लगातार रिकॉर्ड लो बना रहा रुपया, किया 91 पार, एक साल में 7% से ज्यादा टूटा, आखिर किसकी लगी नजर
भारतीय रुपया लगातार गिरावट का सामना कर रहा है. हर दिन रिकॉर्ड लो लग रहा है. आज के कारोबार में डॉलर के मुकाबले यह 91 पार निकल चुका है. एक साल में रुपया 7 प्रतिशत से ज्यादा टूट चुका है. यह पिछले तीन साल की सबसे बड़ी गिरावट मानी जा रही है.
भारतीय रुपये में लगातार गिरावट जारी है. लगातार रिकॉर्ड लो बना रहा है. आज, 16 दिसंबर के कारोबार में डॉलर के मुकाबले यह 90.90 के नए रिकॉर्ड निचले स्तर तक फिसल गया. एक साल में रुपया 7 प्रतिशत से ज्यादा टूट चुका है. यह पिछले तीन साल की सबसे बड़ी गिरावट मानी जा रही है. एशियाई करेंसीज में भी रुपया सबसे कमजोर प्रदर्शन करने वालों में शामिल है. आज कारोबार के दौरान इसका रेंज 90.7500 — 91.0775 रहा है. अब सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्या हो गया है कि रुपये में इस तरह कि गिरावट देखने को मिल रही है.
भारत-अमेरिका ट्रेड डील में देरी
रुपये पर दबाव की सबसे बड़ी वजह भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील को लेकर अनिश्चितता है. जानकारों का कहना है कि भारत अमेरिका के साथ शुरुआती ट्रेड एग्रीमेंट के फ्रेमवर्क के काफी करीब है, जिससे भारी-भरकम टैरिफ में राहत मिल सकती है.
विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली
रुपये की कमजोरी की दूसरी बड़ी वजह विदेशी निवेशकों की निकासी है. एनएसई के 15 दिसंबर के आंकड़ों के मुताबिक विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से करीब 1468 करोड़ रुपये के शेयर बेचे. वहीं घरेलू संस्थागत निवेशकों ने 1792 करोड़ रुपये की खरीदारी की. एक्सचेंज के आंकड़ों के अनुसार दिसंबर महीने में अब तक विदेशी निवेशक करीब 1.5 अरब डॉलर की निकासी कर चुके हैं. इसके अलावा डेट मार्केट से भी करीब 8846 करोड़ रुपये का आउटफ्लो देखने को मिला है.
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डॉलर की मांग और सप्लाई में असंतुलन
रुपये की गिरावट की तीसरी वजह डॉलर की मांग और सप्लाई के बीच असंतुलन है. Reuters की रिपोर्ट के मुताबिक नॉन डिलिवरेबल फॉरवर्ड मार्केट में पोजिशन मैच्योर होने की वजह से डॉलर की खरीद बढ़ी है. इसके अलावा घरेलू कंपनियां भी साल के आखिर में अपने पेमेंट निपटाने के लिए डॉलर खरीद रही हैं.
RBI का रुख
गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा था कि केंद्रीय बैंक रुपये के लिए कोई निर्धारित स्तर या दायरा नहीं तय करता. बाजार की ताकतें ही कीमत तय करती हैं. हमारा प्रयास केवल असामान्य उतार-चढ़ाव को रोकना है.
इसकेे अलावा, सरकार का कहना है कि कमजोर रुपया सिर्फ नुकसान ही नहीं करता. इससे एक्सपोर्ट को फायदा भी मिलता है, क्योंकि भारतीय सामान विदेशी बाजार में सस्ता पड़ता है. अभी देश की जीडीपी में निर्यात की हिस्सेदारी 21वीं फीसदी और आयात की हिस्सेदारी करीब 79 फीसदी है.
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