तड़का लगाना होगा सस्ता! आयात शुल्क में कटौती के बाद खाद्य तेल की कीमत 6 फीसदी तक घटने की उम्मीद
केंद्र सरकार की तरफ से कच्चे खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में 10 फीसदी तक की कमी का फैसला किया है. इसका असर आने वाले एक-दो सप्ताह के भीतर आम लोगों को भी मिलने लगेगा. एक अनुमान के मुताबिक रिटेल स्तर पर खाना पकाने के तेल की कीमत में 5-6 फीसदी की कमी आ सकती है.
केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने पिछले सप्ताह खाना पकाने के कच्चे तेल के आयात पर लगने वाले शुक्ल में कटौती का ऐलान किया है. नई दरें 31 मई से लागू हो गई हैं. अब माना जा रहा है कि अगले दो सप्ताह के भीतर इस कटौती का असर खुदरा स्तर पर देखने को मिल सकता है. PTI की एक रिपोर्ट के मुताबिक 10-15 दिनों में सोयाबीन, सूरजमुखी, पाम और सरसों के तेल की कीमत में 5-6 फीसदी तक की गिरावट हो सकती है.
रिपोर्ट में इमामी एग्रोटेक के निदेशक और सीईओ सुधाकर राव देसाई के हवाले से कहा गया है कि खाद्य तेल की कीमतों में हाल के महीनों में करीब 17 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली थी. लेकिन, अब इसमें नरमी के संकेत दिख रहे हैं. हमें उम्मीद है कि यह जल्द ही यह तेजी सिंगल डिजिट में आ सकती है. देसाई का कहना है कि जल्द ही खानपान पर बढ़ते खर्च से जूझ रहे परिवारों पर इसका असर देखने को मिल सकता है.
थोक स्तर पर घटी कीमतें
रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्वी भारत की एक बड़ी खाद्य तेल निर्माता कंपनी के कार्यकारी के मुताबिक रिटेल स्तर पर इस बदलाव का असर करीब एक पखवाड़े में दिखेगा. लेकिन, थोक बाजारों में कीमतों में नरमी आने की शुरुआत हो चुकी है.
घरेलू तेल के दाम भी होंगे कम
इंडस्ट्री के जानकारों का मानना है कि सरकार के इस कदम से सिर्फ आयातित तेल की कीमत में ही कमी नहीं आएगी, बल्कि देश में उत्पादित तेल के दाम में भी कमी देखने को मिलेगी. इमामी के सीईओ देसाई के मुताबिक सरसों के तेल के लिए हम आयात पर निर्भर नहीं है. लेकिन, सरकार के इस फैसले से सरसों के तेल में भी 3 से 4 फीसदी की कमी आ सकती है.
रिफाइनरी इंडस्ट्री को फायदा
जानकारों का कहना है कि आयात शुल्क में कमी से सीधे तौर पर जहां उपभोक्ताओं को फायदा होगा, वहीं इस बदलाव से परोक्ष रूप से भारत की एडिबल ऑयल रिफाइनिंग इंडस्ट्री को भी नई जान मिलेगी. क्योंकि, अब कच्चे तेल और रिफाइंड तेल के आयात पर शुल्कों के बीच का अंतर 12.5 फीसदी से बढ़कर 22.5 फीसदी हो गया है, जिससे कंपनियों के लिए कच्चे तेल का आयात करना और उसे घरेलू स्तर पर रिफाइंड करना किफायती हो गया है.