13/11/2025
Kumar Saket
पति-पत्नी के नाम संयुक्त रूप से संपत्ति लेने से न केवल वित्तीय सुरक्षा मिलती है, बल्कि टैक्स में भी महत्वपूर्ण बचत होती है. सही डॉक्यूमेंट और साझेदारी स्पष्ट होने पर दोनों को होम लोन, टैक्स कटौती और कानूनी सुरक्षा के कई फायदे मिलते हैं. आइए जानते हैं ऐसे आसान और असरदार तरीके, जिनसे आप अपने टैक्स बोझ को कम कर सकते हैं.
संपत्ति से होने वाली आय और पूंजीगत लाभ पर दोनों को अपने हिस्से के अनुसार अलग-अलग टैक्स देना होता है. बिना हिस्सेदारी तय किए अधिकारियों द्वारा बराबर का मान लिया जाता है, जिससे टैक्स अधिक लग सकता है.
टैक्स निर्धारण प्रभावित होता है
यदि संपत्ति पति के नाम होकर पत्नी ने योगदान न किया हो, तो उस आय को पति की आय में जोड़ा जाता है. इसलिए खरीद के समय दोनों का वित्तीय योगदान जरूरी है, ताकि क्लबिंग नियम लागू न हों.
क्लबिंग नियम से बचाव के उपाय
जब पति-पत्नी सह-ऋणकर्ता होते हैं, तो वे होम लोन पर प्रिंसिपल और ब्याज दोनों पर अलग-अलग टैक्स कटौती का दावा कर सकते हैं. इससे अधिक टैक्स बचत संभव होती है.
संयुक्त होम लोन के दोहरे फायदे
किराए की आय भी दोनों के स्वामित्व के अनुपात में बंटी होती है. दोनों अपने अपने हिस्से की आय पर 30% स्टैंडर्ड कटौती के बाद टैक्स चुकाते हैं, जिससे टैक्स बोझ कम होता है.
किराए की आय पर टैक्स निर्धारण
संपत्ति बिक्री पर कैपिटल गेन टैक्स दोनों मालिकों के हिस्से के अनुसार लगता है. वे सेक्शन 54, 54EC और 54F के तहत भी अलग-अलग टैक्स छूट का लाभ उठा सकते हैं.
पूंजीगत लाभ और बिक्री पर छूट
अगर संपत्ति का मूल्य 50 लाख रुपये से अधिक है तो प्रत्येक सह-मालिक की हिस्सेदारी के अनुसार 1% TDS देना होता है. कुल मूल्य पर TDS नहीं लगता, जिससे टैक्स भुगतान में सटीकता आती है.
TDS नियमों की समझ