भारत के लिए आपदा में अवसर बना चीन का रेयर अर्थ बैन, IREL ने उठाया आत्मनिर्भरता का बीड़ा
चीन के रेयर अर्थ बैन का असर भारत के ऑटोमोबाइल सेक्टर पर खासतौर पर दिखने लगा है. लेकिन, भारत ने चीन की तरफ से खड़ी की गई इस आपदा को अवसर में बदलने का फैसला किया है. लॉन्ग टर्म ग्रोथ और रणनीतिक हितों को ध्यान में रखकर अब सरकार रेयर अर्थ के मामले में आत्मनिर्भता का रास्ता अपनाने जा रही है.
भारत की मौजूदा सरकार का नेतृत्व कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर आपदा को अवसर में बदलने की बात कहते हैं. कई मौकों पर भारत ये यह करके दिखाया है. कोविड के दौरान PPE किट और मेडिकल उपकरणों का उत्पादन हो या डिफेंस एक्सपोर्ट, हर कदम पर आपदा में अवसर और कामयाबी की कहानी दिखती है. अब सरकार ने रेयर अर्थ के मामले में भी यही रुख अपनाया है. सरकार ने चीन की तरफ से खड़ी की रेयर अर्थ मटेरियल्स सप्लाई की आपदा को अवसर में बदलने का फैसला किया है.
कैसे आपदा को अवसर में बदला?
भारत सरकार ने सरकारी खनन कंपनी IREL से कहा है कि जापान के साथ 13 साल पहले किए गए रेयर अर्थ एग्रीमेंट को निलंबित कर दिया जाए. इसके अलावा घरेलू जरूरतों के लिए आपूर्ति को सुरक्षित रखते हुए उत्पादन बढ़ाया जाए. जाहिर तौर पर इस कदम का मकसद रेयर अर्थ के मामले में चीन पर निर्भतरता कम करना है.
भारत के पास कितना रिजर्व?
चीन भले ही REE यानी रेयर अर्थ एलिमेंट्स/मटेरियल की 90 फीसदी से ज्यादा सप्लाई चेन को कंट्रोल करता है. लेकिन, इसका यह मतलब नहीं है ये मटेरियल सिर्फ चीन में ही मौजूद हैं. यूएस जियोलॉजिकल सर्वे सहित कई रिपोर्ट्स में बताया गया है कि भारत के पास दुनिया 69 लाख टन एक्सट्रैक्टेबल रिजर्व है, जो दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा है. वहीं, PIB की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया के कुल REE के हिसाब से पांचवां सबसे बड़ा रिजर्व रखता है.
कहां अटका है मामला?
रेयर अर्थ मटेरियल डिफेंस से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स और सोलर एनर्जी जैसे सेक्टर के लिहाज से अहम हैं. अगर भारत के पास इतने बड़े रिजर्व हैं, तो भारत इनका इस्तेमाल क्यों नहीं कर रहा है. यह एक बड़ा सवाल उठता है. इस सवाल का जवाब PIB की एक रिपोर्ट में मिलता है. इस रिपोर्ट में बताया गया है भारत के REE ग्रेड के मामले में काफी कमजोर हैं. इसके अलावा ये रेडियोएक्टिव एलिमेंट्स के साथ जुड़े हैं. इसकी वजह से एक्सट्रैक्शन की प्रक्रिया लंबी, जटिल और महंगी है. वहीं, चीन से इन्हें लेना किफायती पड़ता है.
अब क्या बदल गया?
अब तक भारत इलेक्ट्रॉनिक, डिफेंस और सोलर सेक्टर की मैन्युफैक्चरिंग नहीं करता था. लेकिन अब इन सेक्टर में भारत तेजी से मैन्युफैक्चरिंग बढ़ा रहा है. ऐसे में भारत के लिए अब REE की माइनिंग और प्रॉसेसिंग करना जरूरी है, ताकि सप्लाई चेन बाधित नहीं हो. इसके अलावा अब तक भारत अपने रिसोर्सेज को बचाए रखने की रणनीति पर काम कर रहा था. क्योंकि, चीन से सस्ते में यह रिसोर्स मिल रहे थे.
ड्रैगन को भारी पड़ेगा पंगा
REE के एक्सपोर्ट पर अचानक बैन लगाने का पैंतरा ड्रैगन को भारी पड़ सकता है. क्योंकि, अगर भारत इसमें उतरता है, तो पूरी दुनिया इसका स्वागत करेगी. खासतौर पर यूरोप, अमेरिका और जापान जैसे देशों के लिए इसका फायदा होगा, जिनको चीन ने धोखा दिया है. हालांकि, फिलहाल भारत की सरकारी कंपनी जापान को निर्यात बंद कर राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर रही है.