सैलरी ठीक-ठाक है… फिर भी बचत Zero क्यों?

अक्सर कॉर्पोरेट कर्मचारियों को लगता है कि सैलरी तो ठीक है, फिर भी महीने के आखिर में पैसा खत्म क्यों हो जाता है. इसकी सबसे बड़ी वजह बढ़ती लाइफस्टाइल कॉस्ट है. किराया, होम या कार लोन की EMI, बच्चों की पढ़ाई और रोजमर्रा के खर्च सैलरी का बड़ा हिस्सा खा जाते हैं. इसके साथ ही OTT सब्सक्रिप्शन, फूड डिलीवरी, कैब और ऑनलाइन शॉपिंग जैसे छोटे-छोटे खर्च मिलकर बजट बिगाड़ देते हैं.

सोशल मीडिया भी एक बड़ा दबाव बन चुका है. बेहतर फोन, ब्रांडेड कपड़े, ट्रैवल और आउटिंग को लोग जरूरत समझने लगते हैं. नतीजा यह होता है कि कम्फर्ट को फाइनेंशियल सिक्योरिटी से ऊपर रख दिया जाता है. कई प्रोफेशनल यह जानते हुए भी सेविंग और इन्वेस्टमेंट को टालते रहते हैं कि भविष्य के लिए यह जरूरी है. सही प्लानिंग, खर्चों की ट्रैकिंग और समय पर निवेश शुरू करने से इस सैलरी स्ट्रेस को काफी हद तक कम किया जा सकता है.