ट्रंप का ‘दोगलापन’ बेनकाब, करते हैं शांति की बात, भारत के ‘दुश्मन’ तुर्किये को दिए एडवांस्ड हथियार
अमेरिकी राष्ट्रपति एक तरफ दुनिया में शांति की बात करते हैं. लेकिन, उनके दोहरे मानकों का पर्दाफाश हो गया है. ट्रंप ऐसे देशों को एडवांस्ड हथियार दे रहे हैं, तो खुलकर भारत के खिलाफ पाकिस्तान जैसे आतंकी मुल्क का साथ दे रहा है.
अक्सर कहा जाता है, दुश्मन का दुश्मन, दोस्त और दुश्मन का दोस्त दुश्मन होता है. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के कई दुश्मनों के चेहरे बेनकाब हो गए हैं. जब भारत पहलगाम आतंकी हमले का बदला ले रहा था, तब तुर्किये पाकिस्तान को भारत पर हमले करने के लिए ड्रोन भेज रहा था. वहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का दोगलापन भी बेनकाब हो गया है. एक तरफ ट्रंप पूरी बेशर्मी के साथ भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर का क्रेडिट लेते हैं. बाद में अपने ही बयानों से मुकर जाते हैं. इसके अलावा वे दुनिया में शांति लाने की बात करते हैं, लेकिन सऊदी अरब से लेकर तुर्किये तक हथियार बेच रहे हैं.
अब ट्रंप ने तुर्किये को 30.4 मिलियन डॉलर की मिसाइलों की बिक्री को मंजूरी दे दी है. यह सौदा तुर्किये की तरफ से रूसी मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने और सीरियाई कुर्द मिलिशिया को लेकर विवादों के बाद हुआ है. चूंकि, तुर्किय नाटो का सदस्य है, ऐसे में उसे अमेरिका और यूरोप के एडवांस्ड हथियार बिना रोकटोक मिल जाते हैं. बताया जा रहा है कि अमेरिका जल्द ही तुर्किये को पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान F-35 भी बेच सकता है.
क्या हुआ सौदा?
अमेरिका रक्षा सुरक्षा सहयोग एजेंसी के मुताबिक तुकिये 22.5 करोड़ डॉलर की अनुमानित लागत से 53 एडवांस्ड मीडियम रेंज एयर टू एयर मिसाइलों की मांग की है. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक तुर्किये के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंंप के साथ जल्द बैठक कर सकते हैं.
कुर्दिश फॉर्सेज पर मतभेद
अमेरिका और तुर्किये के बीच कुर्दिश फोर्सेज को लेकर मतभेद है. अमेरिका कुर्दिश फाेर्सेज को नई सीरियाई सेना में शामिल करना चाहता है. लेकिन, तुर्किय का कहना है कि अलगाववादी समूह पीकेके इन फॉर्सेज से जुड़े हैं, जो पिछले 40 साल से तुर्किये से स्वायत्तता चाहता है. नाटो में अमेरिका के बाद तुर्किये सबसे बड़ी सेना है. हालांकि, रूस-यूक्रेन युद्ध और तमाम मसलों पर तुर्किये की राय बाकी नाटो देशों से अलग रही है. माना जा रहा है कि ट्रंप अब तुर्किये को पूरी तरह अपने पक्ष में करना चाहते हैं, ताकि नाटो में तुर्किये ज्यादा जिम्मेदारी निभाए.