रुपये की गिरावट का ये ट्रेंड देखा क्या…केवल 349 दिन में 85-90 पर आया, पहले लगते थे 800-900 दिन, अब क्या होगा?
रुपया 90 के स्तर को पार कर बाजार को चौंका गया, लेकिन SBI रिसर्च की ताजा रिपोर्ट इशारा करती है कि यह सिर्फ एक संख्या का खेल नहीं है. इस गिरावट के पीछे कुछ ऐसे गहरे कारण छिपे हैं जिन्होंने मुद्रा बाजार की सोच, उम्मीदों और दिशा को बदल दिया है.
सोमवार सुबह रुपया पहली बार 90 रुपये प्रति डॉलर के पार चला गया. यह सिर्फ एक रुपये के न्यूनतम स्तर को नहीं दिखाता बल्कि उन हालात का आईना है जिनमें विदेशी निवेशकों की बेचैनी, व्यापारिक तनाव और नीति अनिश्चितताएं एक साथ असर दिखा रही हैं. SBI रिसर्च की ताजा रिपोर्ट बताती है कि यह गिरावट अचानक नहीं हुई; यह कई दबावों, सियासी अनिश्चितताओं और बाजार की मनोवृत्ति का जमा-जमाया नतीजा है.
पिछले एक दशक में रुपये का इतना तेज गिरना सिर्फ taper tantrum के दौरान देखा गया था. पहले रुपये को 65 से 70 जाने में 1815 दिन लगे, लेकिन 85 से 90 जाने में एक साल भी नहीं. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बार गिरावट की वजह सिर्फ ‘कमजोर अर्थव्यवस्था’ नहीं, बल्कि बाहरी तनावों का फैक्टर है, अमेरिका-भारत व्यापार समझौते पर धुंध, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का पलायन, और RBI की नीति जो किसी स्तर की रक्षा करने के बजाय सिर्फ तब हस्तक्षेप करती दिख रही है, जब बाजार में हलचल ज्यादा बढ़ जाए.
ट्रेड डेफिसिट को दोष देना गलत!
रिपोर्ट साफ करती है कि बाजार में प्रचलित यह धारणा गलत है कि गिरावट की जड़ में ‘खराब व्यापार डेटा’ है. अप्रैल-अक्टूबर 2025 के दौरान ट्रेड डेफिसिट 78 अरब डॉलर रहा, पिछले साल के 70 अरब डॉलर से थोड़ा ही अधिक. यानी इसे बाजार में अनावश्यक रूप से बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया और रुपया दबाव में आया.
टैरिफ युद्ध से सबसे ज्यादा पिटा रुपया
2 अप्रैल 2025 को अमेरिका द्वारा भारी शुल्क बढ़ोतरी घोषित होने के बाद से भारतीय रुपया सबसे ज्यादा (~5.5%) गिरा है. लेकिन SBI रिसर्च बताता है कि यह “सबसे वोलाटाइल” नहीं है. रुपये में उतार-चढ़ाव महज 1.7% रहा, जो कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से कम है. जानकारों के मुताबिक, अमेरिका का 50 फीसदी टैरिफ भारत पर बहुत भारी पड़ रहा है. यह चीन, जापान और वियतनाम से कहीं ज्यादा है और लगभग 45 अरब डॉलर के भारतीय निर्यात को चोट पहुंचा रहा है, सबसे ज्यादा असर उन उद्योगों पर है जहां बड़ी संख्या में लोग काम करते हैं.
REER और NEER बताते हैं- रुपया अब ‘undervalued’ है.
RBI के 40-करेंसी रेफरेंस बास्केट के मुताबिक, रुपये का REER इंडेक्स मई 2025 तक 100 के ऊपर था, लेकिन ट्रेड वॉर बढ़ते ही यह 97.40 तक गिर गया, यह 2018 के बाद का सबसे निचला स्तर रहा. तीन महीने से रुपया लगातार undervalued है, जो कमजोर मुद्रा और कम महंगाई का संकेत देता है. NEER भी जून 2024 के 92.1 से गिरकर अक्टूबर 2025 में 84.6 हो गया. SBI का अनुमान है कि आने वाले महीनों में यह सुधर सकता है.
FX बाजार में मांग बढ़ी, लेकिन RBI selective है
जुलाई से अक्टूबर के बीच merchant category में डॉलर की अतिरिक्त मांग 102.5 अरब डॉलर तक बढ़ गई. RBI ने जून से अक्टूबर तक लगभग 30 अरब डॉलर का हस्तक्षेप किया, लेकिन इसके बावजूद रिजर्व 703 अरब से 688 अरब डॉलर तक फिसल गए. रिपोर्ट बताती है कि RBI स्तर नहीं, सिर्फ स्थिरता बचाने की रणनीति पर काम कर रहा है.
यह भी पढ़ें: रसातल में रुपया, जानें कौन सा डर सता रहा, हालात नहीं संभले तो इन्हें सबसे ज्यादा नुकसान, 90 बना फियर फैक्टर
अब क्या हैं संभावनाएं?
रूसी राष्ट्रपति की भारत यात्रा, तेल आयात की अनिश्चितता और व्यापार समझौते को लेकर अटके संकेत अभी रुपया को कमजोर जोन में ही रखेंगे. SBI रिसर्च का मानना है कि Indo-US ट्रेड डील मार्च 2026 से पहले हो सकती है, लेकिन तब तक हर रुकावट बाजार में घबराहट पैदा करेगी.
कुल तस्वीर यह बताती है कि रुपया गिरा है, लेकिन अर्थव्यवस्था डगमगाई नहीं है. बाजार इंतजार में है, हस्तक्षेप, समझौता और भरोसा, तीनों में से जो पहले आता है वही रुपया को पटरी पर लाएगा.