बांग्लादेश को सबक सिखाने का टाइम, कलादान प्रोजेक्ट देगा तगड़ी चोट, यूनुस को याद आएगा सिंधु जल समझौता
कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट अब केवल एक इंफ्रास्ट्रक्चर योजना नहीं रही, बल्कि यह भारत की रणनीतिक नीति का केंद्र बिंदु बन चुकी है.बांग्लादेश के साथ संबंधों में अनिश्चितता के बीच, यह प्रोजेक्ट भारत के लिए पूर्वोत्तर राज्यों तक बिना किसी अड़चन के पहुंच सुनिश्चित करने का जरिया बन रही है. हालांकि इसके समक्ष रखाइन की अस्थिरता जैसी चुनौतियां हैं,लेकिन भारत इस बार इसे अधूरा छोड़ने के मूड में नहीं दिख रहा है.
India Bangladesh Trade Sanction And Kaladan Transport Project: लगता है पाकिस्तान के बाद अब बांग्लादेश को सबक सिखाने का समय आ गया है. जिस तरह से कार्यवाहक प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस की सरकार चीन की गोद में बैठ गई है. और उसके भरोसे गीदड़ भभकी दे रही है. उससे लगता है कि मोहम्मद यूनुस की सरकार बांग्लादेश के वजूद को भूल बैठी है. वह यह नहीं समझ पा रही है कि चीन किसी का नहीं है और उसे भारत से दुश्मनी भारी पड़ेगी.
खैर अब भारत ने बांग्लादेश को उसी की भाषा में बात करने की रणनीति अपना ली है. इसी के मद्देनजर भारत ने बीते शनिवार को बांग्लादेश को करीब 7000 करोड़ का झटका दिया है. इसके तहत भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए बांग्लादेश पर कई तरह आयात प्रतिबंध लगा दिए हैं. ये तो शुरुआत है. भारत अब बांग्लादेश को वो चोट पहुंचाने जा रहा है. जिसका गुरूर यूनुस को हो गया है. यह एक्शन ठीक उसी तरह होगा, जैसा भारत ने पाकिस्तान को सिंधु जल समझौते को स्थगित करके किया है. बांग्लादेश को अक्ल ठिकाने लाने के लिए भारत कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट को जल्द से जल्द पूरा करने की तैयारी में है.
क्या है कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट
साल 2008 में भारत और म्यांमार के बीच कलादान प्रोजेक्ट को लेकर समझौता हुआ था.इसका उद्देश्य मिजोरम को म्यांमार के सिटवे बंदरगाह के जरिए भारत के पूर्वी तटों से जोड़ना है.इस परियोजना के पूरा हो जाने पर कोलकाता से मिजोरम तक की दूरी लगभग 1,000 किमी कम हो जाएगी और यात्रा में 3–4 दिन की बचत होगी. इसी तरह कलादान प्रोजेक्ट की मदद से कोलकाता और विशाखापट्टनम से उत्तर-पूर्व में सामान भेजने के लिए बांग्लादेश पर निर्भर नहीं रहेगी.
जिस तरह शेख हसीना के हटने के बाद से मोहम्मद यूनुस की नेतृत्व वाली बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार और भारत के बीच रिश्ते बिगड़ते जा रहे हैं. उससे पूर्वोत्तर भारत के लिए वैकल्पिक मार्गों की आवश्यकता को पहले से कहीं अधिक अहम बना दिया है. ऐसे में वर्षों से अटके पड़ कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट (KMMTTP) को नई रणनीतिक और आर्थिक अहमियत मिली है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार ने शिलांग से सिलचर तक 166.8 किमी लंबे फोर-लेन हाईवे की मंजूरी दे दी है, जिसे आगे मिजोरम के जोरिनपुई तक बढ़ाकर कालादान कॉरिडोर से जोड़ा जाएगा.
पूरे प्रोजेक्ट का उद्देश्य मिजोरम को म्यांमार के सिटवे बंदरगाह के जरिए भारत के पूर्वी तटों से जोड़ना है.
अभी क्या है स्थिति
- कोलकाता से सिटवे (539 किमी): समुद्री मार्ग से जहाज द्वारा
- सिटवे से पलेटवा (158 किमी): कलादान नदी के जलमार्ग से
- पलेटवा से जोरिनपुई (110 किमी): सड़क मार्ग
यूनुस का विवादित बयान
बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस ने हाल ही में चीन दौरे के दौरान उत्तर-पूर्व भारत को ‘लैंडलॉक्ड’ बताते हुए बांग्लादेश को ‘समुद्र का एकमात्र संरक्षक’ कहा था. यूनुस का यह बयान भारत की चिंताए बढ़ाने के लिए काफी है.मोहम्मद यूनुस ने चीन दौरे पर यह टिप्पणी एक तरह भारत द्वारा क्षेत्र की संपर्क क्षमता को कमतर आंकने के रूप में देखी गई,इस यात्रा के दौरान बांग्लादेश और चीन के बीच 2.1 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश और सहयोग समझौते हुए, जो ढाका और बीजिंग के बढ़ते संबंधों की ओर इशारा कर रहे हैं.
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चिकन नेक भारत की सुरक्षा के लिए अहम
भारत के शेष हिस्से से पूर्वोत्तर भारत तक केवल सिलीगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) के जरिए पहुंचा जा सकता है, जो सिर्फ 20 किमी चौड़ा है. यह संकरा कॉरिडोर भारत के लिए रणनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से एक कमजोर कड़ी हमेशा से रही है. इसीलिए पिछले डेढ़ दशक में भारत-बांग्लादेश साझेदारी के तहत वैकल्पिक मार्गों की तलाश की गई थी.लेकिन नई बांग्लादेश सरकार के ‘भारत विरोधी’ रुख के कारण ऐसे योजनाएं अब ठंडे बस्ते में जाती दिख रही हैं.ऐसे में भारत ने म्यांमार के रास्ते से संपर्क को अहमियत देना शुरू कर दिया है.
देरी के पीछे म्यांमार का राजनीतिक संकट
कलादान प्रोजेक्ट की परिकल्पना 1990 के दशक में हुई थी. लेकिन इस पर निर्माण कार्य 2010 के बाद शुरू हुआ. इस बीच म्यांमार के रखाइन राज्य में राजनीतिक और जातीय संघर्ष ने पूरे प्रोजेक्ट को अटका दिया है. साल 2021 के सैन्य तख्तापलट के बाद से देश में गृहयुद्ध की स्थिति में है, और रखाइन क्षेत्र का बड़ा हिस्सा अब अराकान आर्मी जिसे यांगून सरकार ‘आतंकी संगठन’ मानती है. BBC की रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर 2024 तक म्यांमार की सेना केवल 21 फीसदी क्षेत्र पर नियंत्रण रखती है, जबकि शेष इलाकों पर अलग-अलग जातियों जैसे मिलिशिया का कब्जा है. यही वजह है कि भारत को अब इन जनजातियों से संपर्क कर प्रोजेक्ट को पूरा करने की राह निकालनी होगी. हालांकि अराकान आर्मी ने इस प्रोजेक्ट को समर्थन देने की बात 2024 में कही थी. इसके पहले 2022 में भारत सरकार ने PSU कंपनी IRCON International Limited को प्रोजेक्ट का अधूरा हिस्सा पूरा करने की जिम्मेदारी दी थी.समझौते में 40 महीने की टाइमलाइन तय की गई थी, लेकिन क्षेत्र में युद्ध, दंगे, और अस्थिरता की वजह से देरी हो रही है. फिलहाल स्थानीय ठेकेदारों को शामिल कर निर्माण के विकल्प तलाशे जा रहे हैं.
बांग्लादेश ने कैसे संबंध बिगाड़े
बांग्लादेश ने 2024 के अंत से भारत से होने वाले व्यापार पर कई सख्त प्रतिबंध लागू कर दिए हैं. इसके तहत प्रमुख लैंड पोर्ट से भारतीय यार्न के आयात पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है. इसके अलावा, चावल के निर्यात पर भी कड़े नियंत्रण लगाए गए हैं. इसी तरह कागज़, तंबाकू, मछली, और दूध पाउडर जैसे उत्पादों के आयात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है. बांग्लादेश ने भारतीय मूल के अपने क्षेत्र से गुजरने पर अब प्रति टन प्रति किलोमीटर 1.8 टका का ट्रांजिट शुल्क भी लागू कर दिया है. यह कदम भारत के पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुंच को और महंगा कर दिया है.
भारत की जवाबी कार्रवाई
इस तनाव की वजह से पिछले पांच सालों से चल रही बांग्लादेशी एक्सपोर्ट कार्गो के ट्रांस-शिपमेंट की सुविधा को भी भारत ने हाल ही में बंद किया था.भारत ने बांग्लादेश से आने वाले आयात पर नए प्रतिबंध लगाए हैं, जो मुख्य रूप से लैंड पोर्ट के जरिए होने वाले व्यापार को प्रभावित करेंगे. GTRI के अनुसार, इन पाबंदियों का असर करीब 770 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के वस्त्रों और अन्य वस्तुओं पर पड़ेगा, जो भारत-बांग्लादेश द्विपक्षीय आयात का लगभग 42 प्रतिशत हिस्सा है.इन प्रतिबंधों के तहत अब बांग्लादेश से कपड़े, प्लास्टिक उत्पाद, फर्नीचर, और कुछ खाद्य पदार्थों के आयात को लेकर नए सख्त नियम लागू किए गए हैं। इससे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में इन उत्पादों की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है, क्योंकि बड़ी मात्रा में यह आयात इन्हीं इलाकों से होता है. GTRI के अनुसार, यदि यह स्थिति बनी रही, तो दोनों देशों को न केवल आर्थिक नुकसान होगा, बल्कि दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय व्यापार और सहयोग के प्रयासों को भी झटका लग सकता है।