कश्मीर के लिए ब्रिटिश इंडिया जैसा मोमेंट, 128 साल बाद फिर दोहराएगी भारतीय रेल; दुनिया देखेगी नई वादी

कश्मीर के लिए एक हाईटेक रेल सीटी कभी दूर का सपना लगती थी , आज वही सीटी कश्मीर की वादियों में गूंज रही है. एक ऐतिहासिक बदलाव के साथ जुड़ा है एक ऐसा सफर, जो न सिर्फ दूरी घटाएगा बल्कि सोच बदल देगा. जानिए इस ऐतिहासिक दिन के पीछे छिपी पूरी कहानी.

कश्मीर में शुरू हुआ वो सफर जो ब्रिटिश इंडिया में शुरू हुआ था Image Credit: Money9 Live

भारत में जब भी रेलवे किसी इलाके से जुड़ती है, तो वह उस क्षेत्र की तस्वीर ही बदल जाती है. चाहे अंग्रेजों ने अपनी मुनाफाखोरी के लिए ट्रेन की शुरुआत की हो, लेकिन उसी ने देश के एकीकरण में अहम भूमिका निभाई. अब कुछ ऐसा ही कश्मीर के साथ हो रहा है. शुक्रवार, 6 जून 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्री माता वैष्णो देवी कटरा और श्रीनगर के बीच नई, विशेष रूप से डिजाइन की गई, वंदे भारत ट्रेनों का शुभारंभ किया. यह न सिर्फ यात्रियों के लिए तीन घंटे की यात्रा को आसान बनाएगा, बल्कि सामरिक दृष्टि से भारत को मजबूत करने, पर्यटन को बढ़ावा देने, रोजगार के नए अवसर खोलने और स्थानीय उद्योगों को फलने-फूलने का अवसर देगा.

अंग्रेजों की रेल और देश का एकीकरण

1850 से पहले भारत में एक भी रेलवे लाइन नहीं थी. इंग्लिश साहूकारों ने 1840 के दशक में यहां की जमीन पर रेलियों की पटरियां बिछानी शुरू कीं, लेकिन इनका असली मकसद था – अफोर्डेबल कोहरे में माल लाना-ले जाना, कच्चा माल बाहर भेजना और तैयार माल भारत में बेचना. ‘गारंटी सिस्टम’ के तहत भारतीय करदाताओं ने इन इंजीनियरिंग कंपनियों को उनके घाटे-नाफे की परवाह किए बिना आय की गारंटी दे रखी थी. बावजूद इसके, रेल परिवहन ने दूर-दराज के इलाकों को जोड़कर व्यापार और संस्कृति के आदान-प्रदान में एक नई रफ्तार ला दी. समय के साथ ब्रिटिश पटरियों का इस्तेमाल देश के एकीकरण के साधन के रूप में भी होने लगा और विभाजन के बाद भी भारत ने रेल नेटवर्क का विस्तार जारी रखा, जिससे जम्मू-कश्मीर समेत सबसे कठिन भूभागों में भी रोड-से-रेल बदलाव संभव हुआ.

कश्मीर ने किया लंबा इंतजार

लेकिन अगर बस जम्मू-कश्मीर के रेल जर्नी की बात करें तो, कश्मीर में पहली बार किसी रेलवे लाइन का निर्माण ब्रिटिश अधिकारियों ने 1897 में जम्मू से सियालकोट (अब पाकिस्तान में) तक 40-45 किलोमीटर की दूरी पर किया था. 1902 और 1905 में रावलपिंडी से श्रीनगर तक रेल लाइन प्रस्तावित की गई, जो झेलम नदी के किनारे घाटी को मुख्य जाल से जोड़ देती, लेकिन महाराजा प्रताप सिंह ने रियासी से होते हुए जम्मू–सिराज मार्ग पर जोर दिया और दोनों योजनाएं स्थगित रहीं.

विभाजन के बाद सियालकोट पाकिस्तान में चला गया और जम्मू रेल नेटवर्क से कट गया. 1975 में पठानकोट–जम्मू लाइन चालू होने तक निकटतम स्टेशन पठानकोट ही था. 1983 में जम्मू–उधमपुर 53 किमी लाइन का काम शुरू हुआ जो 21 साल में पूरा हुआ. 1994 में इसे श्रीनगर और बाद में बरामुल्ला तक बढ़ाने की घोषणा हुई, लेकिन परियोजना 30 साल से अधिक समय में, 43780 करोड़ रुपये की लागत से ही पूरी हो सकी.

इंजीनियरिंग की बेहतरीन उपलब्धि

उधमपुर से श्रीनगर तक 272 किलोमीटर लंबी यह रेल लाइन पूरा होने में 30 साल से अधिक समय लगा और नापी गई लागत 43,780 करोड़ रुपये रही. रास्ते में 36 सुरंगें और 943 पुलों का निर्माण हुआ. इनमें से एक है चीनाब नदी पर बना 359 मीटर का दुनिया का सबसे ऊंचा आर्च ब्रिज और अंजी नद पर रेल मंत्रालय का पहला केबल-स्टे ब्रिज प्रमुख हैं. रामबन की 12.77 किमी लंबी सुरंग भी तकनीकी दृष्टि से देश की सबसे बड़ी रेलवे सुरंग है. यह मार्ग सर्दियों में भारी हिमपात और भूस्खलन की चुनौतियों के बावजूद साल भर आवागमन सुनिश्चित करेगा.

विकास की सौगात

कटरा और श्रीनगर के बीच दो-दो वंदे भारत ट्रेनें हर दिन चलेंगी, जिससे सड़क मार्ग की तुलना में आधा समय बचेगा. जल्द ही यह ट्रेन जम्मू तवी तक भी बढ़ाई जाएगी, जिससे देश के किसी भी कोने से बिना रूट बदले श्रीनगर पहुंचना संभव होगा. इस ट्रेन का ये भी फायदा होगा. प्रोडक्ट्स के ट्रांसपोर्ट में भी तेजी आएगी. आसानी से पके आम, सेब, ड्राई फ्रूट्स, पश्मीना शॉल, हस्तशिल्प आदि व्यापार बड़े स्तर पर होंगे, परिवहन की लागत कम होगी और ताजा माल जल्दी पहुंचेगा. स्थानीय लोग भी सस्ते दामों में रोजमर्रा की वस्तुएं हासिल कर सकेंगे.

सामरिक दृष्टि से मजबूती

भूराजनीतिक दृष्टि से यह रेल लिंक सुरक्षा बलों को जम्मू-कश्मीर में तेजी से तैनाती और रसद आपूर्ति का अवसर देगा. बर्फीली चोटियों और खड्कों के बीच चलने वाली तेज रफ्तार ट्रेनें मुश्किल हालात में भी गंतव्य तक पहुंचने का भरोसा देंगी, जो सीमापार तनाव के समय एक अमूल्य साधन साबित होगा. हाल ही में विधानसभा में पेश की गई आर्थिक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2024-25 में जम्मू-कश्मीर की सकल राज्य घरेलू उत्पाद (Nominal GSDP) का अनुमान 2.65 लाख करोड़ रुपये लगाया गया है. वहीं वास्तविक जीएसडीपी (Real GSDP) करीब 1.44 लाख करोड़ रुपये रहने की संभावना है. यह दरअसल उस वस्तु और सेवा उत्पादन का मूल्य है जिसमें महंगाई का असर नहीं जोड़ा गया है.

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रिपोर्ट यह भी बताती है कि 2024-25 में जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था 7.06% की दर से बढ़ेगी, जो देश के कई अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर संकेत देता है. रेल मार्ग से जुड़ने के बाद कश्मीर का पर्यटन नए आयाम छुएगा. श्रद्धालु, पर्यटक और एडवेंचर प्रेमी आतंक की भयावहता से मुक्त होकर घाटी की गोद में बसे कई नए स्थलों की सैर कर सकेंगे. वहीं स्थानीय युवाओं को नौकरी के कई रास्ते मिलेंगे, चाहे वो रेलवे सेक्टर में हों या पर्यटन सेवा क्षेत्र में.

रेल की आवाज से कश्मीर की वादियां अब और गूंजेंगी, इतिहास में दर्ज हर सफर की तरह यह भी अपनी लकीर छोड़ जाएग. एक नए भारत की तस्वीर उकेरते हुए, जो हर कोने को जोड़े और विकास की नई राह पर ले चले.

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