क्या है डाउन सिन्ड्रोम? आमिर खान के ‘सितारे जमीन पर’ से चर्चा में; वजह माता-पिता की चूक या कुछ और..
आमिर खान की फिल्म 'सितारे जमीन पर' में डाउन सिन्ड्रोम से ग्रसित युवाओं की दिल छू लेने वाली कहानी दिखाई गई है. यह फिल्म बताती है कि ये युवा कैसे हंसते-खेलते अपनी जिंदगी जीते हैं. ऐसे में आइए जानते है कि डाउन सिन्ड्रोम क्या होता है.

Down Syndrome: आमिर खान की फिल्म सितारे जमीन पर लोगों के बीच काफी पसंद की जा रही है. इस फिल्म में डाउन सिन्ड्रोम से ग्रसित युवाओं की दिल छू लेने वाली कहानी दिखाई गई है. यह फिल्म बताती है कि ये युवा कैसे हंसते-खेलते अपनी जिंदगी जीते हैं. ऐसे में आइए जानते है कि डाउन सिन्ड्रोम क्या होता है. क्या यह ठीक हो सकता है. आखिर इसका इलाज कैसे हो सकता है.
ये हैं लक्षण
डाउन सिन्ड्रोम एक जन्मजात स्थिति है. इसमें बच्चे के पास एक्सट्रा क्रोमोसोम होता है. आमतौर पर इंसान के शरीर में 46 क्रोमोसोम होते हैं, लेकिन ऐसे बच्चों में 47 क्रोमोसोम होते हैं. इससे बच्चे का दिमाग और शरीर अलग ढंग से विकसित होता है. डाउन सिन्ड्रोम के लक्षण हर बच्चे में अलग-अलग हो सकते हैं. जन्म के समय कुछ शारीरिक लक्षण दिखते हैं, जैसे चपटा नाक, ऊपर की ओर झुकी आँखें, छोटी गर्दन, छोटे हाथ-पैर और कमजोर मांसपेशियां.

इसमें बच्चे की हाइट भी औसत से कम हो सकती है. बड़े होने पर कान में इन्फेक्शन, आंखों की समस्या, दिल की बीमारी या सांस की दिक्कत हो सकती है. दिमागी विकास में देरी होती है. इससे बच्चे चलना, बोलना, सीखना या खेलना धीरे-धीरे सीखते हैं. कुछ बच्चे जिद्दी हो सकते हैं या ध्यान देने में दिक्कत होती है.
क्या है कारण?
डाउन सिन्ड्रोम 21वें क्रोमोसोम की अतिरिक्त कॉपी की वजह से होता है. यह ज्यादातर गर्भ में ही हो जाता है और यह माता-पिता की गलती नहीं है. यह तीन तरह का होता है: ट्राइसोमी 21 (सबसे आम), ट्रांसलोकेशन और मोजेक. यह किसी को भी हो सकता है, लेकिन 35 साल से ज्यादा उम्र की गर्भवती महिलाओं में इसका खतरा थोड़ा ज्यादा होता है.
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कैसे पता चलता है?
गर्भावस्था में स्क्रीनिंग टेस्ट जैसे अल्ट्रासाउंड या मां के खून की जांच से डाउन सिन्ड्रोम का अंदाजा लगाया जा सकता है. पक्का पता करने के लिए एमनियोसेंटेसिस जैसे टेस्ट किए जाते हैं. जन्म के बाद बच्चे के शारीरिक लक्षण देखकर और खून की जांच (कैरियोटाइप टेस्ट) से इसकी पुष्टि होती है. डाउन सिन्ड्रोम का कोई इलाज नहीं है, लेकिन सही देखभाल से बच्चे खुशहाल जिंदगी जी सकते हैं. फिजिकल थेरेपी, स्पीच थेरेपी और स्पेशल एजुकेशन से उनकी मदद होती है. डॉक्टर दिल, आंख, और कान की समस्याओं की जांच करते रहते हैं.
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