प्रॉपर्टी का मालिकाना हक सिर्फ रजिस्ट्री से काफी नहीं, विक्रेता का वैध होना जरूरी, सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि केवल प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन से मालिकाना हक नहीं मिलता. यदि विक्रेता के पास पहले से वैध दस्तावेज नहीं हैं, तो रजिस्टर्ड बिक्री भी वैध नहीं मानी जाएगी. खरीदार को मालिकाना हक साबित करने के लिए अन्य कानूनी दस्तावेजों की जरूरत होगी. इस फैसले से धोखाधड़ी पर रोक लगेगी और प्रॉपर्टी लेनदेन में पारदर्शिता बढ़ेगी.
Property ownership: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है जिसने प्रॉपर्टी खरीदने वालों और रियल एस्टेट सेक्टर को हिला कर रख दिया है. फैसले के अनुसार, केवल प्रॉपर्टी का रजिस्ट्रेशन करवा लेने से मालिकाना हक नहीं मिल जाता. इसके लिए खरीदार को कानून के अनुसार अपना मालिकाना हक साबित करना होगा. अगर संपत्ति बेचने वाले के पास वैध मालिकाना हक का सबूत नहीं है, तो उसके द्वारा की गई बिक्री को वैध नहीं माना जाएगा. कोर्ट के इस फैसले से अब प्रॉपर्टी खरीदते समय पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य हो गया है और खरीदारों को अधिक सतर्क रहना पड़ेगा. खरीदारी करते समय यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि विक्रेता के पास वैध मालिकाना हक मौजूद हो. यह फैसला धोखाधड़ी पर रोक लगाएगा और ट्रांसपेरेंसी को बढ़ावा देगा.
सुप्रीम कोर्ट का क्या था फैसला
India Law की रिपोर्ट के मुताबिक, तेलंगाना के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई प्रॉपर्टी बिना रजिस्टर्ड सेल डीड के खरीदी गई है, तो बाद में भले ही उसका रजिस्ट्रेशन हो जाए या फिजिकल पजेशन मिल जाए, इससे कानूनी मालिकाना हक नहीं मिलता. कोर्ट ने साफ किया कि वैध मालिकाना हक के लिए पूरा कागजात होने जरूरी हैं.
सिर्फ रजिस्ट्रेशन से नहीं मिलता मालिकाना हक
कोर्ट के मुताबिक रजिस्ट्रेशन केवल एक प्रक्रिया है, न कि मालिकाना हक का सबूत. अगर विक्रेता के पास खुद ही वैध मालिकाना हक नहीं है तो खरीदार का रजिस्ट्रेशन कोई मायने नहीं रखता. खरीदार को पूरे ट्रांजेक्शन चेन का ध्यान रखना होगा और मालिकाना हक के सभी सबूत प्रस्तुत करने होंगे.
कौन से दस्तावेज हैं जरूरी
प्रॉपर्टी का टाइटल डीड, सेल डीड, म्यूटेशन सर्टिफिकेट, एन्कम्ब्रेंस सर्टिफिकेट, पजेशन लेटर, टैक्स रसीदें और अलॉटमेंट लेटर जैसे दस्तावेज मालिकाना हक साबित करने में मदद करते हैं. अगर संपत्ति विरासत में मिली हो तो वसीयत या सक्सेशन सर्टिफिकेट की जरूरत होती है.
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इस फैसले का क्या असर होगा
यह फैसला खरीदारों और बिल्डरों को सतर्क करेगा. खरीदारों को अब हर दस्तावेज की जांच करनी पड़ेगी. रियल एस्टेट एजेंट्स को भी डॉक्यूमेंटेशन में सावधानी रखनी होगी. इससे प्रॉपर्टी सौदों में समय और लागत जरूर बढ़ेगी, लेकिन विवाद कम होंगे और ट्रांसपेरेंसी बढ़ेगी.