भारत का सोना और गोल्ड ETF, क्या घरेलू रिजर्व से मिलेगा आर्थिक बल?
भारत को लंबे समय से “सोन की चिडिया” कहा जाता है, क्योंकि देश में 25,000 टन से ज्यादा सोना घरों और मंदिरों में सुरक्षित रखा गया है. इसके बावजूद गोल्ड ETF और एक्सचेंज विदेशी गोल्ड बार पर आधारित हैं. यह स्थिति कई सवाल खड़े करती है कि आखिर घरेलू सोना क्यों निवेश बाजार का हिस्सा नहीं बनता.
इसका मुख्य कारण क्वालिटी स्टैंडर्ड, नियामक अड़चनें और नीतिगत गैप माने जाते हैं. ETF में इस्तेमाल होने वाले गोल्ड बार अंतरराष्ट्रीय मानकों जैसे LBMA (London Bullion Market Association) से प्रमाणित होते हैं. भारत में मौजूद सोना ज्यादातर आभूषण या धार्मिक स्वरूप में है, जिसे रिफाइन करके इन मानकों तक लाना चुनौतीपूर्ण और महंगा है.
अगर भारत अपने सोने को वित्तीय प्रणाली में शामिल करे, तो विदेशी मुद्रा की बचत होगी, निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी. RBI और सरकार धीरे-धीरे गोल्ड मोनेटाइजेशन जैसी योजनाओं पर काम कर रही है, लेकिन बड़े स्तर पर इसका असर अभी दिखना बाकी है. जब तक नियामक और नीति सुधार नहीं होते, तब तक भारत अपने विशाल सोने के भंडार का पूरा लाभ नहीं उठा पाएगा.