200 डॉलर पहुंच जाएंगे कच्चे तेल के दाम, इराक के डिप्टी पीएम का दावा, रोज गायब होगा 50 लाख बैरल
मध्य-पूर्व में एक ऐसी हलचल शुरू हो गई है, जो न केवल खाड़ी देशों को बल्कि पूरी दुनिया को हिला सकती है. खासकर भारत, जिसकी अर्थव्यवस्था ऊर्जा पर निर्भर है, गंभीर असर झेल सकता है. सवाल उठ रहा है कि क्या तेल के दाम वो हद पार करेंगे जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की गई?
Iran-Israeli Conflict Impact on Oil Price: इजरायल और ईरान के बीच जंग अपने चरम पर पहुंच चुकी है. इस लगातार चल रहे तनाव ने वैश्विक ऊर्जा बाजार में एक नई बेचैनी पैदा कर दी है.दोनों देशों के नागरिकों को हर वक्त जान-माल का खतरा बना हुआ है. इस बीच इराक के उपप्रधानमंत्री व विदेश मंत्री फवाद हुसैन ने चेतावनी दी कि अगर वार्ता के बजाय जंग जारी रही, तो तेल की कीमतें 200–300 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं. दूसरी ओर, जेपी मॉर्गन का अनुमान है कि गंभीर स्थितियों में ब्रेंट क्रूड 120–130 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकता है. क्या इन आंकड़ों में दम है, और अगर सचमुच कीमतें इतनी ऊंची हो गईं तो भारत पर इसका क्या असर होगा? आइए, घटनाक्रम और तथ्यों की परत को समझते हैं.
हाल‑फिलहाल के घटनाक्रम
AP की रिपोर्ट के मुताबिक, बीते सप्ताह एक इजरायल ड्रोन ने फारस की खाड़ी में स्थित ईरानी साउथ पारस गैस फील्ड को निशाना बनाया. यह दुनिया का सबसे बड़ा नैचुरल गैल फिल्ड है. इसके अलावा ईरान, कतर के साथ फारस की खाड़ी में फैला हुआ गैस क्षेत्र साझा करता है.
इस हमले के बाद प्रोडक्शन प्लेटफॉर्म बंद हो गया, जिससे गैस की आपूर्ति पर असर पड़ा और तेल के दामों में अचानक उछाल आया. शुक्रवार को ब्रेंट क्रूड 13 प्रतिशत तक उछलकर 78.50 डॉलर तक पहुंच गया, हालांकि यह 74.23 डॉलर पर बंद हुआ. एशियाई कारोबार के शुरू में यह फिर 5.5 प्रतिशत चढ़कर 76 डॉलर के पार ट्रेड करने लगा. हालांकि आज सोमवार को थोड़ी गिरावट देखने को मिली है.
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इसी दौरान इराकी मंत्री फवाद हुसैन ने जर्मनी के विदेश मंत्री जोहान वैडेफुल से बातचीत में कहा कि स्ट्रेट ऑफ़ होर्मुज के बंद होने की स्थिति में प्रतिदिन पांच मिलियन बैरल तेल बाजार से हट सकता है. इस संभावना ने एक बार फिर से ऊर्जा मार्ग की अहमियत पर ध्यान खिंचा और वैश्विक आपूर्ति संकट का खतरा जगाया.
हर दिन गायब होगा पांच मिलियन बैरल
होर्मुज जलडमरूमध्य दुनिया के महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों में से एक है क्योंकि यह फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी को जोड़ता है. दुनिया के तेल परिवहन का लगभग एक-पांचवां हिस्सा इसी रास्ते से गुजरता है. अगर ईरान इसे हताहत करता है तो मिडिल इस्ट से तेल की निकासी ठप हो जाएगी.
ऑपरेशन बंद होने पर फवाद हुसैन इसके असर को बताते हुए कहते हैं कि इससे वैश्विक तेल आपूर्ति में प्रतिदिन पांच मिलियन बैरल (50 लाख बैरल) का अंतर आ जाएगा और कीमतों में जबरदस्त उछाल देखने को मिलेगा.
जेपी मॉर्गन का विश्लेषण
इस हालात में जेपी मॉर्गन ने भी चेताया कि तेल की कीमतें 120 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं. इससे अमेरिकी महंगाई (CPI) फिर से 5 फीसदी तक पहुंच सकती है, जो फेडरल रिजर्व के इंटरेस्ट रेट में कटौती होने वाले फैसलों को बिगाड़ सकता है.
बावजूद इसके, जेपी मॉर्गन फिलहाल अपने बेस केस अनुमान को बदले बिना रख रहा है. बैंक का मानना है कि हालात समान्य रहे या इससे ज्यादा न बिगड़े तो 2025 में ब्रेंट ऑयल की कीमतें 60–65 डॉलर प्रति बैरल और 2026 में औसतन 60 डॉलर रह सकती हैं.
तेल की हालिया रैली का आकंलन
ऑयल मार्केट ने पहले भी जियोपॉलिटिकल टेंशन के चलते अक्रामक रवैया अपनाया है लेकिन इस बार रैली की गति और व्यापकता ने मार्केट एक्सपर्ट्स को चौंका दिया है.
जनवरी में जब रफ्तार कम थी, तब ब्रेंट क्रूड करीब 80 डॉलर से नीचे था. मई-जून में, ग्रीष्मकालीन मांग और कम अमेरिकी स्टॉक ने कीमतों को समर्थन दिया. ईरान-इजरायल तनाव के चलते केवल एक सप्ताह में 13 प्रतिशत की छलांग ने निवेशकों में जोखिम प्रीमियम जोड़ दिया है. बाजार अब हर समाचार पर सतर्क नजर रख रहा है, और स्ट्रेट ऑफ होर्मुज की हर खबर ने तेजी से कीमतों को प्रभावित किया है.
भारत पर संभावित असर
भारत अपनी 85 प्रतिशत तेल जरूरत आयात पर निर्भर करता है. तेजी से बढ़ती कच्चे तेल की कीमतें भारत के वित्तीय बजट पर सीधा प्रभाव डालेंगी. सरकार का ईंधन और उर्वरक सब्सिडी बिल बढ़ेगा, जिससे राजकोषीय छूट कम होगी. करेंसी पर दबाव बढ़ने का मतलब होगा कि रुपया और भी कमजोर हो सकता है, जिससे वर्तमान खाते का घाटा बढ़ेगा.
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इसके अलावा, महंगाई पर भी असर पड़ेगा. रिजर्व बैंक ने हाल ही में घटती महंगाई को देखते हुए ब्याज दरों में कटौती की है लेकिन ऊर्जा कीमतों में उछाल से महंगाई बढ़ सकती है और उपभोग में कटौती आ सकती है. घरेलू मांग कमजोर होने का अर्थ होगा जीडीपी ग्रोथ रेट में गिरावट.
मार्केट एक्सपर्ट्स का मानना है कि तेल मार्केटिंग कंपनियां (IOC, BPCL, HPCL) रिफाइनिंग लागत बढ़ने के बावजूद पंप दरों में पूरी कटौती नहीं कर पाएंगी, जिससे अंडर-रिकवरी बढ़ेगी और लाभ मार्जिन संकरा होगा. वहीं, ऑनशोर उत्पादक (ONGC, Oil India) को अधिक रीयलाइजेशन मिलने की संभावना रहेगी, लेकिन उनकी रेवेन्यू ग्रोथ सरकारी मूल्य नियमन और निर्यात प्रतिबंधों पर निर्भर करेगी.