ग्रीन एनर्जी से लेकर टेक्नोलॉजी तक ने बढ़ाई सिल्वर म्यूचुअल फंड्स की चमक, 2026 की बन सकती है बड़ी इन्वेस्टमेंट थीम
साल 2025 में मजबूत प्रदर्शन के बाद सिल्वर एक बार फिर निवेशकों के फोकस में आ गया है. अब सिल्वर को केवल गोल्ड का विकल्प नहीं, बल्कि एक उभरती इन्वेस्टमेंट थीम के रूप में देखा जा रहा है. इंडस्ट्रियल डिमांड, ग्रीन एनर्जी, सोलर पावर, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स और टेक्नोलॉजी सेक्टर में बढ़ते उपयोग ने सिल्वर म्यूचुअल फंड्स को 2026 के लिए आकर्षक विकल्प बना दिया है.
Silver Mutual Funds: साल 2025 में सिल्वर ने निवेशकों का ध्यान जिस तरह खींचा है, उसने इसे फिर से चर्चा के केंद्र में ला दिया है. अब सिल्वर को केवल गोल्ड का सस्ता विकल्प या महंगाई से बचाव का साधन नहीं माना जा रहा, बल्कि यह धीरे-धीरे एक मजबूत इन्वेस्टमेंट थीम के रूप में उभर रहा है. जैसे-जैसे निवेशक 2026 की ओर बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे सिल्वर म्यूचुअल फंड्स में दिलचस्पी बढ़ती नजर आ रही है. बदलते वैश्विक समीकरण, इंडस्ट्रियल डिमांड में तेजी और कमोडिटी आधारित निवेश के प्रति बढ़ती जागरूकता ने सिल्वर म्यूचुअल फंड्स को एक अहम कैटेगरी बना दिया है.
बदल रही है सिल्वर की पहचान
पिछले कुछ वर्षों में सिल्वर की भूमिका में बड़ा बदलाव आया है. आज सिल्वर इंडस्ट्रियल कमोडिटी और फ्यूचर-फोकस्ड टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रहा है. यही ड्यूल रोल सिल्वर को अन्य कमोडिटीज से अलग और ज्यादा डायनामिक बनाता है. एनर्जी ट्रांजिशन, डिजिटाइजेशन और इलेक्ट्रिफिकेशन की वैश्विक रफ्तार के साथ सिल्वर की इंडस्ट्रियल उपयोगिता लगातार बढ़ रही है, जिसे नजरअंदाज करना मुश्किल है.
कीमतों में तेजी के बावजूद मजबूत डिमांड
सिल्वर की कहानी का एक दिलचस्प पहलू यह है कि कीमतों में उछाल के बावजूद भारत में इसकी मांग बनी हुई है. आमतौर पर कीमतें बढ़ने पर खपत घटती है, लेकिन हालिया आंकड़े बताते हैं कि सिल्वर ज्वेलरी और इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट्स में भारतीय निवेशकों की रुचि बरकरार है.
ईटीएफ, कॉइन और रेगुलेटेड इन्वेस्टमेंट रूट्स के जरिए भागीदारी बढ़ी है. यह संकेत देता है कि भारत में सिल्वर की मांग अब ज्यादा इन्वेस्टमेंट-ड्रिवन होती जा रही है, जो 2026 के लिए सिल्वर म्यूचुअल फंड्स की मजबूत बुनियाद तैयार करती है.
क्यों खास हैं सिल्वर म्यूचुअल फंड्स
2026 के नजरिये से सिल्वर म्यूचुअल फंड्स निवेशकों को एक स्ट्रक्चर्ड एक्सपोजर देते हैं. फिजिकल सिल्वर या शॉर्ट-टर्म ट्रेडिंग के मुकाबले ये फंड्स लॉन्ग-टर्म डिमांड साइकल में भागीदारी का मौका देते हैं. इनमें एसआईपी की सुविधा, स्टोरेज और प्योरिटी की चिंता से मुक्ति, और बेहतर लिक्विडिटी जैसे फायदे शामिल हैं. यही वजह है कि इन्हें टैक्टिकल नहीं, बल्कि स्ट्रैटेजिक एलोकेशन के तौर पर देखा जा रहा है.
उभरता हुआ ‘ग्रीन मेटल’
सिल्वर को अब ‘ग्रीन मेटल’ के रूप में भी पहचाना जा रहा है. सोलर एनर्जी में हर सोलर पैनल में औसतन 20 ग्राम सिल्वर का इस्तेमाल होता है. भारत में वित्तीय वर्ष 2026 में सोलर कैपेसिटी में 45 गीगावॉट से ज्यादा बढ़ोतरी का अनुमान है, जिससे सिल्वर की मांग और तेज हो सकती है. इसके अलावा इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, फाइव-जी इंफ्रास्ट्रक्चर और सेमीकंडक्टर सेक्टर में भी सिल्वर की भूमिका अहम बनी हुई है.
पोर्टफोलियो में कितना सिल्वर रखें
हालांकि सिल्वर ने दम दिखाया है, लेकिन इसकी वोलैटिलिटी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. कंजरवेटिव पोर्टफोलियो में 2 से 5 फीसदी, मॉडरेट रिस्क प्रोफाइल में 5 से 10 फीसदी और एग्रेसिव निवेशकों के लिए इससे थोड़ा अधिक एलोकेशन पर विचार किया जा सकता है.
डिस्क्लेमर: Money9live किसी स्टॉक, म्यूचुअल फंड, आईपीओ में निवेश की सलाह नहीं देता है. यहां पर केवल स्टॉक्स की जानकारी दी गई है. निवेश से पहले अपने वित्तीय सलाहकार की राय जरूर लें.