समाज, बचपन या आप खुद – आपकी आर्थिक तंगी का असली दोषी कौन?

22 June 2025

Tejaswita Upadhyay

पैसों की कमी हमेशा सैलरी की गलती नहीं होती. कई बार इसका कारण हमारी सोच, परवरिश और सामाजिक conditioning होती है. इस स्टोरी में जानते हैं कि फाइनेंशियल हालात के पीछे छिपी असली वजहें क्या हैं.

सवाल जो खुद से पूछना चाहिए

अगर आपने बचपन में "पैसे पेड़ पर नहीं उगते" जैसे वाक्य सुने हैं, तो हो सकता है आपने पैसा कमाने से ज़्यादा डरना सीखा हो. ये limiting beliefs आपकी ग्रोथ रोक सकते हैं.

बचपन की मनी-बिलीफ का असर

बचपन में अगर घर में कर्ज, तनाव या पैसे की तंगी देखी हो, तो पैसे को लेकर असुरक्षा बन सकती है. इससे आप या तो बहुत कंजूस बनते हैं या बेफिक्र होकर खर्च करते हैं.

पैरेंट्स का फाइनेंशियल बिहेवियर

सोशल मीडिया और रिश्तेदारों की तुलना में फंसे लोग अकसर वो खर्च करते हैं जो वो अफोर्ड नहीं कर सकते. इससे सेविंग नहीं बनती और मानसिक बोझ भी बढ़ता है.

समाज की तुलना और दिखावा

बिना बजट बनाए जीना, सेविंग को नजरअंदाज करना और हर सेल में खरीदारी – ये सब आपकी खुद की आदतें हैं. और यही आपकी फाइनेंशियल सेहत बिगाड़ती हैं.

खुद की आदतें और फैसले

स्कूलों में पैसा संभालना नहीं सिखाया गया, न ही निवेश की जानकारी दी गई. इस गैप की भरपाई अब खुद करनी होगी – वरना हर फैसला अनुमान से होगा, समझ से नहीं.

पैसों की पढ़ाई कभी नहीं हुई

हर EMI जरूरी नहीं होती. कई बार हम खुद को 'डिजर्व' बोलकर खर्च करते हैं, लेकिन ये आदत बन जाती है. फिर बचत नहीं, बस उधारी में जिंदगी चलती है.

कर्ज लेना – जरूरत या आदत?

समस्या की जड़ पहचानना जरूरी है, लेकिन बदलाव वहीं से शुरू होता है. आप चाहें तो बचपन की सोच, समाज की तुलना और अपनी आदतें बदलकर नई फाइनेंशियल कहानी लिख सकते हैं.

दोष नहीं, दिशा बदलिए