रसातल में रुपया, जानें कौन सा डर सता रहा, हालात नहीं संभले तो इन्हें सबसे ज्यादा नुकसान, 90 बना फियर फैक्टर

FPI का आउटफ्लो, भारत-US व्यापार समझौते को लेकर क्लीयरटी की कमी और पिछले अहम लेवल्स पर रुपया की कमजोरी है, जो भारतीय मुद्रा पर दबाव बढ़ा रहे हैं. आज पहली बार रुपया डॉलर के मुकाबले 90 के पार गया है. जानकार मान रहे हैं कि रुपये पर कई तरह के दबाव काम कर रहे हैं.

Rupee Vs Dolaar Image Credit: Canva

बुधवार, 3 दिसंबर को शुरुआती ट्रेडिंग में भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर 90.14 पर पहुंच गया. यह हालिया दिनों में तीसरा ऐसा मौका है जब रुपया अपने निचले स्तर को छू रहा है. इसका मुख्य कारण FPI का आउटफ्लो, भारत-US ट्रे़ड डील को लेकर क्लीयरटी की कमी और पिछले अहम लेवल्स पर रुपया की कमजोरी है, जो भारतीय मुद्रा पर दबाव बढ़ा रहे हैं. आज पहली बार रुपया डॉलर के मुकाबले 90 के पार गया है. जानकार मान रहे हैं कि रुपये पर कई तरह के दबाव काम कर रहे हैं, जिनमें FPI आउटफ्लो, भारत-US ट्रेड डील पर क्लैरिटी की कमी और पिछले अहम लेवल पर कमजोरी, भारतीय करेंसी पर दबाव बढ़ा रहे हैं, जिसके चलते निवेशकों का सेंटिमेंट कमजोर बना हुआ है.

पिछले 5 साल में कब-कब गिरा रुपया

  • साल 2020 (कोविड साल) में अनिश्चितता और कैपिटल आउटफ्लो के चलते रुपया 75.39 प्रति डॉलर तक कमजोर हुआ. जो 2019 में 72–73 के पास था.
  • साल 2022 में फेडरल रिजर्व की आक्रामक दर बढ़ोतरी और ग्लोबल अनिश्चितता ने INR को 82.86 तक धकेला.
  • साल 2023 में रुपया दबाव में रहा पर स्थिर दिखा, 81–83 के दायरे में ट्रेड करता रहा.
  • साल 2024 में ग्लोबल चुनौतियों के बावजूद रुपये साल 82.78 प्रति डॉलर पर पहुंच गया.
  • साल 2025 में साल की पहली छमाही में INR 82.80–83.60 के बीच घूमता रहा, जो दिसंबर 2025 तक 90 रुपये के पार हो गया है.
सोर्स-TradingView

USD/INR पर असर डालने वाले प्रमुख फैक्टर

इसमें कई सारे फैक्टर शामिल होते हैं. जिनमें ब्याज दरें, महंगाई दर, सरकारी कर्ज , ट्रेड बैलेंस और टर्म्स ऑफ ट्रेड,ग्लोबल इकोलॉमिक चेन, बैंकिंग सिस्टम की डॉलर डिमांड, इम्पोर्टर्स-एक्सपोर्टर्स की करेंसी जरूरत अहम हैं

एशियाई करंसी के मुकाबले रुपया

जापानी येन (JPY)

2020 में, USD/JPY का स्तर ~ 101–103 JPY प्रति USD था. 2025 में, USD/JPY ~ 155–156 JPY प्रति USD है. यानी येन ने बहुत भारी गिरावट देखा है. करीब 50–55 फीसदी तक गिरावट देखी गई.

चीनी युआन (CNY)

2025 के हालिया डेटा के अनुसार, USD/CNY ≈ 7.06–7.07 है. हालांकि, 2018-2022 के बीच चीन ने अपनी मुद्रा को ज्यादा स्थिर रखने की कोशिश की है, जिससे YEN या Rupiah जितनी बड़ी गिरावट नहीं आई.

इंडोनेशियाई रुपिया (IDR)

2020 में, महामारी और वैश्विक आर्थिक तनाव के कारण Rupiah काफी दबाव में थी. 2023-2024 में Rupiah ने कुछ स्थिर किया लेकिन 2025 तक फिर दबाव देखने को मिला. 2015 में जहां 1 डॉलर ≈ Rp 13,391 था, वहीं 2025 में वही 1 डॉलर ≈ Rp ~ 16,300–16,623.90 हो गया है. कुल मिलाकर, Rupiah की मजबूती/कमजोरी में उतार-चढ़ाव हुआ है. लेकिन JPY जितनी बुरी तरह नहीं.

2020–2025 में, कुछ एशियाई मुद्राओं जैसे रुपये और इंडोनेशियाई रुपिया ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले काफी गिरावट देखी. मतलब डॉलर मजबूत हुआ या उनकी मुद्राओं में कमजोरी आई. दूसरी तरफ, कुछ मुद्राएं जैसे चीन का युआन तुलनात्मक रूप से अधिक स्थिर रही. विशेष रूप से जापानी येन एक ऐसी मुद्रा है, जिसने इस अवधि में बहुत ज्यादा गिरावट देखी.

रुपये के कमजोर होने से किसे फायदा?

रुपया कमजोर होने पर सबसे बड़ा फायदा एक्सपोर्ट करने वाली कंपनियों को होता है. क्योंकि इन्हें डॉलर में पेमेंट मिलता है, जब रुपये में बदला जाता है तो रेवेन्यू बढ़ जाता है. ऐसे सेक्टर्स में IT कंपनियां (TCS, Infosys, Wipro), फार्मा एक्सपोर्टर्स, टेक्सटाइल और गारमेंट्स, केमिकल एक्सपोर्टर्स, और ऑटो एक्सपोर्टर शामिल हैं. इन कंपनियों के मार्जिन और मुनाफे में तेजी देखने को मिल सकती है.

रुपये के कमजोर होने से किसे नुकसान?

वहीं, रुपये के कमजोर होने से सबसे ज्यादा नुकसान इंपोर्ट पर निर्भर कंपनियों को होता है. इन्हें डॉलर में ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है, जिससे लागत बढ़ती और मुनाफा घटता है. प्रभावित सेक्टरों में तेल कंपनियां (OMCs), एयरलाइंस, इलेक्ट्रॉनिक्स और मोबाइल इंपोर्टर्स, कैपिटल गुड्स/मशीनरी इंपोर्ट करने वाली कंपनियां, और सोना इंपोर्ट करने वाली ज्वेलरी कंपनियां शामिल हैं. आम जनता के लिए भी पेट्रोल–डीजल, इलेक्ट्रॉनिक्स, और विदेश यात्रा महंगी हो जाती है.

कभी-कभी सरकार भी ऐसा करती है

जब रुपया कमजोर होता है तो भारत का सामान दुनिया के लिए सस्ता हो जाता है. विदेशी लोग ज्यादा खरीदते हैं. इससे कंपनियों को ज्यादा मुनाफा मिलता है. देश में निर्यात बढ़ता है. इसीलिए चीन, जापान जैसे देश वर्षों तक अपनी मुद्रा को कमजोर रखते रहे.

RBI ने डॉलर बेचे

2025 में, ऐसा बताया गया कि RBI ने डॉलर बेचे. ताकि रुपये में “अत्यधिक गिरावट को रोका जा सके. अगस्त 2025 में, मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, RBI ने करीब 7.7 अरब डॉलर बेच दिए थे. ये कदम रुपये में अस्थिरता को रोकने के लिए था.