भारत में भी हैं मिनी ईरान, बिहार-कारगिल से लेकर मुंबई तक ईरानी, इन चीजों के लिए फेमस

ईरान और इजरायल के बीच युद्ध अपने चरम पर है. इस युद्ध की आहट न केवल मिडिल ईस्ट बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित कर रही है और भारत भी इससे अछूता नहीं है. ऐसे में आइए जानते हैं कि भारत में कहां-कहां बसे हैं ये मिनी ईरान और वहां रहने वाले ईरानी मूल के लोगों की पहचान, उनका बिजनेस और उनकी संस्कृति किस तरह आज भी ईरान से जुड़ी हुई है.

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India’s Mini Iran: मिडिल ईस्ट इस समय एक नए जियोपॉलिटिकल संकट के दौर से गुजर रहा है. फिलहाल ईरान और इजरायल के बीच तनाव चरम पर है और दोनों एक-दूसरे पर एयरस्ट्राइक कर रहे हैं. इस युद्ध की आहट न केवल मिडिल ईस्ट बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित कर रही है और भारत भी इससे अछूता नहीं है. भारत की ऊर्जा सुरक्षा, विदेश नीति जैसे कि चाबहार पोर्ट और मिडिल ईस्ट में प्रवासी भारतीयों की स्थिति पर इसका सीधा प्रभाव दिखाई दे रहा है. इन जगहों से भारत अपने नागरिकों को वापस लाने के लिए ऑपरेशन सिंधु के तहत निकाल रहा है. हालांकि इन सभी रणनीतिक आयामों से अलग, भारत और ईरान के बीच जो गहरा संबंध है, वो है सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जुड़ाव का.

भारत के कई शहरों में ऐसे समुदाय हैं, जो सदियों पहले ईरान से आए और यहीं बस गए. इन समुदायों ने अपनी भाषा, संस्कृति, धर्म और परंपराओं को इस हद तक जीवित रखा है कि उनके कुछ इलाकों को आज भी भारत का मिनी ईरान कहा जाता है. ऐसे में आइए जानते हैं कि भारत में कहां-कहां बसे हैं ये मिनी ईरान और वहां रहने वाले ईरानी मूल के लोगों की पहचान, उनका बिजनेस और उनकी संस्कृति किस तरह आज भी ईरान से जुड़ी हुई है.

बिहार का किशनगंज शहर

वैसे तो विदेश मंत्रालय के अनुसार भारत में रहने वाले ईरानियों की कुल संख्या लगभग 10,765 है. बिहार के उत्तर-पूर्वी हिस्से में स्थित किशनगंज एक ऐसा कस्बा है जिसे अक्सर भारत का मिनी ईरान कहा जाता है. यहां शिराज (ईरान) से आए शिया समुदाय की बस्ती है, जो लगभग 500 साल पहले मुगल काल में भारत आए. पहले ये लोग घोड़े बेचते थे और आज की तारीख में ये ताले-चाबी, फोटो फ्रेम, चश्मा और कीमती पत्थरों का व्यापार करते हैं.

यहां की खास बात यह है कि यह समुदाय आज भी फारसी भाषा बोलता है, जबकि सार्वजनिक जीवन में हिंदी, उर्दू और कभी-कभी बंगाली का प्रयोग करता है. इनका मुख्य त्योहार मुहर्रम है, जिसे वे पारंपरिक ईरानी शैली में मनाते हैं.

कितनी है आबादी ?

अगर इस जिले में इनकी आबादी की बात की जाए तो, 2011 की जनगणना के मुताबिक, किशनगंज जिले की कुल आबादी 16,90,400 है, जिसमें मुसलमानों की संख्या 11,49,095 है. इसमें शिया मुस्लिम आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, विशेषकर हुसैनाबाद और आसपास के इलाकों में. वैसे तो शिया मुस्लिम आबादी का एक सटीक प्रतिशत उपलब्ध नहीं है, लेकिन इनकी संख्या देश के दूसरे हिस्सों की तुलना में काफी ज्यादा है. ये मुख्यतः ईरानी मूल के शिया मुस्लिम हैं.

कारगिल, लद्दाख

कारगिल, जिसे आमतौर पर भारत का सबसे बड़ा शिया बहुल क्षेत्र माना जाता है, सांस्कृतिक रूप से ईरान से बहुत गहराई से जुड़ा है. यहां पर एक बड़ी आबादी शिया मुस्लिमों की है. कारगिल की संस्कृति बल्ती, फारसी और तिब्बती तत्वों का सुंदर मिश्रण है. लोग बल्ती भाषा बोलते हैं जिसमें फारसी और अरबी शब्द शामिल हैं. धार्मिक आयोजनों में फारसी नोहा और मातम, ईरानी वास्तुकला से प्रभावित इमामबाड़े, और मुहर्रम के दौरान पारंपरिक शोकगीत गाए जाते हैं. यहां के व्यवसाय के तौर पर यहां कृषि, सरकारी नौकरी और हाल के वर्षों में पर्यटन को अपनाया गया है.

महाराष्ट्र का मुबंई शहर

मुंबई में ईरानी प्रभाव का सबसे प्रमुख रूप पारसी और शिया ईरानी समुदाय के रूप में दिखता है. 19वीं-20वीं शताब्दी में ईरान से पारसी और कुछ शिया मुस्लिम समुदाय ब्रिटिश भारत में आए और मुंबई को अपना घर बनाया. उन्होंने ईरानी कैफे की नींव रखी, जो आज भी शहर की पहचान हैं जैसे कयानी एंड कंपनी, ब्रिटानिया एंड कंपनी आदि. इन कैफे में ईरानी चाय, कीमा पाव, ब्रुन मस्का जैसे व्यंजन मिलते हैं.
मुंबई के ईरानी समुदाय में शिया मुसलमानों की संख्या भी उल्लेखनीय है, जिनकी वर्तमान संख्या लगभग 2,500 के आस-पास मानी जाती है.

पुणे, महाराष्ट्र

पुणे में भी पारसी और ईरानी समुदाय का एक छोटा लेकिन प्रभावशाली समूह है. यहां कैफे गुडलक जैसे प्रतिष्ठान आज भी ईरानी कैफे संस्कृति को जीवित रखे हुए हैं. पारसी धर्म के अनुयायी अग्नि मंदिर में पूजा करते हैं और नवरोज जैसे त्योहार पारंपरिक रूप से मनाते हैं.

अलीपुर, कर्नाटक

कर्नाटक का अलीपुर एक छोटा सा कस्बा है, जहां शिया मुस्लिम समुदाय की अच्छी-खासी आबादी है. यहां फारसी मातम, मुहर्रम के जुलूस, और पारंपरिक पाक शैली आज भी जीवंत है. अलीपुर के कई लोग खाड़ी देशों में कार्यरत हैं और रेमिटेंस से यहां की स्थानीय अर्थव्यवस्था चलती है. विवाह, भाषा और संस्कृति में यह समुदाय अपनी अलग पहचान बनाए हुए है. फिलहाल , चिक्काबल्लापुर जिले के गौरीबिदनूर तालुका में अलीपुर के कुछ मुस्लिम बहुल गांवों में से एक है, जहां की मुस्लिम आबादी 90 फीसदी है, तथा शिया समुदाय 99 फीसदी है.

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