Mobile Recharge बना मजबूरी, Airtel, Jio, VI किसमें है दम?
टेलीकॉम शुल्क वृद्धि के प्रति उपभोक्ताओं की प्रतिक्रिया जानने के लिए चैनलों की जांच से पता चला है कि अब उपयोगकर्ता मोबाइल शुल्क को पेट्रोल की कीमतों की तरह देखते हैं. एक आवश्यक खर्च, जिसे मूल्य वृद्धि के बावजूद टाला नहीं जा सकता. आज बात एक ऐसी कंपनी पर जिसने बाजार में धूम मचा रखी है. इसे आप टेलीकॉम सेक्टर का एक ऐसा सितारा भी कह सकते हैं, जिसने मजबूती से अपनी पकड़ को बाजार में बना रखा है. कंफ्यूज मत होइए jio की बात नहीं की जा रही है. बात airtel की हो रही है.
airtel भारत के टेलीकॉम सेक्टर में अपनी जगह कहां रखता है इन बातों को समझने के लिए बस आपको मेरे साथ अंत तक बने रहना है. दरअसल हाल में कुणाल बोरा ने अपने विचार साझा किए हैं. उनका कहना है कि मोबाइल रिचार्ज अब एक जरूरी खर्च बन गया है. बिल्कुल पेट्रोल की तरह. जैसे पेट्रोल की कीमतें बढ़े तब भी भरवाना ही पड़ता है. कुछ साल पहले टेलीकॉम सेक्टर में 10 से भी ज्यादा खिलाड़ी थे. हर कोई गला काटने वाली प्रतियोगिता में लगा हुआ था तब कीमतें इतनी गिर गई थी कि कंपनियों का जीना मुश्किल हो गया था. लेकिन आज कहानी पूरी तरह से बदल चुकी है.
कुणाल बोरा के अनुसार इस सेक्टर में एंट्री के लिए अब कम से कम 25 बिलियन डॉलर की जरूरत होती है और तो और अगर कोई इतना पैसा जोड़ भी ले तो स्पेक्ट्रम मिल जाए इसकी कोई गारंटी नहीं है.