहीं होती.

सहानुभूति नहीं, लाइक्स का खेल

थेरेपी के दौरान आपकी बातचीत गोपनीय रहती है, लेकिन सोशल मीडिया पर आपकी बातें सार्वजनिक हो सकती हैं. यह आपकी भावनात्मक सुरक्षा के लिए खतरनाक हो सकता है, खासकर तब जब आप संवेदनशील स्थितियों से गुजर रहे हों.

आपकी प्राइवेसी सुरक्षित नहीं

सोशल मीडिया पर लोग बहुत जल्दी जज करते हैं और कई बार ट्रोलिंग शुरू हो जाती है. आपकी मानसिक स्थिति और भी खराब हो सकती है जब लोग आपके दर्द का मजाक बनाएं या आपको कमजोर समझें.

बिना फिल्टर के ट्रोलिंग और जजमेंट

हर व्यक्ति की मानसिक समस्या अलग होती है. सोशल मीडिया पर "वन-साइज-फिट्स-ऑल" जैसा समाधान देखने को मिलता है जो आपकी व्यक्तिगत स्थिति के लिए फायदेमंद नहीं होता, बल्कि नुकसानदायक हो सकता है.

एक समाधान सभी के लिए नहीं 

सोशल मीडिया पर लोग अपने जीवन का सबसे बेहतर हिस्सा दिखाते हैं, जिससे आप अपने जीवन को लेकर हीन भावना का शिकार हो सकते हैं. यह मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डालता है.

तुलना से मानसिक स्थिति बिगड़ती है

थैरेपी में एक रिलेशनल बॉन्ड बनता है जो आपको स्थायी सहारा देता है. सोशल मीडिया पर यह रिश्ता वर्चुअल होता है, जिसमें न तो निरंतरता होती है और न ही इमोशनल स्टेबिलिटी, जो किसी पेशेवर थेरेपिस्ट दे सकता है.

असली सपोर्ट सिस्टम की जगह  नहीं ले सकता