भारत में है शतरंज का शहर, दुनिया के दिग्गज इसके बोर्ड और प्यादे से हैं खेलते, यूरोप-अमेरिका तक फेवरेट

भारत के डी. गुरेश ने विश्व चैंपियनशिप में चीन के डिंग लिरेन को हराकर सबसे कम उम्र में चैंपियन बनने का खिताब जीता. जिस शतरंज पर यह खेला गया, वह अमृतसर का बना था. 'शतरंज का शहर' कहे जाने वाले अमृतसर में 1800 से शतरंज बनाने का काम हो रहा है. यहां बनी लकड़ी की शतरंज सेट्स दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं और यूरोप इसका बड़ा बाजार है.

डी. गुरेश जिस शतरंज पर खेलकर वह विश्व चैंपियन बने, वह भी भारत में ही बना था. Image Credit:

सिंगापुर में गुरुवार को संपन्न हुए विश्व चैंपियनशिप में भारत के डी. गुकेश ने चीन के डिंग लिरेन को हराकर सबसे कम उम्र में विश्व चैंपियन बनने का तमगा हासिल किया. लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि जिस शतरंज पर खेलकर वह विश्व चैंपियन बने, वह भी भारत में ही बना था. हम बात कर रहे हैं ‘शतरंज का शहर’ के नाम से मशहूर अमृतसर की, जहां का बना शतरंज और उसके मोहरे न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध हैं.

1800 से शुरू हुआ सफर

अमृतसर में शतरंज बनाने की कहानी बेहद दिलचस्प है. 1800 में यह शहर हाथीदांत की ज्वैलरी के लिए प्रसिद्ध था. लेकिन उस समय सरकार ने हाथीदांत के व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसके बाद इससे जुड़े कारीगर लकड़ी के काम करने लगे. यहीं से शतरंज बनाने का काम शुरू हुआ, जो आज भी यह शिल्प पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है.

20-30 छोटी फैक्ट्रियां

अमृतसर में आज भी शतरंज बनाने वाली लगभग 20-35 छोटी और मध्यम फैक्ट्रियां हैं, जिनमें करीब 1,000 से अधिक कारीगर और 500 एक्सपर्ट काम कर रहे हैं. इन फैक्ट्रियों में शतरंज और इसके मोहरे ज्यादातर हाथ से बनाए जाते हैं. यह काम आज भी कई परिवारों के लिए एक परंपरागत पेशा बना हुआ है.

कितना बड़ा है उद्योग?

अमृतसर का शतरंज उद्योग बहुत बड़ा नहीं है, लेकिन इसका महत्व काफी ज्यादा है. जानकारी के अनुसार, इसका सालाना टर्नओवर लगभग 20 करोड़ रुपये है. इसमें से 5 करोड़ रुपये का कारोबार घरेलू बाजार में होता है, जबकि शेष अंतरराष्ट्रीय बाजार में. लकड़ी से बने इन शतरंज सेट और मोहरों की कीमत 5,000 रुपये से 25,000 रुपये तक होती है.

यूरोप है बड़ा मार्केट

अमृतसर में बने शतरंज सेट और मोहरे अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, यूरोप (नॉर्वे, जर्मनी, इटली, फ्रांस और अन्य देशों), ऑस्ट्रेलिया, यूक्रेन, ईरान और इजरायल जैसे देशों को निर्यात किए जाते हैं. अमृतसर के कई लोग यूरोप की कंपनियों से जुड़े हुए हैं और उनके लिए ऑर्डर पर शतरंज बनाते हैं.

लकड़ी के शतरंज पर ही होते हैं टूर्नामेंट

दुनिया भर में होने वाले शतरंज के टूर्नामेंट लकड़ी के शतरंज पर ही खेले जाते हैं. इसके अलावा, यूरोप के देशों में इसकी मांग ज्यादा है, क्योंकि वहां के लोग लकड़ी के शतरंज पर खेलना ज्यादा पसंद करते हैं. हालांकि भारत में पिछले सालों में शतरंज लोकप्रिय हुआ है, लेकिन यहां के लोग डिजिटल फॉर्मेट पर शतरंज खेलना ज्यादा पसंद करते हैं. डी. गुकेश की जीत के बाद इससे जुड़े लोगों के मन में एक उम्मीद जगी है कि शायद भारत में भी इसकी मांग में बढ़ोतरी देखने को मिले.

GI टैग की मांग कर रहे कारीगर

शतरंज इंडस्ट्री से जुड़े लोग इसके लिए भौगोलिक संकेत (GI) टैग की मांग कर रहे हैं, ताकि उनके शिल्प को संरक्षित और बढ़ावा दिया जा सके. कारीगरों की मांग है कि हाथ से शतरंज बनाना अमृतसर की खासियत और हमारी विरासत का हिस्सा है और सरकार को इसके संरक्षण के लिए कदम उठाना चाहिए.