22 June 2025
Satish Vishwakarma
आज की दौड़ती-भागती जिंदगी में हम सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक रूप से भी थक चुके हैं. तनाव, अकेलापन और चिंता अब आम बात हो चुकी है. ऐसे में फिल्मों का रोल भी अहम होता है, जो हमें ना सिर्फ एंटरटेन करती हैं.
यह फिल्म युवाओं में पढ़ाई के तनाव, आत्महत्या जैसे गंभीर विषयों को बेहद संवेदनशीलता से दिखाती है. इसमें मेंटल हेल्थ को लेकर समाज की सोच को बदलने की कोशिश की गई है.
छिछोरे
इस फिल्म में कायरा नाम की लड़की (आलिया भट्ट) रिश्तों और करियर को लेकर परेशान रहती है. जब वह एक थेरेपिस्ट (शाहरुख खान) से मिलती है, तो उसकी ज़िंदगी धीरे-धीरे बदलने लगती है.
डियर जिंदगी
रणबीर कपूर की यह फिल्म बताती है कि जब कोई इंसान अपने असली पैशन से दूर होता है, तो वो अंदर ही अंदर टूटने लगता है. इसमें आइडेंटिटी क्राइसिस और दबे हुए जज़्बातों को बारीकी से दिखाया गया है.
तमाशा
यह फिल्म मनोरंजन के साथ-साथ एक गंभीर मानसिक बीमारी – डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर – को भी दर्शाती है. हंसी-मजाक के बीच एक साइकोलॉजिकल थ्रिलर की परत छुपी है.
भूल भुलैया
फरहान अख्तर द्वारा निभाया गया किरदार एक इंट्रोवर्ट व्यक्ति का है, जो खुद से ही बात करता है. यह फिल्म मानसिक संघर्ष, आत्मविश्वास की कमी और बदलाव की उम्मीद पर आधारित है.
कार्तिक कॉलिंग कार्तिक
इन फिल्मों ने बताया कि थेरेपी लेना कमजोरी नहीं, समझदारी है. और मेंटल हेल्थ की बात करना शर्म की बात नहीं, बल्कि ज़रूरी है.
फिल्मों से मिलती है सोचने की दिशा
अगर कभी दिमाग भारी लगे, तो खुलकर बात करें. ज़रूरत पड़े तो प्रोफेशनल मदद लें. ठीक होना मुमकिन है, और फिल्मों की तरह आपकी कहानी भी खूबसूरत हो सकती है.
खुद को समय दीजिए