विदेश से भेजे गए पैसे पर 10 फीसदी ही लगेगा TDS, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की IT डिपार्टमेंट की अपील
TDS on foreign Remittances: इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की अपील को खारिज करते हुए, जिसमें एमफैसिस, विप्रो और मंथन सॉफ्टवेयर सर्विसेज जैसी अलग-अलग इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी कंपनियों द्वारा सोर्स पर 20 फीसदी ज्यादा टैक्स (TDS) काटने की मांग की गई थी.
TDS on foreign Remittances: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को साफ किया कि नॉन-रेसिडेंट एंटिटीज को भेजे गए पैसे पर सोर्स पर टैक्स डिडक्शन (TDS) 10 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता, जैसा कि अलग-अलग डबल टैक्स अवॉइडेंस एग्रीमेंट्स (DTAA) में बताया गया है और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की इससे अधिक की कोई भी मांग ट्रीटी के खिलाफ होगी. इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की अपील को खारिज करते हुए, जिसमें एमफैसिस, विप्रो और मंथन सॉफ्टवेयर सर्विसेज जैसी अलग-अलग इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी कंपनियों द्वारा सोर्स पर 20 फीसदी ज्यादा टैक्स (TDS) काटने की मांग की गई थी.
10 फीसदी का कैप
ईटी में छपी खबर के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि टैक्स लायबिलिटी कैलकुलेट करने के लिए इनकम टैक्स एक्ट 1961 में TDS के प्रोविजन को DTAA के साथ पढ़ा जाना चाहिए और जब विदेशी रिसीवर ट्रीटी बेनिफिट्स के लिए एलिजिबल हो, तो डिडक्शन DTAA में बताई गई 10 फीसदी कैप से अधिक नहीं हो सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
डिपार्टमेंट चाहता था कि सोर्स पर 20 फीसदी से अधिक टैक्स काटा जाए, क्योंकि ये कंपनियां इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 206AA के तहत परमानेंट अकाउंट नंबर (PAN) देने में नाकाम रही थीं. कर्नाटक हाई कोर्ट के 2022 के ऑर्डर को सही ठहराते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन कंपनियों द्वारा साइन किए गए DTAA में टैक्सेशन की दर, जो कुछ मामलों में 10 फीसदी थी, सेक्शन 206AA पर लागू होगी. हाई कोर्ट ने कहा था कि टैक्सिंग अथॉरिटी को 10 फीसदी से अधिक की डिमांड करने की इजाजत देने के लिए कोई और मतलब निकालना गलत होगा.
यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी 2023 में दिल्ली हाई कोर्ट के जुलाई 2022 के फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें यह भी कहा गया था कि सेक्शन 206AA के नियम DTAA के नियमों को ओवरराइड नहीं कर सकते.
कब हो सकती है 20 फीसदी दर
रेवेन्यू ने कोर्ट को बताया था कि सेक्शन 133A(2A)A के तहत एक सर्वे के दौरान, इन असेसी को बिना TDS काटे नॉन-रेसिडेंट एंटिटीज को पैसे भेजते हुए पाया गया. उन्होंने आगे तर्क दिया कि हर भुगतानकर्ता को एक परमानेंट अकाउंट नंबर देना जरूरी है और इसके न होने पर, सेक्शन 206-AA(1)(iii) के हिसाब से टैक्स की दर 20 फीसदी होगी.
सॉफ्टवेयर सपोर्ट और डेवलपमेंट सर्विस देने वाली कंपनियों ने सुनवाई के दौरान दलील दी थी कि उन्होंने DTAA के अनुसार अलग-अलग देशों में अलग-अलग प्राप्तकर्ता को टेक्निकल सर्विस के लिए पेमेंट किया था.
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