आपकी कार ही बना रही आपको कैंसर का शिकार? लोगों की सुरक्षा को लेकर NGT ने मांगा सरकार से जवाब

कार के धुएं से कैंसर हो सकता है. यह आपको पता होगा. लेकिन, कार के इंटीरियर की वजह से भी आप कैंसर का शिकार हो सकते हैं, यह शायद नहीं पता हो. एक शोध में हाल ही में दावा किया गया है कार के अंदर TDCIPP और TCEP नाम के दो ऐसे कैमिकल का इस्तेमाल होता है, जो कैंसर फैला रहे हैं. इसे लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने केंद्र सरकार सहित तमाम पक्षों से जवाब मांगा है.

गर्मी के दिनों में कैंसर फैलाने वाले कैमिकल ज्यादा उत्सर्जित होते हैं. Image Credit: SolStock/E+/Getty Images

कार के इंटीरियर में टीडीसीआईपीपी और टीसीईपी का इस्तेमाल होता है. इन्हें फ्लेम रिटार्डेंट (एफआर) कैमिकल कहा जाता है. कार के अंदर आग की लपटों को जल्दी फैलने से रोकने के लिए इन कैमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है. अमेरिकन कैमिकल सोसायटी के एन्वायरमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी जर्नल में प्रकाशित शोध में बताया गया है कि ट्रिस 1-क्लोरो-इसोप्रोपाइल फॉस्फेट (TCIPP), थर्मोलिन 101, 2,4,6-ट्राइब्रोमोफेनॉल, ट्रिस (2-क्लोरोइथाइल) फॉस्फेट (TCEP) और डेकाब्रोमोडिफेनिल ईथर (बीडीई 209) जैसे एफआर का 99% कारों में इस्तेमाल होता है. खासतौर पर गर्मी के मौसम में इन कैमिकल्स के पार्टिकल सांस के साथ हमारे खून में घुलते हैं. इस तरह ये कैंसर का जोखिम बढ़ा देते हैं. इसी साल मई में प्रकाशित इस रिपोर्ट के आधार पर यूएस नेशनल टॉक्सिकोलॉजी प्रोग्राम की तरफ से जांच शुरू की गई. इसके बाद यूएस नेशनल हाइवे ट्रैफिक सेफ्टी एडमिनिस्ट्रेशन से इसके संबंध में मानकों में सुधार की मांग की गई.

अब बात करते हैं भारत की, जहां पिछले दिनों मीडिया में इस शोध के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित की गईं. इन रिपोट्स का केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने संज्ञान लिया और जांच में पाया गया कि इन कैमिकल्स का दुनिया के तमाम देशों की तरह भारतीय कारों में भी इस्तेमाल किया जाता है. कारों में आग की घटनाओं को काबू में रखने के लिए पुराने मानकों के आधार पर सीट के फोम में इन कैमिकल्स का इस्तेमाल होता है. हालांकि, आग की वास्तविक घटनाओं में इन कैमिकल्स के इस्तेमाल की वजह से कोई खास फर्क नहीं पड़ता है. इसके अलावा इन कैमिकल्स को खतरनाक रसायनों का निर्माण, भंडारण और आयात नियम, 1989 के तहत सूचीबद्ध भी नहीं किया गया है.

सीपीसीबी ने बताया कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने विभिन्न रासायनिक उद्योगों के लिए अपशिष्ट और उत्सर्जन मानक स्थापित किए हैं. प्लास्टिसाइजर और एरोमेटिक्स का उत्पादन इन मानकों के अधीन है. वहीं, ऑटोमोबाइल सुरक्षा मानक सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय तय करता है. इन मानकों को लागू करने की जिम्मेदारी ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया और नेशनल ऑटोमोटिव टेस्टिंग एंड आरएंडडी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को दी गई है. लेकिन, इनमें से किसी ने भी अब तक देश में कभी इन कैमिकल्स के इस्तेमाल पर कोई अध्ययन नहीं किया है. सीपीसीबी ने इस संबंध में अपनी रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को भी भेजी है.

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने गुरुवार को सीपीसीबी की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार और इस मुद्दे से जुड़े तमाम संगठन व निकायों से जवाब मांगा है. सभी नियामक और पक्षकारों को इस मामले में 8 सप्ताह के भीतर जवाब देना है. एनजीटी ने अपने आदेश में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के साथ ही भारतीय मानक ब्यूरो से भी जवाब मांगा है. एनजीटी ने कार के इंटीरियर में कैंसर पैदा करने वाले कैमिकल्स के इस्तेमाल पर गहरी चिंता जताई है. 10 सितंबर को इस मामले में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने इन कैमिकल्स से कैंसर के जोखिमों पर कोई जवाब नहीं दिया. इसके बाद एनजीटी ने फिलहाल ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया और नेशनल ऑटोमोटिव टेस्टिंग एंड आर एंड डी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स से भी जवाब मांगा है. इस मामले पर 3 जनवरी, 2025 को फिर से विचार किया जाएगा।