सबसे अमीर NRI हिंदूजा की भारत में फेल हुई ‘बैंकिंग इम्युनिटी’, IndusInd में दरार; 20 साल में सबसे बड़ा झटका

मार्च तिमाही में IndusInd Bank की रिपोर्ट ने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया. मुनाफे की आदत डाल चुकी इस बैंक की इस बार की घोषणा में कुछ ऐसा था, जो पहले कभी नहीं हुआ था. निवेशकों को इससे बड़ा घाटा हुआ है.

इंडसइंड बैंक संकट में Image Credit: FreePik

21 मई 2025 को जब इंडसइंड बैंक ने अपनी तिमाही रिपोर्ट पेश की, तो निवेशकों और बैंकिंग सेक्टर को गहरा झटका लगा. 20 वर्षों से मजबूत इस प्राइवेट बैंक ने पहली बार अपने तिमाही रिजल्ट में घाटे की घोषणा की. मजबूत फंडामेंटल्स, शानदार ग्रोथ और हाई वैल्यूएशन के साथ दिखने वाला ये बैंक मुनाफेदार निजी बैंकों की फेहरिस्त में आता था. लेकिन इसके तिमाही नतीजों ने उलट कहानी बयां की. कंपनी को 2328.92 करोड़ रुपये का नेट लॉस हुआ था. ये सिर्फ आंकड़ा नहीं था, बल्कि उस ‘परफेक्ट’ बैंकिंग इमेज की असलियत है जिसे निवेशकों और आम लोगों ने वर्षों से भरोसे के साथ देखा था.

मगर यह संकट अचानक नहीं आया. यह उन छोटी-छोटी दरारों का नतीजा था जिन्हें वक्त रहते नजरअंदाज कर दिया गया. इस रिपोर्ट में हम सिर्फ नतीजों की बात नहीं करेंगे, बल्कि उस सफर को समझने की कोशिश करेंगे जिसमें एक बैंक ‘बैलेंस शीट स्टार’ से ‘ट्रस्ट क्राइसिस’ तक आ पहुंचा.

जब हर आंकड़ा शानदार दिख रहा था

2019 से लेकर 2024 तक का दौर इंडसइंड बैंक के लिए कई मायनों में दमदार रहा. बैंक का लोन बुक हर साल 13 फीसदी की दर से बढ़ता गया, नेट इंटरेस्ट मार्जिन यानी NIM स्थिर रूप से 4 फीसदी से ऊपर रहा जो कि बैंक की कमाई की नींव होता है.

ROA (1.5%) और ROE (14.5%) जैसे संकेतकों ने यह साफ किया कि बैंक पूंजी और संपत्तियों का इस्तेमाल बेहद दक्षता से कर रहा है. ग्रॉस NPA भी महज 2.3 फीसदी के आसपास रहा और पूंजी पर्याप्तता दर (CAR) औसतन 17.4%. यानी बैंक न सिर्फ लाभ में था, बल्कि जोखिम प्रबंधन के लिहाज से भी काफी मजबूत दिख रहा था.

इस परफॉर्मेंस ने निवेशकों को आकर्षित किया. 2023 की शुरुआत में जहां रिटेल शेयरधारकों की संख्या 4 लाख से कम थी, वहीं 2024 के अंत तक यह 6 लाख के पार पहुंच गई. डोमेस्टिक संस्थागत निवेशक भी 25 फीसदी से बढ़कर 40 फीसदी तक हिस्सेदार बन चुके थे. सब कुछ एक आदर्श निवेश की तस्वीर पेश कर रहा था.

चूक कहां हो रही थी?

अगर आज हम पीछे मुड़कर देखें, तो पाएंगे कि कुछ ‘रेड फ्लैग्स’ उस वक्त भी थे. 2018 का NBFC संकट और इंफ्रास्ट्रक्चर फंडिंग का झटका इंडसइंड पर भी पड़ा था, हालांकि उसे ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई.

सबसे गंभीर मामला 2021 में सामने आया, जब बैंक की माइक्रोफाइनेंस इकाई भारत फाइनेंशियल इन्क्लूजन में लोन एवरग्रीनिंग का मामला सामने आया. यानी पुराने लोन चुकाने के लिए नए लोन देना, ये एक तरीका होता है जिससे लोन की वास्तविक हालत छिप जाती है. लेकिन बाजार ने इसे एक ‘एक्सेप्शन’ मानकर दरकिनार कर दिया. बैंक के पुराने रिकॉर्ड और कमाई की मजबूती ने निवेशकों को आश्वस्त रखा.

वित्त वर्ष 2025 की दूसरी और तीसरी तिमाही में माइक्रोफाइनेंस लोन पोर्टफोलियो में डिफॉल्ट बढ़ने लगे. इसे भी सेक्टर की सामान्य चुनौती मानकर नजरअंदाज किया गया. बाजार मान रहा था कि बैंक इससे उबर जाएगा. इसी आशा में, जबकि वैल्यूएशन नीचे गिर रहा था (P/B 2 से नीचे, P/E 10 के आसपास), कई निवेशकों ने इसे ‘रीरेटिंग का मौका’ समझकर खरीदारी की.

पिछले 5 वर्षों में IndusInd Bank के आंकड़े प्रभावशाली रहे
मेट्रिक वित्त वर्ष 2020-24 (FY20-24)
5 वर्षों में ऋण पुस्तिका वृद्धि (% वार्षिक) 13.0
5 वर्षों का औसत शुद्ध ब्याज मार्जिन (%) 4.1
5 वर्षों का औसत इक्विटी पर रिटर्न (ROE) (%) 14.5
5 वर्षों का औसत संपत्ति पर रिटर्न (ROA) (%) 1.5
5 वर्षों का औसत सकल एनपीए अनुपात (GNPA) (%) 2.3
5 वर्षों का औसत पूंजी पर्याप्तता अनुपात (%) 17.4
5 वर्षों का औसत मूल्य/पुस्तक अनुपात (P/B)* 1.7
*P/B औसत केवल FY25 की तीसरी तिमाही तक का लिया गया है, जिसके बाद विसंगतियाँ सामने आने लगीं।

मार्च 2025 की तिमाही ने दरारें दिखा दी

10 मार्च को जो खुलासा हुआ, उसने सबको चौंका दिया. बैंक ने 1,960 करोड़ रुपये की अन्य आय को रिवर्स किया, जिसमें डेरिवेटिव और माइक्रोफाइनेंस अकाउंटिंग एरर शामिल थे:

ये बदलाव केवल तकनीकी नहीं थे, ये पारदर्शिता और इंटरनल मैनेजमेंट पर सवाल उठाने वाले थे. हालांकि इन सब मामले में बैंक के प्रबंधन का कहना है कि ये घटनाएं एक बार की थीं, और सुधार की प्रक्रिया जारी है.

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निवेशकों के लिए क्या सबक

वॉरेन बफेट ने एक बार कहा था-

“बैंक में असल बात यह होती है कि उनके लोन कितने अच्छे हैं, लेकिन यह समझना बहुत मुश्किल होता है.”

इंडसइंड बैंक का मामला इसी बात की मिसाल है. बैंकिंग सेक्टर में संख्या हमेशा सच्चाई नहीं बताती. कभी-कभी वो सिर्फ एक सतह होती है, जिसके नीचे कई परतें छिपी होती हैं. इंडसइंड, निवेशकों के लिए भी एक सबक है. इंडसइंड की कहानी सिखाती है कि अगर कोई स्टॉक ‘सस्ता’ दिख रहा है और उसके पीछे स्पष्ट कारण नहीं हैं, तो उसमें खतरे हो सकते हैं. कम वैल्यूएशन हमेशा अवसर का संकेत नहीं होता, कभी-कभी यह जोखिम का इशारा भी होता है.

गोपीचंद हिंदूजा और फैमिली देश के सबसे अमीर NRI हैं. IndusInd Bank की जड़ें हिंदूजा ग्रुप से गहराई से जुड़ी हुई हैं. बैंक की कल्पना और शुरुआत हिंदूजा ग्रुप ने की थी, जिसमें दिवंगत चेयरमैन श्रीचंद पी. हिंदूजा की अहम भूमिका रही. हिंदूजा ग्रुप की निवेश शाखा IndusInd International Holdings Ltd (IIHL) भी बैंक की प्रमुख प्रमोटर कंपनी है.