क्रिप्टोकरेंसी के जरिये डॉलर का वर्चस्व रहेगा कायम! जानें क्या है अमेरिका का ‘जीनियस’ प्लान

पूरी दुनिया में कारोबार डॉलर के जरिये होता है. यही वजह है कि अमेरिका दुनियाभर पर धौंस जमाता है. लेकिन, रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से दुनिया के कई देश डॉलर का विकल्प तलाशने में जुटे हैं. इस बीच क्रिप्टोकरेंसी एक ऐसा विकल्प बनकर उभरा है, जो किसी सरकार के नियंत्रण में नहीं है. लेकिन, अमेरिका अब क्रिप्टोकरेंसी के एक रूप स्टेबलकॉइन के जरिये आगे भी डॉलर की धाक बनाए रखने की कवायद में जुटा है. जानें क्या है अमेरिका की योजना?

स्टेबलकॉइन को सपोर्ट करने के लिए जीनियस बिल लाया गया है Image Credit: Money9live

Cryptocurrency की दुनिया में इन दिनों स्टेबलकॉइन और जीनियस एक्ट की चर्चा है. स्टेबलकॉइन वह जरिया जिससे अमेरिका दुनिया में डॉलर की बादशाहत कायम रखना चाहता है. वहीं, जीनियस एक्ट वह कानून है, जो अमेरिकी सरकार को अपने इस इरादे को पूरा करने की ताकत दे सकता है. फिलहाल, अमेरिकी सांसद इस कानून पर बहस में जुटे हैं. जानते हैं कि कैसे स्टेबलकॉइन के जरिये अमेरिका डॉलर का वर्चस्व बनाए रखने की कोशिश कर रहा है.

क्या होते हैं स्टेबलकॉइन?

स्टेबलकॉइन उन क्रिप्टोकरेंसी को कहा जाता है, जिनको किसी मूल्यवान एसेट के समर्थन के आधार पर जारी किया जाता है. मसलन, गोल्ड, सिल्वर या किसी देश की करेंसी जैसे-डॉलर, रुपया. स्टेबलकॉइन टेक्नोलॉजी के लेवल पर तो बिटकॉइन की तरह ही क्रिप्टोकरेंसी होते हैं. लेकिन, बिटकॉइन पूरी तरह डिसेंट्रलाइज्ड है, इसकी कीमत कोई नियंत्रित नहीं करता है. जबकि, स्टेबलकॉइन में वोलैटिलिटी बहुत कम होती है और ये कंट्रोल्ड होते हैं.

लगातार बढ़ रहा मार्केट कैप

पिछले कुछ वर्षों में स्टेबलकॉइन के मार्केट कैप में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. 2020 के 20 अरब डॉलर से बढ़कर 2024 में इसका मार्केट कैप 246 अरब डॉलर हो गया है. ड्यूश बैंक ने पिछले महीने प्रकाशित एक रिपोर्ट बताया कि स्टेबलकॉइन अब सभी क्रिप्टोकरेंसी ट्रेडिंग के दो-तिहाई से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं. इसके साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि 2024 में, स्टेबलकॉइन ने 27.6 ट्रिलियन डॉलर के फंड प्रोसेस किए, जो वीजा और मास्टरकार्ड से ज्यादा हैं.

अमेरिका की कितनी हिस्सेदारी?

ड्यूश बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 83 फीसदी स्टेबलकॉइन अमेरिकी डॉलर से सपोर्टेड हैं. इनमें सबसे लोकप्रिय स्टेबलकॉइन टीथर है, जिसे USDT भी कहा जाता है. टीथर को बैक करने के लिए यूएस ट्रेजरी में लगभग 98 अरब डॉलर का रिजर्व रखा गया है. यूएस बेस्ड स्टेबलकॉइन जिस तरह से आकार और तादाद में बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए यह साफ जाहिर हो जाता है कि इनके फलने-फूलने में अमेरिकी सरकार का पूरा सपोर्ट है.

क्या है जीनियस एक्ट

जीनियस एक्ट स्टेबलकॉइन को रेगुलेट करने के लिए बनाया गया है. जीनियस एक्ट, जिसे आधिकारिक तौर पर गाइडिंग एंड एस्टेब्लिशमेंट नेशनल इनोवेशन फॉर यूएस कहा जाता है. इस एक्ट का मकसद स्टेबलकॉइन जारी करने वाली फर्म को रेगुलेट करना है. यूएस फेडरल बैंक के गवर्नर क्रस्टोफर वॉलर का कहना है कि जीनियस एक्ट से स्टेबलकॉइन के लिए डॉलर को रिजर्व करेंसी के तौर पर स्थापित कर डॉलर की स्थिति को मजबूती मिलेगी.

जीनियस एक्ट से क्या हासिल करना है?

क्रिप्टोकरेंसी के जानकारों का कहना है कि अमेरिका असल में स्टेबलकॉइन और जीनियस एक्ट के जरिये डॉलर की हेजमनी कायम रखना चाहता है. अमेरिका स्टेबलकॉइन को बढ़ावा दे रहा है, क्योंकि बिटकॉइन जैसे डिसेंट्रलाइज्ड कॉइन को कंट्रोल नहीं किया जा सकता है. वहीं, सीधे तौर पर डॉलर के वर्चस्व के खिलाफ दुनियाभर में आवाज उठने लगी है. अमेरिका, चतुराई से स्टेबलकॉइन को डॉलर से लिंक कर परोक्ष रूप से डॉलर के वर्चस्व को कायम रखना चाहता है. जीनियस एक्ट स्टेबलकॉइन इश्यू करने वालों को मुद्रा बाजार के विधिक ढांचे शामिल करता है.