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पिता की मौत ने छुड़वाई पढ़ाई, बना भारत का छठा सबसे अमीर शख्स;इस दिग्गज निवेशक को राकेश झुनझुनवाला भी मानते मेंटर
शेयर बाजार की चमक-दमक से दूर रहकर, बिना दिखावे के, लंबे धैर्य के साथ दौलत और भरोसा दोनों कमाए जा सकते हैं. राधाकिशन दमानी इसकी जीती-जागती मिसाल हैं. 12वीं पास, मीडिया से दूरी, सफेद शर्ट और शांत स्वभाव इन सबके पीछे छिपी है एक ऐसी निवेश यात्रा, जो बताती है कि सच्ची सफलता शोर नहीं करती.
बीकानेर के मारवाड़ी परिवार में जन्मे दमानी ने कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर परिवार की जिम्मेदारी संभाली. पिता के निधन के बाद उन्होंने शेयर ट्रेडिंग शुरू की. यह फैसला आसान नहीं था, लेकिन यहीं से उनकी निवेश यात्रा की नींव पड़ी.
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1992 के शेयर बाजार घोटाले के दौर में जब बाजार गिरा, दमानी ने जल्दबाज़ी नहीं की. उन्होंने जोखिम समझा, सीख ली और समय के साथ खुद को मजबूत किया. यही अनुभव आगे चलकर उनकी निवेश रणनीति का आधार बना. अच्छी कंपनियों में निवेश और 5 से 10 साल तक इंतजार करने से मुनाफा मिलता है.
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दमानी अक्सर सफेद शर्ट पहनते हैं, मीडिया की चकाचौंध से दूर रहते हैं और हर कुंभ में स्नान करते हैं. सादगी उनके जीवन और निवेश दोनों में दिखती है. वे कहते हैं कम दाम में अच्छी कंपनी के शेयर खरीदो और धैर्य रखो वो तुमको मुनाफा देगा.
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1999 में मुंबई में पहला रिटेल स्टोर शुरू किया, जो आगे चलकर डीमार्ट के रूप में देशभर में फैला. आज 12 राज्यों में 440 से ज्यादा स्टोर हैं. फोर्ब्स की सूची में उनका नाम शामिल है और वे देश के छठे सबसे अमीर लोगों में गिने जाते हैं.
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दमानी ने पीएम केयर फंड में 100 करोड़ रुपये दान किए. मुंबई में शिवकिशन मुरारका दमानी चैरिटेबल ट्रस्ट के जरिए 56 लाइब्रेरी बनवाईं, जहां हजारों छात्रों को मुफ्त इंटरनेट और पढ़ाई की सुविधा मिल रही है. राकेश झुनझुनवाला इन्हें अपना मेंटर मानते थे.