क्या है शिमला समझौता, जिसे पाकिस्‍तान ने किया सस्‍पेंड, जानें इससे किसे कितना नुकसान?

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत की तरफ से सिंधु जल समझौते पर रोक लगाए जाने के विरोध में पाकिस्तान ने शिमला समझौते से हटने का ऐलान किया है. 1972 में हुए इस समझौते में ऐसा क्या है, जिससे पाकिस्तान ने इसे भारत के खिलाफ इस्तेमाल किए जाने वाले कदम के तौर पर पेश किया है?

शिमला समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो Image Credit: India Gov Portal

Phalgam Terror Attack के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ की गई Indus Waters Treaty को अनिश्चितकाल के लिए रोक दिया है. पाकिस्तान ने भारत के इस कदम का विरोध करते हुए Shimla Agreement, 1972 को सस्‍पेंड कर दिया है. जानते हैं यह समझौता क्यों हुआ और पाकिस्तान के इससे बाहर होने पर किसे कितना नुकसान हो सकता है.

क्यों हुआ शिमला समझौता?

1971 में बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में बुरी तरह हारने के बाद पाकिस्तान ने भारत के साथ संबंध सामान्य बनाने के लिए यह समझौता किया था. मोटे तौर पर यह समझौता इस बात के लिए किया गया था कि दोनों देश आपसी विवादों को शांतिपूर्वक द्विपक्षीय बातचीत के जरिये हल करेंगे.

पाकिस्तान ने क्या कहा?

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से जारी एक बयान में कहा गया है, “जब तक पाकिस्तान के अंदर भारत आतंकवाद को बढ़ावा देने, अंतरराष्ट्रीय हत्याओं और कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का पालन नहीं करेगा, तब तक पाकिस्तान भारत के साथ सभी द्विपक्षीय समझौतों को स्थगित रखने के अधिकार का प्रयोग करेगा, जिसमें शिमला समझौता भी शामिल है.”

कब हुआ शिमला समझौता?

1971 में बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में पाकिस्तान के 90 हजार से ज्यादा सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने घुटने टेकते हुए आत्मसमर्पण किया. इसके बाद 2 जुलाई, 1972 को उस समय के पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो भारत आए और शिमला में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किए. हिमाचल प्रदेश के बार्न्स कोर्ट मौजूदा राजभवन में हुआ यह समझौता भारत के उदारवाद का प्रतीक है.

क्या है शिमला समझौता?

शिमला समझौते का पहला बिंदू दोनों देशों के बीच शांति स्थापना की बात करता है. इसमें कहा गया है कि दोनों देशों की सरकार आपसी संघर्ष को खत्म कर सीमा पर शांति स्थापित करेंगी, ताकि अपने संसाधन और ऊर्जा का इस्तेमाल नागरिकों के कल्याण के लिए किया जा सकता है.

किसे होगा नुकसान?

पाकिस्तान के पास भारत के खिलाफ सिंधु समझौते जैसा कोई डिप्लोमैटिक हथियार नहीं है, जिससे भारत के लिए कोई समस्या खड़ी हो सके. ऐसे में खिसियानी बिल्ली खंभा नोंचे जैसी हालत में पाकिस्तान ने शिमला समझौता रद्द किया है, जिसके ज्यादातर प्रावधानों का पाकिस्तान पहले से ही पालन नहीं कर रहा है. इस समझौते में सिर्फ एक ऐसी शर्त है, जिससे पाकिस्तान भारत पर दबाव बड़ा सकता था. यह शर्त कश्मीर मुद्दे के द्विपक्षीय हल से जुड़ी की है. इस शर्त के हिसाब से पाकिस्तान कश्मीर के मुद्दे में किसी तीसरे पक्ष को नहीं शामिल करेगा. लेकिन, कभी चीन, तो कभी संयुक्त राष्ट्र में जाकर बार-बार पाकिस्तान इस मामले में दखल की मांग कर इस शर्त का उल्लंघन कर चुका है. ऐसे में शिमला समझौते में अब ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसका इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया जा सके.

भारत को मिल सकता है ये फायदा

अगर युद्ध या झड़प की स्थिति बनती है, तो अब भारत इस समझौते की अनुपस्थिति में पाकिस्तान की सीमा में दाखिल हो सकता है और पाकिस्तान के नक्शे को हमेशा के लिए बदल सकता है. इसके अलावा भारत चाहे, तो पाकिस्तान के खैबर पख्तुनख्वा और बलोचिस्ताान जैसे इलाकों में दखल देकर पाकिस्तान के लिए मुसीबतें बढ़ा सकता है. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भारत की नीति हमेशा परस्पर अखंडता और संप्रभुता के सम्मान की रही है.

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