27 June 2025
Satish Vishwakarma
एक समय था जब छुट्टियों का मतलब होता था सुबह 6 बजे वाली ट्रेन, सूटकेस पर नाम वाला स्टिकर, और मम्मी के हाथ की थर्मस वाली चाय. कोई इंस्टाग्राम नहीं, कोई fancy रिसॉर्ट नहीं, सिर्फ परिवार, लंबा सफर और ढेर सारी यादें.
ऊटी की हवा आज भी वैसी ही मीठी है. नीलगिरि की ट्रेन अभी भी धीरे-धीरे चलती है जैसे उसे कोई जल्दी न हो. बॉटनिकल गार्डन में पिकनिक और चॉकलेट की दुकानों से आती खुशबू अब भी वही है. घोड़े पर बैठकर फोटो खिंचवाना? बिलकुल 90s वाला स्टाइल है.
ऊटी, तमिलनाडु
शिमला में आज भी वो पुरानी अंग्रेज़ी हवा बहती है. रिज रोड, चर्च और ऊनी कपड़ों की दुकानें वैसी ही दिखती हैं. जाखू मंदिर के पास बंदरों से चिप्स बचाते हुए चलो, और फिर पुराने स्टाइल की कुल्फी खाओ.
शिमला, हिमाचल
नैनीताल तब भी छुट्टियों की जान था और आज भी है. झील में तैरती बोट, स्नो व्यू पॉइंट तक जाती केबल कार, और मॉल रोड पर भूने हुए भुट्टे का मज़ा आज भी वही है. टेलिस्कोप वाला अंकल भी आज भी कहता है
नैनीताल
माथेरान एक ऐसा हिल स्टेशन है जिसने आज भी गाड़ियों को ‘नो एंट्री’ बोल रखा है. वहां जाना मतलब या तो घोड़े पर चढ़ो या पैदल चलो. लाल मिट्टी के रास्ते, ब्रिटिश जमाने की कोठियां और एक के बाद एक पॉइंट है.
माथेरान, महाराष्ट्र
यहां की झील, वो सर्द हवा और कोकर वॉक अब भी उतनी ही फिल्मी लगती है. बच्चे अब भी होममेड फज के लिए जिद करते हैं और मम्मियां नीलगिरि तेल के लिए मोलभाव. यहां हर चीज़ में पुरानी यादें बसी हैं.
कोडाइकनाल, तमिलनाडु
इन जगहों पर आज भले वाई-फाई हो, कैफे हों, लेकिन असली मज़ा तो पुराने कैंटीन में बैठकर चाय पीने, और बादलों को चुपचाप आते-जाते देखने में है. जहां भीड़ नहीं, बस अपनी फैमिली हो.
यादें बनाती है जगह