23 August 2025
Kumar Saket
घर खरीदना ज्यादातर लोगों का सपना होता है. इसे पूरा करने में होम लोन सबसे अहम भूमिका निभाता है. होम लोन लेते समय ब्याज दर बड़ा फर्क डालती है और आपकी जेब पर सीधा असर करती हैं. आइए जानते हैं वे फैक्टर, जो आपकी होम लोन ब्याज दर को प्रभावित करते हैं.
आपका क्रेडिट स्कोर जितना अच्छा होगा, बैंक उतनी ही कम ब्याज दर पर होम लोन देने को तैयार होंगे. यह आपके कर्ज चुकाने की आदत को दिखाता है और आपकी विश्वसनीयता साबित करता है. खराब स्कोर पर लोन मिलना मुश्किल हो जाता है. इसलिए समय पर EMI और क्रेडिट कार्ड पेमेंट करना जरूरी है.
क्रेडिट स्कोर का असर
LTV बताता है कि प्रॉपर्टी की वैल्यू के मुकाबले बैंक आपको कितनी रकम लोन देगा. अगर आपका डाउन पेमेंट ज्यादा है, तो ब्याज दर कम हो सकती है क्योंकि बैंक के लिए रिस्क घटता है. वहीं ज्यादा LTV पर ब्याज दरें बढ़ जाती हैं. सही बैलेंस रखना फायदेमंद रहता है.
लोन-टू-वैल्यू (LTV) रेशियो
अर्थव्यवस्था में महंगाई और ब्याज दरों की दिशा होम लोन पर सीधा असर डालती है. जब महंगाई बढ़ती है तो बैंक ब्याज दरें ऊपर कर देते हैं ताकि जोखिम कम हो. वहीं स्थिर बाजार में ब्याज दरें अक्सर सस्ती हो जाती हैं. इसलिए टाइमिंग भी अहम फैक्टर है.
मार्केट की स्थिति
लेंडर यह जांचते हैं कि आपकी आय स्थिर है या नहीं और आप किस सेक्टर में काम करते हैं. स्थाई नौकरी और अच्छी इनकम पर बैंक को भरोसा होता है, जिससे ब्याज दरें बेहतर मिलती हैं. अस्थाई नौकरी या कम इनकम वालों को ऊंची दरें झेलनी पड़ती हैं.
कमाई और नौकरी की अहमियत
फिक्स्ड रेट वाले लोन में पूरी अवधि या तय समय तक ब्याज दर समान रहती है. यह EMI को स्थिर रखता है, जिससे आपका बजट प्रभावित नहीं होता. हालांकि यह दरें फ्लोटिंग से थोड़ी ज्यादा होती हैं. स्थिरता चाहने वालों के लिए यह विकल्प सही है.
फिक्स्ड ब्याज दर वाला लोन
फ्लोटिंग रेट बाजार की चाल के हिसाब से बदलता है. जब बाजार में ब्याज दरें घटती हैं, तो आपके लोन की EMI भी कम हो जाती है. लेकिन अगर दरें बढ़ीं तो EMI महंगी हो सकती है. यह रिस्क और फायदा दोनों साथ लाता है.
फ्लोटिंग ब्याज दर वाला लोन
अगर आप ज्यादा डाउन पेमेंट करते हैं, तो बैंक पर रिस्क कम होता है और ब्याज दर भी घट सकती है. कम डाउन पेमेंट करने वालों को ब्याज दरें ज्यादा चुकानी पड़ सकती हैं. इसलिए कोशिश करें कि कम से कम 20-25% डाउन पेमेंट जरूर करें.
डाउन पेमेंट का आकार
लोन का टेन्योर जितना लंबा होगा, कुल ब्याज का बोझ उतना ज्यादा होगा. छोटी अवधि का लोन लेने पर EMI थोड़ी बड़ी होगी लेकिन ब्याज की बचत काफी होगी. इसलिए अपनी क्षमता के हिसाब से संतुलित अवधि चुनना बेहतर रहता है.
लोन की अवधि का असर