ब्रिटेन की दिग्गज ‘Vodafone’ भारत में फेल! 18 साल में ये गलतियां पड़ी भारी, 20 करोड़ कस्टमर उठाएंगे नुकसान?
कभी देश की अग्रणी टेलीकॉम कंपनियों में शामिल रही Vi अब एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां से आगे का रास्ता धुंधला दिखता है. भारी कर्ज, कोर्ट के फैसले और सरकार से राहत की उम्मीदें. कहानी में बहुत कुछ ऐसा है जो भारत के टेलीकॉम इंडस्ट्री और कंपनी के गिरावट को करीब से दिखाता है.

Why did the Vodafone Idea fail: एक वक्त था जब वोडाफोन का “हैलो!” पूरे भारत में गूंजता था. ब्रांड प्रचार में दिखने वाला ‘पग ब्रीड’ का कुत्ता इतना पॉपूलर हो गया था कि उसे लोगों ने वोडाफोन वाला कुत्ता बोलना शूरू कर दिया. आज वही, देश की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनियों में शुमार रही वोडाफोन आज अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. भारी कर्ज, कड़े सरकारी नियम, रिलायंस जियो की आक्रामक एंट्री और तकनीकी पिछड़ापन, इन सबने मिलकर कंपनी को इस हाल में पहुंचा दिया है कि अब उसके पास सरकार से मदद की गुहार लगाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा. कंपनी ने ये तक संकेत दे दिए हैं कि अगर सरकारी मदद नहीं मिली, तो 2026 के बाद वोडाफोन आइडिया (Vi) ऑपरेशनल नहीं रह पाएगी. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि ब्रिटेन की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी भारत जैसे विशाल बाजार में लगभग घुटनों पर आ गई?
भारत में एंट्री और Idea से विलय
वोडाफोन ने साल 2007 में हचिसन एस्सार लिमिटेड में हिस्सेदारी खरीदकर भारत में कदम रखा. हच का रिब्रांडिंग कर कंपनी वोडाफोन इंडिया बनी और कुछ ही समय में यह देश की प्रमुख टेलीकॉम कंपनियों में शामिल हो गई.
दूसरी ओर, आदित्य बिड़ला ग्रुप की आइडिया सेल्युलर 1995 से ही भारतीय बाजार में सक्रिय थी और धीरे-धीरे उसने भी बड़ा उपभोक्ता आधार खड़ा कर लिया. साल 2018 में दोनों कंपनियों का मर्जर हुआ, जिससे बनी वोडाफोन आइडिया लिमिटेड।. मकसद था कि दो बड़ी कंपनियों के संसाधनों और नेटवर्क को मिलाकर जियो जैसी नई कंपनियों का मुकाबला किया जा सके.
विलय की गलती और जियो का झटका
वोडाफोन और आइडिया दोनों की हालत पहले ही कमजोर थी और इनका विलय ऐसे समय में हुआ जब बाजार में भारी कंपटीशन चल रहा था. मर्जर से पहले ही इंडस्ट्री में टैरिफ वॉर छिड़ चुका था. रिलायंस जियो की एंट्री (2016) ने पूरे सेक्टर को हिला कर रख दिया. एशिया के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाली इस कंपनी ने शुरुआती दौर से ही अरबों डॉलर का निवेश कर दिया. मुफ्त डेटा और कॉलिंग ने ग्राहकों को लुभाया और पुराने खिलाड़ियों की कमर तोड़ दी. कुछ साल में ही जियो लगभग 40 अरब डॉलर (3.3 लाख करोड़ रुपये) से अधिक निवेश कर चुका, यह वह राशि है जिसकी Vi और अन्य पारंपरिक टेलीकॉम कंपनियां सिर्फ कल्पना कर सकती हैं. जियो ने इतनी आक्रामक मूल्य नीति अपनाई कि Vi जैसे पुराने खिलाड़ियों के पास अपने कर्ज चुकाने तक की गुंजाइश नहीं बची.
वोडाफोन आइडिया का मर्जर न तो तकनीकी रूप से सफल रहा और न ही रणनीतिक रूप से. यह विलय ‘सिंर्जी’ यानी संसाधनों का एकीकरण नहीं कर पाया. नेटवर्क एकीकरण में देरी हुई, ब्रांड छवि बंटी रही और ग्राहक लगातार कम होते गए. कंपनी पर पहले से ही भारी कर्ज था और ऊपर से AGR (एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू) और स्पेक्ट्रम की बकाया राशि ने संकट और बढ़ा दिया.
AGR का बोझ और सरकारी मदद
जियों के एंट्री से जब कंपनी डगमगाने लगी और कर्ज में डूबने लगी तो सरकार ने मदद के हाथ बढ़ाएं. फरवरी 2023 में सरकार ने 16,133 करोड़ रुपये के ब्याज को शेयरों में बदल दिया, जिससे उसे कंपनी में 33 फीसदी हिस्सेदारी मिली. अप्रैल 2024 में कंपनी ने 2024 में 18,000 करोड़ रुपये का फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (FPO) लाई, जो सफल रही और सात गुना सब्सक्राइब हुआ. इससे सरकार की हिस्सेदारी घटकर 23.8 फीसदी हो गई, जो पहले 33% थी. कुल मिलाकर कंपनी ने 24,000 करोड़ रुपये की फंडिंग जुटाई, जिसने कंपनी को थोड़ी राहत दी. लेकिन यह लॉन्गटर्म समाधान नहीं था.
मार्च 2024 तक वोडाफोन आइडिया पर कुल 2.03 लाख करोड़ रुपये का सरकारी बकाया था, जिसमें 1.33 लाख करोड़ रुपये स्पेक्ट्रम भुगतान और 70,320 करोड़ रुपये AGR से संबंधित देनदारी शामिल थी. साल 2024 में कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में तीन राहतें मांगीं — गलत गणनाओं में सुधार, पेनल्टी में 50 फीसदी की कटौती और ब्याज दर को SBI की प्राइम रेट से 2 फीसदी ऊपर रखने की मांग. मांग को खारिज कर दिया गया.
2025 में फिर सरकार-कोर्ट से मदद की गुहार
मार्च 2025 में Vi ने टेलीकॉम सेक्रेटरी को पत्र लिखकर बचे हुए 52,000 करोड़ रुपये AGR बकाए को इक्विटी में बदलने की फीर से मांग की. अगर सरकार ये फैसला ले लेती है तो इससे सरकार की हिस्सेदारी बढ़कर 49 फीसदी हो सकती है. इससे AGR का 75% बोझ और कुल कर्ज का करीब 25% हल्का हो सकता है. हालांकि सरकार ने इस बार हामी नहीं भरी. कंपनी ने इसकी शिकायत सुप्रीम कोर्ट से की और कंपनी को रियायत देने की गुहार लगाई. लेकिन 19 मई को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कंपनी की रियायत वाली याचिका खारिज कर दी. कोर्ट ने सभी मांगों को “गलत धारणा पर आधारित” बताते हुए खारिज कर दिया. इसके बाद कंपनी के शेयर 10 फीसदी गिरकर 6.72 रुपये तक पहुंच गए.
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अगर Vi बंद हो जाता है तो…
वोडाफोन आइडिया के पास आज भी करीब 20 करोड़ ग्राहक हैं. अगर कंपनी बंद होती है तो यह भार अकेले जियो और एयरटेल नहीं उठा पाएंगे. इससे नेटवर्क पर दबाव, सर्विस क्वालिटी में गिरावट और टैरिफ बढ़ने की संभावना है.
देश में कभी 12 टेलीकॉम ऑपरेटर थे, अब अगर Vi भी बंद हो गया तो भारतीय बाजार दो कंपनियों(जियो और एयरटेल) के बीच बंट जाएगा. यह ग्राहक के लिए अच्छी खबर नहीं है क्योंकि विकल्पों की कमी से प्रतिस्पर्धा घटेगी और इनोवेशन पर असर पड़ेगा.
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