महंगाई तो ठीक है, ग्रोथ का क्या… जानें क्यों छिड़ी है ये बहस

रिजर्व बैंक ने फिलहाल जीडीपी ग्रोथ को बैक सीट पर रख दिया है और महंगाई को ही तवज्जो दी है. इस वजह से लंबे समय से चली आ रही उस बहस को फिर से हवा मिल गई है कि सिर्फ रिटेल महंगाई दर की वजह से जीडीपी ग्रोथ को नजरअंदाज करना कितना सही है.

महंगाई ही रिजर्व बैंक के लिए प्राथमिक. Image Credit: Getty image

इंतजार… इंतजार और इंतजार… रेपो रेट में कटौती का इंतजार एक बार फिर से लंबा हो गया. रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में कटौती नहीं की, लेकिन इकोनॉमिक गतिविधयों को बरकरार रखने के लिए कैश रिजर्व रेश्यो (CRR) में आधे फीसदी की कटौती की है. बीते सप्ताह आए जीडीपी के कमजोर आंकड़ों के बीच रिजर्व बैंक पर रेपो रेट में कटौती करने का दबाव था. केंद्रीय बैंक ने दबाव को माना, लेकिन उसने एक बार फिर से अपने बेसिक को क्लीयर रखने का फैसला किया.

रिजर्व बैंक ने अपने फैसले से ये साफ कर दिया है कि फिलहाल उसकी प्राथमिकता महंगाई को काबू में रखने की है, जो उसके लक्ष्य 6 फीसदी से ऊपर निकल चुकी है. इसलिए एक समूह का मानना है कि रिजर्व बैंक ने फिलहाल जीडीपी ग्रोथ को बैक सीट पर रख दिया, क्योंकि जीडीपी ग्रोथ के अनुमान को भी घटा दिया गया है. इस वजह से लगातार चली आ रही उस बहस को फिर से हवा मिल गई है कि सिर्फ रिटेल महंगाई दर की वजह से जीडीपी ग्रोथ को नजरअंदाज करना कितना सही है…

घरेलू महंगाई का अधिक दबाव

मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के दौरान जीडीपी ग्रोथ रेट महज 5.4 फीसदी रही, जो करीब 2 साल में सबसे धीमी वृद्धि दर है. रिजर्व बैंक पर इस आंकड़े का दबाव था और ये गवर्नर शक्तिकांत दास की स्पीच में नजर भी आया. लेकिन केंद्रीय बैंक का नजरिया एक दम साफ है कि उसका काम महंगाई को नियंत्रित करना है और उसने तमाम उम्मीदों को धता बताते हुए कर्ज सस्ता करने का जोखिम नहीं उठाया. साथ ही यह भी बता दिया कि आने वाले समय में महंगाई और बढ़ेगी. इस बहस के बीच क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी का कहना है कि रिजर्व बैंक घरेलू उपभोग के लिए खाद्य महंगाई दर में वृद्धि को एक प्रमुख बाधा के रूप में देखता है.

RBI में ही आम सहमति नहीं

रेपो रेट पर फैसले को लेकर खुद रिजर्व बैंक के भीतर आम सहमति नहीं है. शक्तिकांत दास ने बताया कि MPC ने 4-2 की बहुमत से ब्याज दर को 6.5 फीसदी पर अपरिवर्तित रखने का फैसला किया है. यानी मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी में शामिल सदस्यों में से दो लोगों का मानना था कि रेपो रेट में कटौती होनी चाहिए. यानी वो इस बात के संकेत दे रहे थे कि ग्रोथ के लिए ब्याज दर का कम होना जरूरी है.

गवर्नर ने याद दिलाया RBI का मैंडेट

बिहार इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के इकोनॉमिस्ट डॉ सुधांशु कुमार बताते हैं कि रिजर्व बैंक को 2 से 6 फीसदी के बीच महंगाई को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी सरकार ने दी है. यह एक बड़ी रेंज है, जिसके बीच महंगाई दर को रखना है. लेकिन महंगाई दर 6 फीसदी के पार है और यह 14 महीने के सबसे ऊंचे स्तर 6.2 फीसदी पर पहुंच गया है. इसलिए रिजर्व के लिए पहली चुनौती महंगाई दर को अपने लक्ष्य के दायरे में लाने की है. इसके बाद ही वो जीडीपी ग्रोथ के लिए कदम उठा सकता है. इसलिए रिजर्व बैंक अपने असाइमेंट को पूरा करने की कोशिश में जुटा है. इसमें सफल होने के बाद ही वो जीडीपी की ग्रोथ के लिए फैसले लेने की तरफ बढ़ेगा. फिलाहल केंद्रीय बैंक वेट एंड वॉच की स्थिति में है.

दूसरी तरफ अगर फिलहाल रेपो रेट में कटौती होती है, तो सेविंग्स पर इसका असर नजर आता है. क्योंकि अगर लोन सस्ते होते तो फिर फिक्स्ड डिपॉजिट पर मिलने वाले ब्याज में भी कटौती होती. ऐसे में आम लोगों की जमा पूंजी पर रिटर्न कम हो जाता. ऐसे में उन्हें महंगाई के बोझ के साथ-साथ सेविंग्स में कटौती का भी भार उठाना पड़ता.

रिजर्व बैंक के लिए इस समय रेपो रेट में कटौती नहीं करने का फैसला कठिन रहा है. जानकारों का कहना है कि रिजर्व बैंक को निश्चित रूप से मुद्रास्फीति पर काबू पाना होगा, लेकिन साथ ही वह आर्थिक मंदी से भी मुंह भी नहीं मोड़ सकता. अगले वर्ष ग्लोबल मंच पर अधिक स्पष्ट चुनौतियां आने वाली हैं, क्योंकि वैश्विक मंदी के प्रभाव और डोनाल्ड ट्रंप के प्रस्तावित टैरिफ और बढ़ते जियो-पॉलिटिकल तनाव से सामना होगा.

आम जनता को क्यों थी कटौती की आस

महामारी के बाद पहली बार पिछली तिमाही में भारतीय वेतन में कमी आई, जिससे अर्थव्यवस्था की तेज रफ़्तार पर लगाम लगी. दरअसल, महंगाई की वजह से लोगों का घरेलू बजट बेसिक जरूरतों को पूरा करने में खत्म हो जा रहा है. ऐसे में उपभोक्ताओं ने खर्च में कटौती की है, जिससे कॉर्पोरेट मुनाफे में गिरावट आई. जीडीपी की ग्रोथ रफ्तार पर ब्रेक शहरी मध्यम वर्ग के लिए वित्तीय तनाव की ओर इशारा करता है.

उपभोक्ता अब साबुन से लेकर कारों तक हर चीज पर कटौती कर रहे हैं. मारुति सुजुकी लिमिटेड से लेकर कंज्यूमर सेक्टर की दिग्गज कंपनी हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड तक की इनकम कमजोर रही है. और इसकी वजह शहरी मध्यम वर्ग के खर्च में कटौती है. क्योंकि उनके पास खर्च करने के लिए सरप्लस पैसा नहीं है. ऐसे में अगर ब्याज दर में कटौती होती, तो लोगों की EMI घटती. इससे जो पैसा बचता, उसे लोग फिर से साबुन से लेकर कारों तक की खरीदारी के लिए खर्च कर सकते थे.

आर्थिक मंदी के पीछे दो मुख्य कारण हैं. खास तौर पर शहरी इलाकों में खपत की मांग धीमी रही है. कई फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स कंपनियों ने सितंबर तिमाही की आय के बाद इस मोर्चे पर चिंता जताई है. त्योहारी सीजन से पहले पैसेंजर वाहनों की बिक्री भी धीमी रही थी. संसदीय चुनावों के मद्देनजर चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में सरकारी कैपिटल एक्सपेंडिचर भी स्लो रहा था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के महत्वाकांक्षी ग्रोथ लक्ष्यों लिए धीमी जीडीपी ग्रोथ एक बाधा है और इससे अधिक नौकरियां पैदा करने के वादों को पूरा करना मुश्किल हो जाएगा. मंदी से निपटने के तरीकों पर अब दरारें भी उभरने लगी हैं.

पीयूष गोयल और शक्तिकांत दास

हाल ही में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने एक मीडिया इवेंट में कहा था कि ग्रोथ को बढ़ावा देने के लिए रिजर्व बैंक को ब्याज दरों में कटौती करनी चाहिए. इसके बाद से ये बहस शुरू हो गई है कि केंद्रीय बैंक को नीतिगत दरों पर निर्णय लेने के लिए कोर महंगाई दर (इसमें खाद्य और ईंधन शामिल नहीं है) के बजाय हेडलाइन महंगाई दर पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

पीयूष गोयल की टिप्पणियों के तुरंत बाद आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने एक कार्यक्रम में कहा कि वह प्राइस स्टैबिलिटी, वित्तीय स्थिरता और निरंतर ग्रोथ को शामिल करते हुए स्थिरता के एक समग्र दृष्टिकोण को टार्गेट कर रहे हैं. दास ने कहा कि हमारा मुख्य ध्यान वित्तीय स्थिरता बनाए रखने पर रहा है, जो विकास और समृद्धि को जन्म देती है. उनका कहना था कि हम घर में आग लगने का इंतजार नहीं करते. दास का कहना था कि आर्थिक मंदी के बावजूद मुद्रास्फीति कम हो सकती है. पीयूष गोयल की टिप्पड़ी के जवाब में दास ने कहा कि मैं इसपर अपनी टिप्पणी सुरक्षित रखता हूं.

ट्रंप और टैरिफ

दूसरी ओर बहस यह है कि देश की जीडीपी पहले से ही सुस्त है और अगले साल जनवरी में जब डोनाल्ड ट्रंप जब अमेरिकी राष्ट्रपति का पद दूसरी बार संभालेंगे, तो टैरिफ वॉर देखने को मिलेगा. इसकी वजह आर्थिक गतिविधियां और भी धीमी हो सकती हैं. क्योंकि टैरिफ एक्सपोर्ट किए जाने वाले किसी भी प्रोडक्ट की कुल कीमत में शामिल होता है. ऐसे में भारत से जो भी प्रोडक्ट अमेरिका एक्सपोर्ट होते हैं, उनकी डिमांड में कमी आ सकती है. इस वजह से देश की आर्थिक ग्रोथ की रफ्तार धीमी हो सकती है.

लिक्विडिटी से मदद की कोशिश

हालांकि रिजर्व बैंक ने कैश रिजर्व रेश्यो (CRR) में कटौती करके अर्थव्यवस्था में प्रोडक्टिव इस्तेमाल के लिए लिक्विडिटी को आसान बनाने की कोशिश की है. सीआरआर को 4.5 फीसदी से घटाकर 4 फीसदी कर दिया गया है. सीआरआर में कटौती से बैंकिंग सिस्टम को जरूरी लिक्विडिटी उपलब्ध हो सकेगी, जिससे आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा मिलेगा. सीआरआर में कटौती से बैंकों को 1.16 लाख करोड़ रुपये जारी होंगे और उनकी कर्ज देने की क्षमता में सुधार होगा.

रियल एस्टेट उद्योग

जीडीपी आंकड़ों से कंस्ट्रक्शन और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी धीमी वृद्धि देखने को मिली. हालांकि, रियल एस्टेट उद्योग ने रेपो दर को 6.5 फीसदी की दर पर बरकरार रखने के आरबीआई के फैसले को पॉजिटिव बताया है. उनका कहना है कि रेपो रेट में स्थिरता से डेवलपर्स और मकान मालिकों का बाजार में विश्वास बढ़ेगा. एंजाइम ऑफिस स्पेसेस के को-फाउंडर आशीष अग्रवाल के अनुसार, निर्माण लागत स्थिर होने और ब्याज दरों में बहुत अधिक उतार-चढ़ाव नहीं होने के कारण, डेवलपर्स अब वित्तीय रिस्ट्रक्चरिंग की तलाश करने के बजाय प्रोजेक्ट के एग्जीक्यूशन पर काम करने की स्थिति में हैं. अब हमारे पास ऐसे आंकड़े हैं जो पिछले वर्ष की तुलना में डिलीवरी दरों में 22 फीसदी की वृद्धि के साथ प्रोजेक्ट पूरे होने के समय में महत्वपूर्ण सुधार दिखा रहे हैं.

स्वीकार करने में परेशानी

कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर रेपो रेट में इस बार कटौती होती, तो उच्च महंगाई दर के बीच इसे मंदी की तरह बाजार देखता. इसलिए शायद रिजर्व बैंक ने आर्थिक गतिविधि पर अलार्म संदेश नहीं भेजना चाहता था. यह चिंताजनक हो सकता था. हालांकि, कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि उच्च ब्याज दरों को ग्रोथ में गिरावट का दोष देना गलत हो सकता है, क्योंकि दो साल से अधिक समय से यही उच्च दरें अर्थव्यवस्था को गति दे रही हैं.