Women’s World Cup: दर्द को गर्व में… संघर्ष को विरासत में बदलने का मौका, लड़कियों लहरा दो तिरंगा; धड़का दो अरबों दिल

Women's World Cup 2025: भारत रविवार को नवी मुंबई के डीवाई पाटिल स्टेडियम में मजबूत दक्षिण अफ्रीकी टीम के खिलाफ आईसीसी खिताब के अपने लंबे इंतजार को खत्म करने के इरादे से उतरेगा. एक खिताबी जीत भारत में महिला क्रिकेट में अभूतपूर्व रुचि पैदा कर सकती है, जिससे युवा लड़कियों की एक नई पीढ़ी इस खेल को अपनाने के लिए प्रेरित होगी.

आईसीसी महिला विश्व कप फाइनल. Image Credit: BCCI

साल 2005, जब मिताली राज की कप्तानी में भारत फाइनल में पहुंचा था, तब देश के ज्यादातर लोगों को शायद ही पता था कि दक्षिण अफ्रीका में महिला विश्व कप खेला जा रहा है. उस वक्त पूरे देश में क्रिकेट के दीवानों की जुबां से लेकर अखबारों के पन्नों तक में, ग्रेग चैपल और पुरुष टीम के बीच के विवाद की कहानियां छाई थीं. ग्रेग चैपल तब भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम के कोच थे. पुरुष टीम की सफलताओं की चमकती सुर्खियों और विवादों के कोलाहल के बीच महिला टीम गुमनाम थी, जबकि वो विश्व कप के फाइनल में जगह बना चुकी थी. लेकिन क्रिकेट के जुनून से मतवाले देश के लिए यह उपलब्धि भूले-बिसरे स्कोरकार्ड में तब्दील होकर रह गई.

तब भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड आधिकारिक तौर पर महिला टीम से नहीं जुड़ा था.

अलग होगी दोपहर

अब 2025 की बात करें तो भारत अपने तीसरे विश्व कप के फाइनल में है. इस बार नवी मुंबई का खचाखच भरा डीवाई पाटिल स्टेडियम नीले समंदर में तब्दील हो जाएगा. स्टैंड खचाखच भरे होंगे, दिल एक साथ धड़क रहे होंगे, शोर का मीटर हाई होगा और आंखों में वर्षों का चमकता एक सपना शायद पूरा होगा. और ये दो दशक पहले की उस खामोश दोपहर से बिल्कुल अलग दोपहर होगी.

टूटा दिल, लेकिन मजबूत हुए हौसले

साल 2017 में इंग्लैंड के खिलाफ फाइनल में भारतीय टीम खिताब के बहुत करीब पहुंच गई थी. लेकिन रन कुछ कम रह गए और फिर आंसू ज्यादा बह गए. लॉर्ड्स की उस रात ने दिल तो तोड़े, लेकिन विश्वास भी जगाया. विश्वास यह कि भारतीय महिलाएं सिर्फ सपने नहीं देख सकतीं, बल्कि हिम्मत भी दिखा सकती हैं. वो हार एक वादा बन गई कि हम वापसी करेंगे. पहले से अधिक मजबूती के साथ, जोरदार अंदाज में अजेय रहते हुए और आंखों की कोर पर मोटे आंसुओं की तरह आ अटके सपने को पूरा करने के लिए.

पूरा होने की दहलीज पर वादा

अब 2025 में वो वादा पूरा होने की कगार पर है. एक कप्तान जो अपने जख्मों को मेडल्स की तरह पहनती है और एक ऐसी पीढ़ी का नेतृत्व कर रही है जो झुकने को तैयार नहीं है. साल 1983 की जीत ने भारतीय पुरुष क्रिकेट को हमेशा के लिए बदल दिया था. बयालीस साल बाद, हरमनप्रीत कौर और उनकी योद्धाओं के पास भी ऐसा ही करने का मौका है. मौका है दर्द को गर्व में और संघर्ष को विरासत में बदलने का. फिर साल 2025 हमेशा के लिए फैंस के दिलों-दिमाग में ट्रॉफी के साथ बस जाएगा और भारतीय महिला क्रिकेट सफलताओं के आसमान में अपनी कामयाबी का एक सितारा टांक देगा.

फिसल गया था ख्बाव

साल 2005 और 2017 में भारत अपने चैंपियन बनने के ख्वाब को मुकम्मल करने की दहलीज पर था, लेकिन दोनों बार वो टूट गया. 2005 में करेन रोल्टन के शानदार 107 रनों ने भारत को 98 रनों से रौंद दिया और एक सपने को उड़ान भरने से पहले ही तोड़ दिया. लेकिन 2017 ने एक गहरा घाव दिया. लॉर्ड्स की चमकदार रोशनी में अन्या श्रुबसोलें के छह विकेटों के तूफान ने भारतीयों के दिलों को झकझोर दिया. एक ऐसा रन चेज, जो बहुत करीब लग रहा था, वो हाथों से फिसकलर बहुत दूर निकल गया. एक समय सात विकेट हाथ में होने के साथ 44 गेंदों पर सिर्फ 38 रनों की जरूरत थी. जीत लगभग तय लग रही थी, तय क्या लगभग नियति में लिखी हुई नजर आ रही थी. लेकिन फिर खेल में क्रूर मोड़ आया और जीत कपूर की तरह हवा हो गई. भारत सिर्फ 9 रनों से हार गया.

मिताली राज की खामोश विदाई

मिताली राज के लिए यह फाइनल झकझोरने वाला था, वो दूसरी बार फाइनल से खाली हाथ लौट रही थीं. ये हार उन्हें पहले से अधिक भारी लग रही थी. मिताली ने भारत के 2022 के सेमीफाइनल में नहीं पहुंच पाने के बाद, जब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहा, तो यह हार उस दिग्गज खिलाड़ी के लिए एक शांत और दर्दनाक विदाई में तब्दील हो गई थी.

दर्द को गर्व में बदलने का मौका

2025 में कमान और जिम्मेदारी हरमनप्रीत कौर के हाथों में है. हो सकता है कि वो अपना आखिरी वनडे विश्व कप खेल रही हों, लेकिन उनकी आंखों में अभी भी आग धधक रही है. पहली बार वो सबसे बड़े मंच पर भारत का नेतृत्व कर रही हैं. सुपर संडे के दिन हरमनप्रीत के पास वर्षों के दर्द को गर्व में बदलने का मौका है और मौका न केवल एक ट्रॉफी उठाने का है, बल्कि उन पीढ़ियों के बोझ को भी उठाने का है, जिन्होंने इस सपने को देखने की हिम्मत की है.

जाना-पहचाना भूत

भारत के फाइनल में कदम रखते ही एक जाना-पहचाना सा भूत फिर से उमड़ पड़ा है. वो ये है कि भारत ने 2005 के बाद से दक्षिण अफ्रीका को किसी भी वनडे विश्व कप में नहीं हराया है. उस समय भारत ने अपने पहले तीन मुकाबलों में दबदबा बनाया था. उसके बाद से प्रोटियाज ने तीन जीत के साथ वापसी की है और हर जीत अधूरे काम की याद दिलाती है. इस टूर्नामेंट के पहले विशाखापट्टनम में भारत जीत के बेहद करीब था, लेकिन नादिन डी क्लार्क की निडर पारी ने मैच छीन लिया.

लेकिन इस भव्य मंच पर, अतीत कोई मायने नहीं रखता. जब पहली गेंद फेंकी जाती है, तो सब कुछ फिर से शुरू होता है यानी शून्य से शुरू होता है. दक्षिण अफ्रीका के लिए यह इतिहास रचने का एक और मौका है. भारत के लिए यह अपना इतिहास फिर से लिखने का मौका है. दोनों ही टीमों पर भारी दबाव होगा.

इंतजार दीवानगी दिखाने की

भारत के लिए रविवार की जीत वर्षों के करीबी मुकाबलों और दिल टूटने के गम को धो देगी. यह जख्म के निशान को मेडल में और संदेह को नियति में बदल देगी. पिछले साल पुरुष टीम हार की कगार से उठकर टी20 विश्व कप का खिताब जीतने में कामयाब रही थी. अब, महिलाओं की बारी है. उसी जोश को जगाने की, आखिरी सांस तक लड़ने की और डेढ़ अरब दिलों की धड़कनों को गर्व और भावुकता के भाव में धड़काने की.

देश को इंतजार है, लड़कियों के हाथों में चमचमाती ट्रॉफी देखने की. टीवी के सामने सोफे पर से मुट्ठी बांधकर उछल पड़ने की. तिरंगे को इंतजार है हवा में झूम उठने की और आसमान को इंतजार है आतिशबाजी की रोशनी के बीच चौंधियाती आंखों से नए बनते इतिहास को निहारने की. उम्मीद है कि आज नियति आखिरकार मुस्कुरा ही दे.