
शेयरहोल्डर आप, चलेगी कंपनी के मालिक की! क्या लिस्टेड कंपनियों में बेमानी है छोटे निवेशकों का वोट?
भारतीय कंपनियों में शेयरहोल्डिंग का पैटर्न धीरे-धीरे बदल रहा है. बीते तीन सालों में प्रमोटरों की हिस्सेदारी थोड़ी घटी है, लेकिन उनका असर अब भी बना हुआ है. भले ही संस्थागत निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़ रही हो, लेकिन एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि ज्यादातर कंपनियों में प्रमोटरों के पास अब भी बड़ी हिस्सेदारी है, जिससे वे अहम फैसलों पर नियंत्रण रखते हैं. तो सवाल उठता है- क्या कॉर्पोरेट इंडिया में बोर्डरूम के फैसले लोकतांत्रिक तरीके से लिए जाते हैं? क्या प्रमोटरों के फैसलों का अल्पसंख्यक शेयरधारकों की वोटिंग पर असर पड़ता है? 2024 में Nifty 500 कंपनियों के केवल 0.2% प्रस्तावों को ही शेयरधारकों ने खारिज किया. इसका मतलब है कि अधिकतर फैसलों को बिना किसी विरोध के मंजूरी मिल जाती है. इस चुनौती से निपटने के लिए विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं कि अल्पसंख्यक शेयरधारकों को अधिक ताकत दी जाए, ताकि वे कंपनी के अहम फैसलों में अपनी बात प्रभावी रूप से रख सकें. इस विषय पर देखें वीडियो, रोहित कौशिक और संदीप ग्रोवर के साथ.
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