टहलकर कैसे बनें स्मार्ट और क्रिएटिव! जानें स्टीव जॉब्स का 10-मिनट रूल, जिसे Cambridge की न्यूरोसाइंटिस्ट ने बताया असरदार
एप्पल के को-फाउंडर और विजनरी स्टीव जॉब्स को उनकी क्रिएटिव और अलग सोच के लिए जाना जाता है. उनकी बायोग्राफी लिखने वाले वॉल्टर आइजैकसन ने लिखा है कि जॉब्स अक्सर गंभीर बातचीत लंबी वॉक करते हुए ही करना पसंद करते थे. उनके साथ 10 साल से अधिक टाइम तक काम करने वाले डिजाइनर जॉनी आइव ने भी याद किया कि वे दोनों अक्सर चुपचाप चलते रहते थे.
एप्पल (Apple) के को-फाउंडर स्टीव जॉब्स को उनकी क्रिएटिव सोच और यूनिक आइडियाज के लिए जाना जाता है. उनकी बायोग्राफी लिखने वाले वॉल्टर आइजैकसन ने लिखा है कि जॉब्स को जब भी किसी गंभीर बातचीत करनी होती, तो वो चलना पसंद करते थे. वहीं डिजाइनर जॉनी आइव, जिन्होंने 10 साल से ज्यादा वक्त तक उनके साथ काम किया, बताते हैं कि दोनों अक्सर लंबे-लंबे वॉक पर जाते थे. जॉब्स शायद वो समझ गए थे जो बाकी लोग नजरअंदाज करते हैं यानी कि चलना दिमाग को तेज और क्रिएटिव बनाने का सबसे आसान तरीका है. कई रिसर्च भी इस बात को साबित करती हैं कि वॉकिंग से दिमाग की क्रिएटिविटी और सोचने की क्षमता बढ़ती है.
अब कैम्ब्रिज की न्यूरोसाइंटिस्ट मिथु स्टोरोनी भी यही कहती हैं. उन्होंने अपनी नई किताब Hyperefficient: Optimize Your Brain to Transform the Way You Work और HBR IdeaCast पॉडकास्ट में उन्होंने बताया कि स्टीव जॉब्स का 10 मिनट वाला रूल हर किसी को क्रिएटिव और एफिशिएंट बना सकता है. ऐसे में चलिए जानते हैं क्या है यह 10 मिनट का रूल.
क्या है 10 मिनट रूल?
यह रूल बहुत सिंपल है यानी अगर आप किसी काम की समस्या को 10 मिनट तक बैठे-बैठे हल नहीं कर पा रहे हैं, तो तुरंत डेस्क छोड़िए और वॉक पर निकल जाइए. इसे लेकर स्टोरोनी ने एक क्लाइंट का उदाहरण भी दिया, जो इस रूल को फॉलो करता है. उनका कहना है कि अगर वो 10 मिनट तक कंप्यूटर के सामने बैठकर कोई प्रॉब्लम सॉल्व नहीं कर पाता, तो तुरंत उठकर वॉक करने जाता है. इससे दिमाग एक नए पैटर्न में सोचने लगता है और अचानक सॉल्यूशन मिल जाता है.
क्यों काम करता है ये रूल?
स्टोरोनी बताती हैं कि वॉकिंग हमारे दिमाग और शरीर की फिजियोलॉजी को सिंक कर देती है. चलते वक्त आपका दिमाग न तो बोर होता है, न ही सुस्त. इससे हमारा ध्यान इधर-उधर मूव करता है, क्योंकि हमारे आस-पास की चीजें बदल रही होती हैं. इस दौरान दिमाग अंदर के प्रॉब्लम्स को अलग-अलग एंगल से देखने लगता है. हालांकि इसमें सबसे जरूरी है चलते समय सिर्फ एक ही चीज पर ज्यादा देर तक फोकस नहीं कर सकते, क्योंकि ध्यान आसपास की चीजों पर भी रहता है. इससे ओवरथिंकिंग (rumination) नहीं होती और दिमाग एक ऑप्टिमल स्टेट में पहुंच जाता है.
रिसर्च क्या कहती है?
इस रूल को कई स्टडीज ने सपोर्ट किया है. स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी (2014) की स्टडी कि रिसर्च कहती है कि लोगों की क्रिएटिविटी टेस्ट की गई जब वो बैठे थे और जब वो वॉक कर रहे थे. इसका नतीजा ये हुआ कि वॉक करते वक्त उनकी क्रिएटिविटी औसतन 60 फीसदी तक बढ़ गई और ये असर माहौल (बाहर या अंदर) पर नहीं, बल्कि चलने की ऐक्टिविटी पर डिपेंड करता है. वहीं Nature Scientific Reports में प्रकाशित स्टडी के मुताबिक, आउटडोर वॉकिंग से दिमाग की कॉग्निटिव फंक्शनिंग, ध्यान और रिएक्शन टाइम बेहतर होता है. यानी दिमाग ज्यादा फोकस्ड और प्रोडक्टिव बनता है.
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