साल 2070 तक भारत सहित इन देशों के GDP में 16% तक आ सकती है गिरावट, इस वजह से होगा नुकसान
रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि जलवायु का परिवर्तन इसी तरह से जारी रहा, तो तटीय क्षेत्रों में रहने वाले 300 मिलियन लोग की जिन्दगी बाढ़, तूफान, गर्मी, लू और अधिक बारिश से खतरे में पड़ सकती है. इससे करीब 2070 तक खरबों डॉलर की संपत्ति को सालाना नुकसान हो सकता है.
जलवायु परिवर्तन का असर सिर्फ मौसम चक्र पर ही नहीं पड़ा है, बल्कि आने वाले समय में इससे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) भी प्रभावित होगा. 2070 तक एशिया और प्रशांत क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद में 16.9 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है. खास बात यह है कि भारत में भी सकल घरेलू उत्पाद को 24.7 प्रतिशत के नुकसान का अनुमान लगया गया है. एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, समुद्र के बढ़ते स्तर और घटती वर्कफोर्स प्रोडक्टिविटी के कारण जीडीपी में सबसे अधिक गिरावट आएगी. इस गिरावट की वजह से कम इनकम वाले लोग सबसे अधिक प्रभावित होंगे. इसके अलावा कमजोर अर्थव्यवस्था वाले देशों को भी नुकसान पहुंचेगा.
रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि जलवायु का परिवर्तन इसी तरह से जारी रहा, तो तटीय क्षेत्रों में रहने वाले 300 मिलियन लोग की जिन्दगी बाढ़, तूफान, गर्मी, लू और अधिक बारिश से खतरे में पड़ सकती है. इससे करीब 2070 तक खरबों डॉलर की संपत्ति को सालाना नुकसान हो सकता है. एडीबी के अध्यक्ष मासात्सुगु असकावा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन ने एशिया और प्रशांत क्षेत्र में तूफानों, गर्मी और बाढ़ से होने वाली तबाही को और बढ़ा दिया है. इससे आने वाले सालों में आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए पूरे विश्व को एक साथ मिलकर काम करने की जरूरत है.
इन देशों में ज्यादा होगा असर
बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक, रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते बांग्लादेश में 30.5 प्रतिशत, भारत में 24.7 प्रतिशत, पाकिस्तान में 21.1 प्रतिशत, दक्षिण पूर्व एशिया में 23.4 प्रतिशत और फिलीपींस 18.1 प्रतिशत जीडीपी को नुकसान पहुंच सकता है. इसमें कहा गया है कि विकासशील एशिया ने 2000 के बाद से वैश्विक जीएचजी उत्सर्जन में वृद्धि के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार है. जबकि उन्नत अर्थव्यवस्थाएं 20वीं सदी के दौरान प्रमुख जीएचजी उत्सर्जक थीं. 21वीं सदी के पहले दो दशकों में विकासशील एशिया से उत्सर्जन किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ा है. इसके चलते वैश्विक उत्सर्जन में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी 2000 में 29.4 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 45.9 प्रतिशत हो गई.
दुनिया की 60 प्रतिशत आबादी रहती है यहां
रिपोर्ट में बताया गया है कि इस एशिया और प्रशांत क्षेत्र में दुनिया की 60 प्रतिशत आबादी रहती है. साथ ही प्रति व्यक्ति उत्सर्जन अभी भी वैश्विक औसत से कम है. रिपोर्ट में कहा गया है कि बहुत अधिक बारिश के चलते बाढ़, भूस्खलन और तूफान के मामले बढ़े हैं. यह भारत और चीन के समुद्री और पहाड़ी इलाकों में सबसे अधिक तबाही देखने को मिल रही है. वहीं, अग्रणी मॉडल संकेत देते हैं कि 2070 तक एशिया और प्रशांत क्षेत्र में नदी के किनारे बाढ़ से खरबों डॉलर का सलाना आर्थिक नुकसान हो सकता है. ऐसे में आर्थिक नुकसान 2070 तक 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष तक पहुंच सकता है, जिससे सालाना 110 मिलियन से अधिक लोग प्रभावित होंगे.