रिस्की हो गए कोऑपरेटिव बैंक, 5 साल में 15 लाख कस्टमर क्लेम को मजबूर, जानें कितना वापस मिला पैसा
को-ऑपरेटिव बैंकों से अपनी जमा पर पिछले पांस साल में 15 लाख डिपॉजिटर्स ने क्लेम किया है जिसमें से 11 हजार करोड़ का क्लेम जारी किया गया है. लेकिन ये आंकड़े बताते हैं कि को-ऑपरेटिव बैंक अब रिस्की हो गए हैं. क्या कहते हैं आंकड़े, चलिए जानते हैं...
Co-operative Bank: को-ऑपरेटिव बैकों के लगातार बंद होने के मामलों ने इंश्योरेंस क्लेम बढ़ा दिए हैं. आलम यह है कि पिछले 5 साल में बैंक खाताधारकों की तरफ से करीब 11,353 करोड़ रुपये का क्लेम लिया गया है. सीधी सी बात है कि को-ऑपरेटिव बैंक रिस्की हो गए हैं. और जब ग्राहकों का पैसा डूबता है तो उनके पास रहा-सहा सहारा केवल इंश्योरेंस की राशि रह जाती है. जिसके तहत रकम चाहे जितनी भी जमा हो, कस्टमर को 5 लाख रुपये तक ही मिलते हैं. ताजा रिपोर्ट के अनुसार को-ऑपरेटिव बैंक बंद होने के बाद क्लेम लेने के मामले तेजी से बढ़े हैं और 5 साल में 14 लाख से ज्यादा कस्टमर ने क्लेम लिया है. यानी उनका पैसा कोऑपरेटिव बैंकों ने डुबा दिया है.
तेजी से बढ़ रहा डिपॉजिट क्लेम
DICGC की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2024 में कुल 1,436 करोड़ के इंश्योरेंस क्लेम निपटाए गए हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग दोगुने हैं. खास बात यह है कि क्लेम किया गया पूरा अमाउंट सहकारी बैंकों से संबंधित है जो चिंता का विषय है. वित्त वर्ष 2022 में सबसे ज्यादा 8,516 करोड़ के दावे निपटाए गए थे, क्योंकि उस समय महामारी के कारण सहकारी बैंकों पर काफी वित्तीय दबाव था. बता दें कि कोऑपरेटिव बैंकों का 63.2 फीसदी डिपॉजिट कवर है.
वित्त वर्ष | डिपॉजिटर्स की संख्या | क्लेम अमाउंट |
2020 | 82 हजार | 80.7 करोड़ |
2021 | 1.60 लाख | 563.8 करोड़ |
2022 | 12.90 लाख | 8,516 करोड़ |
2023 | 79 हजार | 755.7 करोड़ |
2024 | 1.18 लाख | 1,436.9 करोड़ |
90 दिन में मिलता है क्लेम
जब RBI किसी बैंक को AID (All Inclusive Directions) के तहत रखता है, तो DICGC को अधिकतम 90 दिनों के अंदर ही डिपॉजिटर्स के क्लेम का निपटारा करना होता है. हालांकि, द हिंदू बिजनेसलाइन की रिुपोर्ट के मुताबिक, पिछले तीन वर्षों में DICGC औसतन 45 दिनों में क्लेम का पेमेंट कर रहा है.
बता दें कि को-ऑपरेटिव बैंक मुख्य रूप से निम्न और मध्यम आय वर्ग के लोगों के लिए एक प्रमुख सहारा है. जहां वह अपनी गाढ़ी कमाई जमा करते हैं. इन कोऑपरेटिव बैंक में ऐसे लोगों का बड़ा हिस्सा जमा है. कुल बैंकिंग डिपॉजिट का 6-7% हिस्सा है. मार्च 2024 तक, DICGC के तहत 1,997 बैंक इंश्योर्ड थे, जिनमें से 1,857 को-ऑपरेटिव बैंक थे.
10 वर्षों में 88 से ज्यादा बंद हो चुके हैं को-ऑपरेटिव बैंक
रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 से अब तक RBI ने 78 अर्बन को-ऑपरेटिव बैंकों (UCBs) के लाइसेंस रद्द किए हैं. सिर्फ 2024 में जुलाई तक ही 10 UCBs के लाइसेंस रद्द किए जा चुके हैं.
को-ऑपरेटिव बैंकों से मिलने वाला प्रीमियम घटा
DICGC के तहत इंश्योर्ड बैंकों से लिया जाने वाला प्रीमियम फ्लैट रेट पर यानी ₹100 की जमा राशि पर 12 पैसे है. चूंकि अब बैंक खाताधारक कम हो रहे हैं तो को-ऑपरेटिव बैंकों जो प्रीमियम दे रहे हैं वह भी अब घट गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 में DICGC को मिलने वाले कुल प्रीमियम में से को-ऑपरेटिव बैंक के प्रीमियम का हिस्सा 5.6% रह गया है.
- जो साल 2023 में 6% था
- 2022 में 6.4% था
- 2021 में 6.7% था
बीमा कवर को बढ़ाने की जरूरत
DICGC के एक हालिया कार्यक्रम में RBI के डिप्टी गवर्नर एम राजेश्वर राव ने कहा कि, डिपॉजिट पर मिलने वाले कवर की को समय-समय पर बढ़ाने की जरूरत है, क्योंकि बैंक डिपॉजिट लगातार बढ़ रहा है. रिस्क-आधारित प्रीमियम मॉडल पर विचार किया जाना चाहिए, ताकि DICGC की वित्तीय स्थिति मजबूत बनी रहे.