23 May 2025
Tejaswita Upadhyay
SIP और FD दोनों ही लोकप्रिय निवेश विकल्प हैं, लेकिन इनकी प्रकृति, जोखिम और रिटर्न के तरीके अलग-अलग हैं. SIP में बाजार जोखिम जुड़ा होता है, जबकि FD एक सुरक्षित और निश्चित रिटर्न देने वाला विकल्प माना जाता है.
SIP में निवेशक हर महीने तय राशि म्यूचुअल फंड में लगाता है, जिससे बाजार उतार-चढ़ाव का औसत असर पड़ता है. वहीं FD में एकमुश्त राशि जमा करनी होती है, जिस पर तय ब्याज दर मिलती है.
निवेश का तरीका
FD में ब्याज दर पहले से तय होती है और रिटर्न निश्चित होता है. SIP के जरिए मिलने वाला रिटर्न शेयर बाजार पर आधारित होता है, जो समय के साथ बदलता रहता है और गारंटीड नहीं होता.
रिटर्न की प्रकृति
FD को बेहद सुरक्षित निवेश माना जाता है क्योंकि इसमें पूंजी का नुकसान नहीं होता. इसके उलट SIP में निवेश म्यूचुअल फंड के जरिए शेयर बाजार से जुड़ा होता है, जिससे इसमें जोखिम भी जुड़ा होता है.
जोखिम का स्तर
FD को परिपक्वता से पहले तोड़ा जाए तो पेनाल्टी लग सकती है. SIP से जुड़े म्यूचुअल फंड्स में ओपन-एंडेड फंड्स से कभी भी निकासी संभव है, हालांकि इक्विटी फंड्स में लॉन्ग टर्म बेहतर रिटर्न देते हैं.
जरूरत पर निकासी
FD से मिलने वाले ब्याज पर टैक्स लगता है, जबकि SIP में ELSS जैसे विकल्पों पर सेक्शन 80C के तहत टैक्स छूट मिलती है. साथ ही, लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर भी अलग टैक्स नियम लागू होते हैं.
टैक्स बेनिफिट
SIP लंबी अवधि के वित्तीय लक्ष्यों जैसे बच्चों की शिक्षा या रिटायरमेंट के लिए उपयुक्त है. FD अधिकतर लोगों द्वारा शॉर्ट टर्म जरूरतों जैसे आपातकालीन फंड या निश्चित समय की योजना के लिए किया जाता है.
लक्ष्य आधारित निवेश
FD से मिलने वाला रिटर्न अक्सर महंगाई दर से कम होता है, जिससे असल लाभ घटता है. वहीं SIP में निवेश महंगाई से लड़ने में मददगार हो सकता है क्योंकि इक्विटी लॉन्ग टर्म में बेहतर रिटर्न देती है.
महंगाई पर असर