17 July 2025
VIVEK SINGH
100 और 500 रुपये के नोट लकड़ी के कागज से नहीं, बल्कि 100% कॉटन फाइबर से बनते हैं. ये ज्यादा टिकाऊ और सुरक्षित होते हैं और रोजमर्रा के इस्तेमाल में आसानी से खराब नहीं होते.
भारतीय रिजर्व बैंक ने बताया है कि भारतीय मुद्रा नोट पूरी तरह कॉटन फाइबर आधारित होते हैं. इसकी वजह से ये सामान्य कागज की तुलना में 4-5 गुना ज्यादा टिकाऊ होते हैं.
4-5 गुना ज्यादा टिकाऊ
कॉटन फाइबर से बने नोट गीले, मुड़े या पुराने होने के बावजूद लंबे समय तक इस्तेमाल लायक बने रहते हैं. साथ ही इन पर माइक्रो टेक्स्ट और वॉटरमार्क जैसी सुरक्षा तकनीकें भी होती हैं.
क्यों बेहतर हैं?
हर नोट में एक पतला सुरक्षा धागा होता है जो रोशनी में देखने पर दिखता है. यह हरे से नीला रंग बदलता है और नकली नोटों से बचाव में अहम भूमिका निभाता है.
नोटों में होता है सुरक्षा धागा
महात्मा गांधी की तस्वीर और वैल्यू के इलेक्ट्रोटाइप वॉटरमार्क हर नोट में मौजूद होते हैं. ये रोशनी में रखने पर साफ दिखाई देते हैं और नोट की असलियत साबित करते हैं.
असली-नकली की पहचान
नोट पर उभरे हुए प्रिंट जैसे महात्मा गांधी की तस्वीर या अशोक स्तंभ दृष्टिबाधित लोगों को पहचानने में मदद करते हैं. यह तकनीक जालसाजी को भी मुश्किल बनाती है.
इंटाग्लियो प्रिंटिंग से दृष्टिबाधितों को सुविधा
नोटों में फाइन प्रिंट और रंग बदलने वाली स्याही का प्रयोग होता है. ये सुरक्षा तकनीकें नकली नोटों को पहचानने में बहुत सहायक होती हैं.
रंग बदलने वाली स्याही
भारत की तरह अमेरिका भी कॉटन आधारित नोटों का उपयोग करता है. वहां नोट 75% कॉटन और 25% लिनन से बनाए जाते हैं, जिससे वे टिकाऊ और सुरक्षित बनते हैं.
दूसरे देश भी करते हैं ऐसा इस्तेमाल