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बदलती खेती के साथ बदली सिंचाई, ये हैं 5 प्रकार के इरिगेशन सिस्टम; जानें कौन सा है फायदेमंद
बदलती खेती के दौर में सही इरिगेशन सिस्टम का चयन किसानों के लिए बेहद जरूरी हो गया है. सर्फेस इरिगेशन सिस्टम जहां परंपरागत और कम लागत वाला विकल्प है, वहीं ड्रिप इरिगेशन सिस्टम कम पानी में अधिक उत्पादन देने में सहायक साबित होता है. स्प्रिंकलर इरिगेशन सिस्टम गैर समतल खेतों के लिए उपयोगी माना जाता है.
यह इरिगेशन सिस्टम भारत में सबसे पुरानी और सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली सिंचाई विधि है. इसमें पानी को नहर, तालाब, नदी या कुएं से सीधे खेत की सतह पर बहाकर फसलों तक पहुंचाया जाता है. इस प्रणाली में खेत को समतल किया जाता है, ताकि पानी समान रूप से फैल सके. धान, गेहूं, गन्ना और दलहन जैसी फसलों के लिए यह पद्धति व्यापक रूप से अपनाई जाती है.
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ड्रिप इरिगेशन सिस्टम
ड्रिप इरिगेशन सिस्टम को सूक्ष्म सिंचाई तकनीक भी कहा जाता है. इसमें पाइप और ड्रिपर की सहायता से पानी बूंद-बूंद करके सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है. इससे पानी वहीं जाता है, जहां उसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है. यह प्रणाली सब्जियों, फलदार पौधों, बागवानी फसलों और नकदी फसलों के लिए सबसे अधिक उपयोगी मानी जाती है.
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स्प्रिंकलर इरिगेशन सिस्टम
स्प्रिंकलर इरिगेशन सिस्टम में पानी को पाइप के जरिए हवा में फव्वारे की तरह छिड़ककर खेत में डाला जाता है, जिससे खेत में कृत्रिम वर्षा जैसी स्थिति बनती है. यह प्रणाली ऊंचे-नीचे और असमतल खेतों के लिए काफी उपयोगी मानी जाती है. आलू, मूंगफली, गेहूं और सब्जियों की खेती में इसका व्यापक प्रयोग किया जाता है.
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उपसतही इरिगेशन सिस्टम
इस प्रणाली में पानी को जमीन के नीचे बिछाई गई पाइप लाइनों के माध्यम से सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है. इसमें पानी सतह पर दिखाई नहीं देता, जिससे नमी लंबे समय तक मिट्टी में बनी रहती है. यह प्रणाली शुष्क क्षेत्रों और उच्च मूल्य वाली फसलों के लिए उपयुक्त मानी जाती है.
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वर्षा आधारित इरिगेशन सिस्टम
वर्षा आधारित इरिगेशन प्रणाली पूरी तरह प्राकृतिक बारिश के पानी पर निर्भर होती है. जिन क्षेत्रों में नहर, कुआं या अन्य स्थायी जल स्रोत उपलब्ध नहीं होते, वहां किसान इसी प्रणाली के भरोसे खेती करते हैं. मोटा अनाज, दालें और तिलहन जैसी फसलों की खेती प्रायः इसी पद्धति से की जाती है.