कच्चे तेल का खेल खत्म! आत्मनिर्भर होगा भारत, CeNS बेंगलुरु ने सोलर एनर्जी और पानी से बनाई ग्रीन हाईड्रोजन

भारत के महाशक्ति बनने की राह में सबसे बड़ी बाधा एनर्जी के लिए कच्चे तेल पर निर्भरता है. लेकिन, भारत की ग्रोथ में अड़चन बन रहे कच्चे तेल का खेल जल्द ही खत्म होगा. क्योंकि, CeNS बेंगलुरु ने सोलर एनर्जी और पानी से ग्रीन हाईड्रोजन बनाई है. यह खोज भारत को जल्द ही एजर्नी के मामले में आत्मनिर्भर बना सकता है.

ग्रीन हाइड्रोन भारत को उत्सर्जन मुक्त बनाने के लिए जरूरी है Image Credit: Money9live

बेंगलुरु स्थित CeNS यानी सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज ने एक कमाल की डिवाइस तैयार की है. इसके जरिये सोलर एनर्जी और पानी से ग्रीन हाइड्रोजन बनाई जा सकता है. CeNS के वैज्ञानिकों की यह खोज भारत को कच्चे तेल के खेल से आजादी दिला सकती है. विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इसे ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में भारत की ऊंची छलांग बताया है. मंत्रालय ने वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि की जानकारी देते हुए बताया कि इस डिवाइस को जल्द ही कमर्शियल स्केल पर प्रोड्यूस किया जा सकता है.

कच्चा तेल कितना बड़ा बोझ?

भारत के आयात बिल में सबसे बड़ा हिस्सा कच्चे तेल का रहता है. 2024 में भारत ने करीब 14 लाख करोड़ रुपये का कच्चा तेल आयात किया. भारत के पास खुद के तेल भंडार बहुत सीमित हैं. देश की तमाम ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में कच्चे तेल की अहम हिस्सेदारी है. ऐसे में भारत को दुनिया के तमाम देशों से तेल आयात करना पड़ता है. इसकी वजह से भारत कई कड़े और बड़े रणनीतिक फैसले नहीं कर पाता है. अगर भारत के पास इसका कोई ठोस विकल्प होगा, तो भारत खुलकर अपने हितों की रक्षा कर पाएगा.

ग्रीन हाइड्रोजन क्यों अहम?

COP26 में भारत ने अपने 2030 डीकार्बोनाइजेशन टारगेट का ऐलान किया. इस बेहद महत्वाकांक्षी लक्ष्य के तहत 2030 तक भारत को अपनी कुल ऊर्जा जरूरत का 50 फीसदी हिस्सा डीकार्बोनाइज करना होगा. इसके अलावा 500 गीगावाट ऊर्जा बिना कच्चे तेल के हासिल करनी होगी. इस लक्ष्य को हासिल करने में ग्रीन हाइड्रोजन की अहम भूमिका है. Ernst And Young और रिन्युएबल एनर्जी मिनिस्ट्री की रिपोर्ट “INDIA’S GREEN HYDROGEN REVOLUTION An Ambitious Approach” के मुताबिक भारत क्लीन लक्ष्यों को हासिल करने में ग्रीन हाइड्रोजन पर खास जोर दे रहा है. भारत का लक्ष्य 2030 तक 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन प्रति वर्ष उत्पादन की क्षमता हासिल करना है.

कहां-कहां काम आएगी ग्रीन हाइड्रोजन?

ग्रीन हाइड्रोजन सबसे क्लीन फ्यूल है. इसका इस्तेमाल उद्योगों को चलाने, वाहनों को चलाने के साथ ही पूरे देश को ऊर्जा देने के लिए किया जा सकता है. इसे अक्षय ऊर्जा की श्रेणी में रखा जाता है.

CeNS की कामयाबी बड़ी क्यों?

हाइड्रोजन भले ही प्रकृति में बहुतायत से उपलब्ध है. लेकिन, इसे इस्तेमाल को स्केलेबल और किफायती बनाना एक चुनौती है. CeNS ने इस दिशा में बड़ी छलांग लगाई है. वैज्ञानिकों ने एक नेक्स्ट जेनरेशन डिवाइस तैयार की है, जो महंगे संसाधनों पर निर्भर हुए बिना, केवल सोलर एनर्जी और पानी से ग्रीन हाइड्रोन बना सकती है. शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि इस डिवाइस की मदद से घर-घर हाइड्रोजन-बेस्ड एनर्जी सिस्टम को फ्यूल किया जा सकता है. मोटे तौर पर यह देश के एनर्जी सेक्टर को पूरी तरह बदलने की क्षमता रखती है.

कैसे काम करती है यह डिवाइस?

डिवाइस को तैयार करने वाली टीम को लीड करने वाले डॉ. आशुतोष सिंह ने PIB की एक रिपोर्ट में बताया कि N-I-P हेटेरोजंक्शन आर्किटेक्चर की मदद से एक सिलिकॉन-बेस्ड फोटोएनोड डिजाइन किया गया है, जिसमें स्टैक्ड N-Type TiO2, अनडॉप्ड Si और p-टाइप NiO सेमीकंडक्टर लेयर लगी हैं. ये चार्ज सैपरेशन और ट्रांसपोर्ट दक्षता को बढ़ाती हैं. इसके बाद मैग्नेट्रॉन स्पटरिंग का उपयोग कर मटेरियल को जमा किया गया था, जो एक स्केलेबल और इंडस्ट्री रेडी तकनीक है.

फोटो क्रेडिट: PIB. एन-आई-पी हेटेरोजंक्शन फोटोएनोड का चित्रण, जो सोलर एनर्जी से पानी को तोड़कर ग्रीन हाइड्रोजन बनाता है.

कामयाबी लैब तक सीमित नहीं

डिवाइस को तैयार करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि यह कामयाबी सिर्फ लैब तक सीमित नहीं है. बल्कि, बेहद कम समय में इसका इस्तेमाल इंडस्ट्री स्केल पर किया जा सकता है. नई डिवाइस इसकी एफिशिएंसी, लो एनर्जी इनपुट और ड्यूरेबिलिटी के लिहाज से अहम है. इसके साथ ही ग्रीन हाइड्रोजन बनाने के लिए इसमें सिर्फ पानी और सोलर एनर्जी की जरूरत होगी, जिससे बेहद कम कीमत पर उत्पादन संभव होगा. CeNS की टीम का यह शोध हाल में ही रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री के जर्नल ऑफ मैटेरियल्स केमिस्ट्री में प्रकाशित हुआ है.