कितनी लंबी है अरावली, सबसे ऊंची चोटी कौन; जानें किन राज्यों से गुजरती और कितनी हैं नदियां
भारत में जन आंदोलन अक्सर राजनीति, धर्म या पहचान से जुड़े रहे हैं, लेकिन आज देश के एक हिस्से में विरोध का केंद्र एक पहाड़ बन गया है- अरावली माउंटेन रेंज. सरकार की एक नई परिभाषा, जिसमें अरावली हिल्स की ऊंचाई को उसके अस्तित्व का आधार माना गया है, ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है.
Aravalli Mountain Range: एक देश के तौर पर भारत ने कई तरह के विरोध प्रदर्शन देखे हैं. ऐसे कई मौके आए जब लोग सड़क पर उतर कर सत्ता से लेकर अलग-अलग जवाबदेहों से सवाल किया. धर्म, राज्य, पहचान और जनहित से जुड़े मुद्दों को लेकर अपनी आवाज को बुलंद किया. लेकिन आज देश का एक हिस्सा जिस मुद्दे को लेकर सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक आवाज बुलंद कर रहा है, वह किसी राजनीतिक एजेंडे से नहीं, बल्कि एक पहाड़ से जुड़ा है नाम है अरावली माउंटेन रेंज. भारत में पर्यावरण संरक्षण के लिए जन आंदोलन पहले भी हुए हैं. 1973 का चिपको आंदोलन इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जब लोग जंगल और पहाड़ बचाने के लिए एकजुट हुए थे. अब 52 साल बाद अरावली को लेकर उठता विरोध उसी चेतना की याद दिलाता है.
अरावली आज इसलिए विवाद के केंद्र में है क्योंकि एक सरकारी फरमान में अरावली हिल्स की ऊंचाई को उसके अस्तित्व का मुख्य आधार माना गया है. इस पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या किसी पर्वतमाला का महत्व सिर्फ उसकी ऊंचाई से तय किया जा सकता है, जबकि अरावली हजारों साल पुरानी है और उत्तर भारत के पर्यावरणीय संतुलन में अहम भूमिका निभाती है. यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब दिल्ली समेत देश के कई हिस्से खराब हवा, पानी की किल्लत और बढ़ती गर्मी से जूझ रहे हैं. ऐसे में अरावली को लेकर उठता विरोध सिर्फ एक पहाड़ को बचाने की लड़ाई नहीं, बल्कि देश के पर्यावरणीय भविष्य से जुड़ा सवाल है. ऐसें में हमारा ये जानना काफी अहम हो जाता है कि जिस अरावली माउंटेन रेंज को लेकर इतनी बात हो रही है आखिर वह है क्या है. उसकी महत्ता क्या है. कितनी लंबी है, कितनी ऊंची है, कितने राज्यों से मिलती है.
दुनिया की सबसे पुरानी माउंटेन रेंज में से एक
अरावली माउंटेन रेंज कोई नई या आम पहाड़ियां नहीं हैं. जियोलॉजिस्ट के अनुसार, इनका जन्म प्रोटेरोजोइक युग में हुआ था, यानी आज से कई दशकों साल पहले. यह वह दौर था, जब पृथ्वी पर जीवन की शुरुआती स्ट्रक्चर बन रही थीं. अरावली को दुनिया की सबसे पुरानी फोल्ड माउंटेन रेंज माना जाता है. यह पर्वतमाला अरावली-दिल्ली ऑरोजेनिक बेल्ट का हिस्सा है, जो प्राचीन टेक्टोनिक प्लेटों के आपस में टकराने से बनी.
कभी अरावली की ऊंचाई बहुत ज्यादा थी. माना जाता है कि ये पहाड़ अपने शुरुआती दौर में आज के हिमालय जितने ऊंचे या उससे भी ऊंचे रहे होंगे. लेकिन करोड़ों साल की हवा, पानी और मौसम की मार ने इन्हें धीरे-धीरे घिस दिया. आज ये पहाड़ियां भले ही ऊंचाई में कम दिखें, लेकिन इनका पारिस्थितिक महत्व अब भी बेहद विशाल है.
कितनी है लंबाई और किन राज्यों से मिलती है अरावली?
अरावली माउंटेन रेंज लगभग 670 किलोमीटर लंबी है. इसकी शुरुआत गुजरात से होती है. गुजरात के अहमदाबाद से शुरू होकर राजस्थान, हरियाणा से आते हुए दिल्ली के आसपास समाप्त होती है. इस दौरान अरावली चार राज्यों- दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात की जलवायु, भूगोल और जीवनशैली को सीधे तौर पर प्रभावित करती है. राजस्थान में अरावली का फैलाव सबसे ज्यादा है. यही पर्वतमाला राजस्थान को दो हिस्सों में बांटती है- एक तरफ उत्तर-पश्चिमी रेगिस्तानी इलाका और दूसरी तरफ दक्षिण-पूर्वी अपेक्षाकृत उपजाऊ क्षेत्र. अगर अरावली न होती, तो थार रेगिस्तान कब का जयपुर, अलवर, गुरुग्राम और दिल्ली तक पहुंच चुका होता.
थार रेगिस्तान के खिलाफ आखिरी दीवार
अरावली का सबसे बड़ा योगदान यह है कि यह थार रेगिस्तान को पूर्व की ओर बढ़ने से रोकती है. यह पर्वतमाला एक प्राकृतिक बाउंड्री की तरह काम करती है, जो रेगिस्तान की गर्म हवाओं और रेत को रोकती है. कई बार जानकारों ने ये चेतावनी दी है कि अगर अरावली पूरी तरह कमजोर हो गई, तो रेगिस्तान का विस्तार हरियाणा और दिल्ली तक हो सकता है. इसका मतलब होगा- खेती का खत्म होना, पानी की भारी कमी और बड़े पैमाने पर पलायन.
अरावली की सबसे ऊंची चोटी कौन सी है?
अरावली की सबसे ऊंची चोटी है गुरु शिखर, जो राजस्थान के माउंट आबू में स्थित है. इसकी ऊंचाई लगभग 1,722 मीटर (5,650 फीट) है. गुरु शिखर माउंट आबू से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और पूरे अरावली क्षेत्र का सर्वोच्च बिंदु है. अरावली पर्वतमाला को दो हिस्सों में बांटा जाता है. पहला है संभर- सिरोही रेंज, जो अपेक्षाकृत ऊंची और मजबूत है और जिसमें गुरु शिखर शामिल है. दूसरा है संभर- खेत्री रेंज, जो तीन अलग-अलग, टूटी हुई पर्वत श्रृंखलाओं से बनी है और अपेक्षाकृत नीची है.
अरावली से कितनी नदियां निकलती निकलती है?
राजस्थान जैसे राज्य में ज्यादातर नदियों का उद्गम अरावली से ही होता है. यही माउंटेन रेंज बारिश के पानी को रोककर जमीन के अंदर भेजती है, जिससे कुएं, बावड़ियां और ट्यूबवेल जिंदा रहते हैं. अरावली से निकलने वाली सबसे प्रमुख नदी है लूणी (Luni). यह नदी अजमेर के पास पुष्कर घाटी से निकलती है और दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहते हुए गुजरात के कच्छ के रण में जाकर समाप्त होती है. माना जाता है कि लूणी नदी कभी सरस्वती नदी की एक धारा थी. इसके किनारों पर सिंधु घाटी सभ्यता के कई अहम जगहें मिले हैं, जिनमें लोथल प्रमुख है.
साबरमती नदी का उद्गम भी अरावली की पश्चिमी ढलानों से, उदयपुर जिले में होता है. यह नदी गुजरात से होकर बहती हुई अरब सागर की खंभात की खाड़ी में मिलती है. पूर्वी ढलानों से निकलने वाली नदियों में बनास, चंबल, बेड़च और आहर प्रमुख हैं. चंबल आगे चलकर यमुना में मिलती है और उत्तर भारत की जल प्रणाली का अहम हिस्सा बनती है.
हरियाणा और दिल्ली तक असर डालने वाली नदियां
अरावली से निकलने वाली साहिबी नदी हरियाणा और दिल्ली के लिए बेहद अहम है. यह राजस्थान के सीकर जिले से निकलकर हरियाणा से होती हुई दिल्ली में यमुना से मिलती है, जहां इसे नजफगढ़ ड्रेन कहा जाता है. इसी नदी के पुराने प्रवाह क्षेत्र में आज सुल्तानपुर नेशनल पार्क, भिंडावास, खापरवास और बसई वेटलैंड जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र मौजूद हैं. इसके अलावा दोहन, सोता, कृष्णावती जैसी नदियां भी अरावली से निकलती हैं, जो आज कई जगह सूख चुकी हैं या नालों में बदल चुकी हैं.
कई मिनरल्स भी हैं अरावली की देन
अरावली मिनरल रिसोर्सेज से भरपूर है. यहां तांबा, जिंक, लेड, संगमरमर और दूसरे मिनरल्स पाए जाते हैं. राजस्थान का मकराना संगमरमर दुनिया भर में प्रसिद्ध है. खेतड़ी क्षेत्र तांबे की खानों के लिए जाना जाता है, जबकि उदयपुर और राजसमंद में जिंक और लेड के बड़े भंडार हैं. लेकिन यही रिसोर्सेज अरावली के विनाश की सबसे बड़ी वजह भी बनी. दशकों तक चले अवैध और अंधाधुंध खनन ने पहाड़ों को खोखला कर दिया. जंगल कटे, पहाड़ तोड़े गए और वाटर सोर्स खत्म होते चले गए.
क्या है पूरा मामला?
अरावली पिछले कई दशकों से अवैध खनन, जंगलों की कटाई और तेज निर्माण के शिकंजे में है. मामले की गंभीरता को देखते हुए सर्वेच्च न्यायालय ने दखल दी. तमाम चोट के कारण धीरे-धीरे खोखली होती अरावली को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त और साफ नियम तय किए हैं. सबसे पहले न्यायालय ने अरावली की एक साफ और समान परिभाषा की कवायद की. जिसके लिए निर्देश दिया गया कि एक विशेषज्ञ कमेटी बनाई जाए जो वैज्ञानिक तरीके से तय करे कि अरावली आखिर है क्या और कहां तक फैली है.
इस कमेटी में कई राज्यों के विशेषज्ञों को शामिल किया गया. चर्चा के दौरान ये बात सामने आई कि जो जमीन आसपास की जमीन से 100 मीटर या उससे ज्यादा ऊंची है उसे पहाड़ी माना जाएगा और उस पर खनन नहीं होगा. पूरी समस्या यहीं से शुरू होती है. अरावली में कई पहाड़ हैं जिनकी ऊंचाई 100 मीटर से थोड़ी कम. ऐसे में बड़े स्तर पर खनन और दूसरे जरियों के जरिये उन्हें हटाया जा सकता है.