26 July 2025
VIVEK SINGH
एक्सपेंस रेशियो वो फीस है जो म्यूचुअल फंड कंपनी आपके निवेश को मैनेज करने के लिए चार्ज करती है. ये फीस आपकी इन्वेस्टमेंट वैल्यू से हर साल काटी जाती है.
जितना ज्यादा एक्सपेंस रेशियो होगा, उतना ही कम आपको नेट रिटर्न मिलेगा. यानी आपका मुनाफा उस फीस से घट जाएगा, जो कंपनी ऑपरेशन के लिए लेती है.
रिटर्न पर कैसे पड़ता है असर?
अगर आपने ₹10,000 लगाए और एक्सपेंस रेशियो 1% है, तो हर साल ₹100 चार्ज कटेगा. यानी 10% के रिटर्न पर आपको नेट ₹900 का फायदा मिलेगा.
कैसे समझें असर का गणित?
म्यूचुअल फंड स्कीम का एक्सपेंस रेशियो उसके फंड साइज और मैनेजमेंट पर निर्भर करता है. यह तय नहीं होता, और समय के साथ बदल भी सकता है.
हर स्कीम का अलग रेशियो होता है
इंडेक्स फंड एक्टिवली मैनेज नहीं होते, इसलिए इनका एक्सपेंस रेशियो बेहद कम होता है. ये फंड सिर्फ इंडेक्स को ट्रैक करते हैं, जिससे लागत घट जाती है.
इंडेक्स फंड में होता है कम खर्च
रेगुलर प्लान में ब्रोकर कमीशन जुड़ता है, जिससे एक्सपेंस रेशियो बढ़ता है. डायरेक्ट प्लान में कंपनी से सीधे निवेश करने पर ये चार्ज नहीं लगता.
डायरेक्ट प्लान चुनें, खर्च घटाएं
जिन म्यूचुअल फंड्स का एसेट बेस बड़ा होता है, वे ऑपरेशनल खर्च को बेहतर तरीके से मैनेज कर पाते हैं. ऐसे फंड्स का एक्सपेंस रेशियो कम होता है.
बड़े फंड्स का फायदा उठाएं
लंबे समय तक एक्सपेंस रेशियो का छोटा अंतर भी रिटर्न पर बड़ा असर डालता है. कंपाउंडिंग की वजह से ये डिफरेंस सालों में हजारों का फर्क बना सकता है.
लॉन्ग टर्म में असर और बढ़ता है