बिहार में जीत के लिए 36000 करोड़ तक के वादे, लेकिन 3 गुना घाटे में खजाना, कहां से आएगा पैसा जब फटी है जेब
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राजनीतिक दलों ने महिलाओं, युवाओं और बुजुर्गों के लिए बड़े चुनावी वादे किए हैं. इनमें मुफ्त बिजली, पेंशन, कैश ट्रांसफर और रोजगार के वादे शामिल हैं. तेजस्वी यादव ने हर घर में नौकरी का वादा किया है, जबकि अन्य पार्टियों ने महिलाओं और युवाओं को भत्ते देने का एलान किया है. हालांकि राज्य की सीमित वित्तीय क्षमता और उच्च फिस्कल डेफिसिट इन वादों को चुनौतीपूर्ण बना रहे हैं.
Bihar Elections 2025 Political Promises: देश के सबसे गरीब राज्यों में शुमार बिहार इस समय खबरों में है. खबरों में होने की वजह है चुनाव. राज्य में विधानसभा के चुनाव प्रस्तावित है और चुनावी माहौल है तो चुनावी वादे भी होंगे. चाहे सत्तारुढ़ जनता दल- यूनाइटेड( JDU) हो, बीजेपी या फिर विरोधी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और नई नवेली जन सुराज हो, सभी पार्टियां महिलाओं, युवाओं और बुजर्गों के लिए लंबी लंबी चुनावी वादे कर रही हैं. चुनावी वादे इतनी लंबी हो गई है कि जानकार के साथ-साथ आम वोटर भी सवाल कर रहा है कि ये वादे पूरे कैसे होंगे.
क्योंकि अगर वादों की लिस्ट देखें तो ये राज्य के कैपिटल बजट से भी ज्यादा हो रहे हैं. हालांकि अभी तक किसी भी पार्टी ने बताया नहीं है कि वह इन वादों को पूरा करने के लिए फंड कहां से लाएगी. हो सकता है कि राजनीतिक पार्टियां इन चुनावी वादों को “चुनावी जुमलों” की तरह यूज कर रही हों और चुनाव के बाद किंतु परंतु करने लगें. अन्य राज्यों में ऐसा हुआ भी है कि सत्ता में आने के बाद पार्टियां अपने वादों से मुकर जाती हैं. तो आइए एक नजर डालते हैं बिहार में राजनीतिक पार्टियों के वादों और उन पर होने वाले खर्च पर.
चुनावी वादों की लागत
राजनीतिक दलों ने बड़े पैमाने पर वादे किए हैं, लेकिन इनकी लागत बहुत अधिक है. तेजस्वी यादव ने हर घर में सरकारी नौकरी देने का वादा किया है, लेकिन इसकी योजना साफ नहीं है. इसके अलावा कांग्रेस-आरजेडी ने कमजोर वर्ग की महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये देने का वादा किया है, जिसकी लागत सबसे ज्यादा 30,000 करोड़ तक है. बिजली मुफ्त देने का खर्च भी इसमें जोड़ा गया है. इसके अलावा राज्य की मौजूदा कैपिटल एक्सपेंडिचर योजना केवल 42,000 करोड़ रुपये की है, जबकि चुनावी वादों की कुल अनुमानित लागत 600 से 30,000 करोड़ रुपये वार्षिक हो सकती है.
इसी तरह NDA ने छोटे बिजनेस शुरू करने के लिए 1 करोड़ महिलाओं को 10,000 रुपये देने का वादा किया है, जिसकी लागत करीब 10,000 करोड़ है. इसके अलावा पेंशन बढ़ाने, मुफ्त बिजली और बेरोजगार युवाओं को पैसे देने के वादे भी हैं, जिनकी कुल लागत हजारों करोड़ में है. वही प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने भी पेंशन वृद्धि का वादा किया है, जिसकी लागत 19,200 करोड़ है. इन वादों का कुल खर्च राज्य की कैपिटल बजट के बराबर या उससे ज्यादा है, जिससे वित्तीय दबाव बढ़ सकता है.
पार्टी | वादा | लाभार्थी/संख्या | अनुमानित खर्च (₹ करोड़) |
---|---|---|---|
NDA | ₹10,000 महिलाओं को | 1 करोड़ | 10,000 |
पेंशन बढ़ाना (₹400 से ₹1,100 प्रति माह) | 1 करोड़ | 8,400 | |
125 यूनिट मुफ्त बिजली प्रतिमाह | – | 3,800 | |
बेरोजगार युवाओं को ₹1,000 प्रति माह | 5 लाख | 600 | |
कांग्रेस-आरजेडी | कमजोर वर्ग की महिलाओं को ₹2,500 प्रति माह | 1 करोड़ | 30,000 |
200 यूनिट मुफ्त बिजली प्रतिमाह | – | 6,000 | |
जन सुराज पार्टी | पेंशन बढ़ाना (₹400 से ₹2,000 प्रति माह) | 1 करोड़ | 19,200 |
राज्य पूंजीगत बजट | FY26 बजटेड कैपिटल आउटले | – | 40,000 |
बिहार की आर्थिक स्थिति और रोजगार की कमी
बिहार की प्रति व्यक्ति इनकम 69320 रुपये है, जो देश में सबसे कम है. राज्य में पलायन और रोजगार की कमी गंभीर समस्या बनी हुई है. श्रम भागीदारी दर 29.1 फीसदी है और डिपेंडेंसी रेशियो 66.3 है. ई-श्रम पोर्टल के अनुसार पिछले वर्ष 23 लाख लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया. इन परिस्थितियों में मुफ्त योजनाएं शॉर्ट टर्म में राहत तो देती हैं, लेकिन लॉन्ग टर्म समाधान नहीं हैं.
ये भी पढ़ें- भारतीयों के लिए 57 देशों में वीजा की झंझट हुई खत्म, अब पहले से आसान और सस्ती होगी यात्रा; देखें लिस्ट
पहले से ही दबाव में है फिस्कल डेफिसिट
बिहार बीते की वर्षों से लगातार अपनी बजट में निर्धारित फिस्कल डेफिसिट (राजकोषीय घाटा) के लक्ष्य को हासिल करने में असफल रहा है और वहां का असली घाटा, जो राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (GSDP) का फीसदी है, हर साल लगाए गए बजट लक्ष्य से अधिक दर्ज किया गया है. उदाहरण के तौर पर, वित्तीय वर्ष 2021 (FY21) से लेकर वित्तीय वर्ष 2024 (FY24) तक, राज्य ने अपने लक्ष्य से 1-2 फीसदी अधिक घाटा दर्ज किया.
सबसे बड़ा अंतर वित्त वर्ष 2025 (FY25) में देखने को मिला जब बजटेड लक्ष्य 3% था, लेकिन हकीकत में घाटा 9% पर पहुंच गया, जो टारगेट से तीन गुना अधिक था. यह आंकड़ा दिखाता है कि राज्य की वित्तीय अनुशासन में लगातार कमी रही है. हालांकि, वित्तीय वर्ष 2026 (FY26) के लिए अनुमानित आंकड़ा फिर से सुरक्षित 3% के आसपास रखा गया है, जो केंद्र सरकार के फिस्कल डेफिसिट नियमों के अनुसार है. बार-बार घाटा बजट अनुमान से ज्यादा रहने का कारण आर्थिक उतार-चढ़ाव, रेवेन्यू कलेक्शन में कमी और अनियंत्रित खर्च हो सकता है, जिससे बिहार की वित्तीय स्थिति पर दबाव बना हुआ है.
वर्ष | बजटेड टारगेट (%) | असली घाटा (%) |
---|---|---|
FY21 | 3.0 | 5.0 |
FY22 | 3.0 | 4.0 |
FY23 | 3.0-3.5 | 4.0 |
FY24 | 3.0-3.5 | 5.0 |
FY25 | 3.0-3.5 | 9.0 |
FY26 | 3.0-3.0 | 3.0 (अनुमानित) |
राज्य पर बढ़ेगा वित्तीय दबाव
इन वादों से राज्य के वित्तीय स्वास्थ्य पर बुरा असर बढ़ सकता है. रेवेन्यू एक्सपेंडिचर से कैपिटल एक्सपेंडिचर का रेशियो बढ़ गया है, जो सरकार के संसाधनों को शॉर्ट टर्म खर्च में लगाने का संकेत है. राज्य का फिस्कल डेफिसिट पहले ही हाई है, और चुनावी वादों के कारण यह और बढ़ सकता है. जानकारों का मानना है कि रोजगार सृजन और बुनियादी ढांचा निवेश ही लंबे समय में राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकते हैं.