एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली करेंसी बना भारतीय रुपया, जापान और हांगकांग कतार में, जानें क्यों

मई में भारतीय मुद्रा बाजार में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले. अमेरिका से लेकर एशिया तक की नीतिगत गतिविधियों ने घरेलू मुद्रा को प्रभावित किया. क्या ये गिरावट अस्थायी है या आने वाले दिनों में स्थिति और बिगड़ सकती है? जानिए क्या कह रहे हैं आंकड़े.

रुपया एशिया में सबसे कमजोर! Image Credit: FreePik

Indian Rupee Weakens: एक ओर जहां एशिया की अधिकांश करेंसी ने मई महीने में मजबूती दिखाई, वहीं भारतीय रुपया इस सूची में सबसे नीचे रहा. अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया मई में 1.27 फीसदी टूट गया. अप्रैल में जहां रुपया 83.94 प्रति डॉलर तक मजबूत हुआ था, वहीं मई के अंत तक यह 85.57 प्रति डॉलर के स्तर तक गिर गया. यह गिरावट एशियाई करेंसियों में से सबसे बड़ी गिरावट रही.

टैरिफ अनिश्चितता और सीमा तनाव ने डाला दबाव

मुद्रा बाजार में इस गिरावट की प्रमुख वजह टैरिफ को लेकर अनिश्चितता, सीमा पर तनाव और केंद्रीय बैंक द्वारा संभावित मौद्रिक नरमी की उम्मीद को माना जा रहा है.

ब्लूमबर्ग के डेटा के मुताबिक, एक साल के डॉलर-रुपया फॉरवर्ड प्रीमियम अप्रैल की शुरुआत में 2.34 फीसदी था, जो अब घटकर 1.94 फीसदी रह गया है. इससे यह संकेत मिलता है कि आने वाले महीनों में भी रुपये पर दबाव बना रह सकता है.

हालांकि, महंगाई दर में गिरावट, आर्थिक वृद्धि की संभावनाएं और डॉलर इंडेक्स का नरम होना कुछ हद तक रुपये को 85.50/$1 के आसपास टिकाए रखने में मददगार साबित हुए हैं. फिर भी ग्लोबल फैक्टर्स अभी भी चुनौती बने हुए हैं.

किस देश की करेंसी हुई मजबूत, कौन गिरा

डेटा के मुताबिक, मई में ताइवानी डॉलर (6.97 फीसदी), कोरियन वॉन (3.30 फीसदी) और इंडोनेशियाई रुपिया (1.91 फीसदी) जैसी मुद्राएं मजबूत हुईं. वहीं जापानी येन (-0.53 फीसदी), हांगकांग डॉलर (-1.13 फीसदी) और भारतीय रुपया (-1.27 फीसदी) कमजोर हुए.

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जापान लंबे समय से एक अल्ट्रा-लो इंटरेस्ट रेट पॉलिसी (शून्य या निगेटिव ब्याज दर) पर काम करता आया है. 2024-25 में भी, जब बाकी देशों ने महंगाई के खिलाफ ब्याज दरें बढ़ाईं, जापान ने बहुत धीरे और सीमित रूप से नीतिगत दरें बढ़ाईं. इससे निवेशक ज्यादा रिटर्न वाले देशों की मुद्राओं को प्राथमिकता देने लगे और येन से निकलने लगे. जापान एक आयात-निर्भर देश है, विशेष रूप से ऊर्जा के मामले में. अगर क्रूड ऑयल महंगा होता है और येन कमजोर होता है, तो उसका असर जापानी व्यापार घाटे पर पड़ता है, जिससे करेंसी और कमजोर होती है.

इसके अलावा हांगकांग में पिछले कुछ वर्षों से राजनीतिक अस्थिरता और चीन के प्रभाव के कारण विदेशी निवेशकों का भरोसा कमजोर हुआ है. इससे वहां से कैपिटल हुआ है, जो हांगकांग डॉलर पर दबाव बना रहा है.