भारत के मंदिरों और घरों में जितना सोना, उतने में बन जाएंगे पाकिस्तान के GDP जैसे 6 देश

WGC के अनुसार, भारतीय परिवारों और मंदिरों के पास 25,000 टन सोना है.UBS की रिपोर्ट बताती है कि 2026 तक कीमतें 3,500 डॉलर प्रति औंस तक जा सकती हैं. फिर भी, सिर्फ 2 फीसदी सोना ही लोन के लिए इस्तेमाल होता है. सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड जैसी योजनाएं उम्मीदों पर खरी नहीं उतरीं. भारतीय परिवारों और मंदिरों में लगभग पाकिस्तान की पूरी अर्थव्यवस्था से छह गुना अधिक सोना है.

भारतीय परिवारों के पास इतना है सोना Image Credit: SarahB Photography/Moment/Getty Images

India gold reserves: भारत में सोने के प्रति दीवानगी सिर्फ एक सांस्कृतिक परंपरा नहीं, बल्कि यह देश की आर्थिक ताकत का भी प्रतीक है. वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) के अनुसार, भारतीय परिवारों और मंदिरों में लगभग 25,000 टन सोना जमा है. अगर इसकी वर्तमान कीमत की बात करें तो लगभग 2.4 ट्रिलियन डॉलर है. यह राशि भारत के अनुमानित वित्त वर्ष 2026 के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के लगभग 56 फीसदी के बराबर है और पाकिस्तान की पूरी अर्थव्यवस्था से छह गुना अधिक है.

कई देशों की GDP से ज्यादा कीमत

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुमानों के मुताबिक, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2025 में लगभग 411 बिलियन डॉलर रहने का अनुमान है, जो भारत के घरेलू स्वर्ण भंडार के कीमत की तुलना में बेहद कम है. हैरानी की बात यह है कि भारतीय परिवारों के पास मौजूद सोने की कीमत इटली (2.4 ट्रिलियन डॉलर) और कनाडा (2.33 ट्रिलियन डॉलर) जैसे विकसित देशों के सकल घरेलू उत्पाद से भी अधिक है.

कीमतें हुईं दोगुनी

स्विस बैंक UBS की एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2020 के बाद से सोने की कीमतें दोगुनी हो चुकी हैं, जिससे भारतीय परिवारों की संपत्ति में भारी इजाफा हुआ है. बैंक का अनुमान है कि वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता, मुद्रास्फीति और भू-राजनीतिक तनाव के कारण 2026 तक सोने की कीमतें 3,500 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच सकती हैं. हालांकि UBS को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2026 में भारत में सोने की मांग कुछ घट सकती है, लेकिन ऊंची कीमतों के चलते सोने का शुद्ध आयात 55-60 बिलियन डॉलर (GDP का 1.2 फीसदी) के स्तर पर बना रहेगा.

मजबूत बनी हुई है मांग

वित्त वर्ष 2025 में भारत में सोने की कुल मांग 782 टन रही, जो कोविड-पूर्व स्तर से 15 फीसदी अधिक है. हालांकि आभूषणों की मांग में मामूली गिरावट दर्ज की गई, लेकिन सोने के सिक्कों और अन्य में निवेश 25 फीसदी बढ़ा. इसकी एक वजह सरकार द्वारा आयात शुल्क को 15 फीसदी से घटाकर 6 फीसदी करना भी रही.

आगे क्या रहेगा रुख

UBS का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2026 में सोने की मांग घटकर 725 टन रह सकती है, लेकिन वित्त वर्ष 2027 में यह फिर से 800 टन तक पहुंच सकती है. इसकी मुख्य वजह 8वें केंद्रीय वेतन आयोग से जुड़ी संभावित वेतन में बढ़ोतरी हो सकती है, जिससे उपभोक्ताओं की खरीदने की शक्ति बढ़ेगी और वे सोने व रियल एस्टेट में निवेश करेंगे.

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धन तो है, पर इस्तेमाल कम

भारत में सोने का विशाल भंडार मौजूद है, लेकिन इस धन को आर्थिक गतिविधियों में इस्तेमाल में लाने में कई बाधाएं हैं. UBS के अनुसार, भारत में 2 फीसदी से भी कम सोने को लोन के लिए गिरवी रखा जाता है. हालांकि बजाज फाइनेंस, श्रीराम फाइनेंस और चोला जैसी कंपनियां स्वर्ण-समर्थित लोन दे रही हैं, लेकिन भावनात्मक लगाव और जागरूकता की कमी के चलते गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम (GMS) और सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) जैसी योजनाएं ज्यादा सफलता नहीं पा सकीं. फरवरी 2024 में सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड को बंद कर दिया गया, क्योंकि सोने की बढ़ती कीमतों के चलते सरकार पर वित्तीय दबाव बढ़ गया था.

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