Big Picture: रेयर अर्थ मटेरियल बने चीन के हथियार, ट्रेड वार में भारत सहित पूरी दुनिया की हो रही हार
इलेक्ट्रॉनिक, ऑटोमोबाइल, सोलर एनर्जी, चिप मैन्युफैक्चरिंग सहित दुनिया की ज्यादातर इंडस्ट्री के लिए रेयर अर्थ मटेरियल्स अनिवार्य तत्व हैं. इनके बिना मोबाइल, कार, कैमरा से लेकर सोलर एनर्जी पैनल और तमाम ऐसे उपकरण नहीं बन सकते, जो दुनियाभर में रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल होते हैं. चीन इन मटेरियल्स का सबसे बड़ा उत्पादक है.
चीन की सरकार का रेयर अर्थ मटेरियल्स के निर्यात पर नियंत्रण कड़ा होता जा रहा है. दुनियाभर में खासतौर पर वाहन बनाने वाली कंपनियां अपनी सरकारों के सामने इस मुद्दे को उठा रही हैं. भारत सहित दुनिया के तमाम देश इस मामले में पूरी तरह चीन पर निर्भर हैं, क्योंकि चीन वैश्विक स्तर पर रेयर अर्थ मटेरियल्स की 90 फीसदी सप्लाई कंट्रोल करता है. फिलहाल, तमाम देश चीन के इतर दूसरे स्रोतों की तलाश कर रहे हैं, ताकि इस संकट का स्थायी समाधान निकाला जा सके. लेकिन, क्या यह इतना आसान है, जानते हैं आखिर कैसे ट्रेड वार में रेयर अर्थ मटेरियल चीन के हथियार बन गए और भारत सहित दुनिया के ज्यादातर देश इस युद्ध में चीन से हार रहे हैं.
क्या है चीन की ताकत?
चीन के पास 4.4 करोड़ टन रेयर अर्थ मटेरियल्स का भंडार है, जो दुनिया के कुल ज्ञात भंडारों का आधे से ज्यादा है. वहीं, सप्लाई चेन के लिहाज से देखें, तो चीन दुनिया के 97 फीसदी रेयर अर्थ मटेरियल और मिनरल्स को प्रॉसेस करता है. इनमें से खासतौर पर 7 ऐसे मटेरियल हैं, चीन जिनका हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है.
कौनसे मटेरियल बने हथियार?
ची ने लंबी योजना के तहत उन रेयर अर्थ मटेरियल्स की सप्लाई पर नियंत्रण स्थापित किया है, जिनका इस्तेमाल एडवांस्ड टेक्नोलॉजी, पॉवरफुल मैग्नेट और माइक्रो प्रॉसेसर बनाने में होता है. इन्हें दोहरे इस्तेमाल वाले मटेरियल भी माना जाता है. क्योंकि इन्हें सिविलियन के साथ ही मिलिट्री टेक्नोलॉजी में भी काम लिया जाता है. ऐसे मटेरियल या मेटल्स में टेरबियम, यिट्रियम, डिस्प्रोसियम, गैडोलीनियम, ल्यूटेशियम, सैमरियम, स्कैंडियम शामिल हैं. इनके अलावा नियोडिमियम, प्रेसियोडिमियम भी हैं, जिनके निर्यात पर फिलहाल खास प्रतिबंध नहीं हैं, लेकिन चीन इनकी सप्लाई चेन भी कंट्रोल करता है और इनका इस्तेमाल भी हथियार की तरह कर सकता है.
चीन ने क्या किया?
चीन ने पिछले महीने ऊपर बताए गए सात रेयर अर्थ मटेरियल के निर्यात पर कई प्रतिबंध लगा दिए. इन तत्वों को रेयर अर्थ एलिमेंट यानी REE भी कहा जाता है. चीन राष्ट्रीय सुरक्षा और अप्रसार संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए 7 REE और चुम्बकीय तत्वों के लिए विशेष निर्यात लाइसेंस अनिवार्य कर दिया. इसकी वजह से पूरी दुनिया में इनकी सप्लाई प्रभावित हो रही है. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी और यूएस जियोलॉजिकल सर्वे के मुताबिक चीन दुनिया में इन इन सात मेटल्स का 60 फीसदी उत्पादन करता है और रिफाइनिंग व प्रॉसेसिंग के लिहाज से 90 सप्लाई चेन पर नियंत्रण रखता है.
कहां होता है इस्तेमाल?
सैमरियम, गैडोलीनियम, टेरबियम, डिस्प्रोसियम, ल्यूटेशियम, स्कैंडियम और यिट्रियम का इस्तेमाल हाई परफॉर्मेंस इलेक्ट्रिक मोटर, ब्रेकिंग सिस्टम, स्मार्टफोन, एयरोस्पेस कंपोनेंट और मिसाइलों में होता है. खासतौर पर मिसाइलों के इलेक्ट्रिकल सिस्टम इनके बिना नहीं बन सकते हैं. इसके अलावा इलेक्ट्रिक कार, कारों के इलेक्ट्रिकल सिस्टम, ईसीयू और बैटरी कंट्रोल में भी इनकी जरूरत पड़ती है.
भारत पर क्या असर पड़ रहा?
भारत दुनिया तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल मार्केट है. SIAM यानी सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स ने अप्रैल की शुरुआत में ही कहा था कि जून तक कंपोनेंट का स्टॉक खत्म हो सकता है. रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय कार और कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स ने पिछले सप्ताह ही भारत सरकार के अधिकारियों को यह बताया है कि चीनी के प्रतिबंधों के चलते कुछ ही दिनों में ऑटो उत्पादन ठप हो सकता है.
आम लोगों पर क्या होगा असर?
अगर सप्लाई चेन पर चीन के एकाधिकार से उपजी इस समस्या का समाधान नहीं निकलता है, तो आम लोगों तक इसका असर होगा. खासतौर पर स्मार्टफोन, टीवी, एयर कंडीशनर, कार, इलेक्ट्रिक व्हीकल जैसे प्रोडक्ट की मैन्युफैक्चरिंग प्रभावित होगी. एक समय के बाद ये उत्पाद महंगे हो सकते हैं.